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सर्वाधिक प्राचीन स्थल पर कर्मकांड

आश्रि्वन कृष्ण एकादशी शुक्रवार (19 सितंबर) 17 दिवसीय गया श्राद्ध का 12वां दिवस है। इस तिथि को मुंडपृष्ठ, आदि गया तथा द्यौतपद वेदी पर श्राद्ध होता है। ये वेदियां मुंड पृष्ठ पर्वत पर हैं। इसको करसीली पर्वत भी कहते हैं। यह गया तीर्थ का सर्वाधिक प्राचीन स्थल है तथा गया तीर्थ के क्षेत्र के मध्य स्थल है। ढाई कोस के परिमाण में अवस्थित गया तीर्थ को यहा

By Edited By: Published: Fri, 19 Sep 2014 01:35 PM (IST)Updated: Fri, 19 Sep 2014 01:35 PM (IST)
सर्वाधिक प्राचीन स्थल पर कर्मकांड

गया। आश्रि्वन कृष्ण एकादशी शुक्रवार (19 सितंबर) 17 दिवसीय गया श्राद्ध का 12वां दिवस है। इस तिथि को मुंडपृष्ठ, आदि गया तथा द्यौतपद वेदी पर श्राद्ध होता है। ये वेदियां मुंड पृष्ठ पर्वत पर हैं। इसको करसीली पर्वत भी कहते हैं। यह गया तीर्थ का सर्वाधिक प्राचीन स्थल है तथा गया तीर्थ के क्षेत्र के मध्य स्थल है।

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ढाई कोस के परिमाण में अवस्थित गया तीर्थ को यहां से ही मापा जाता है। यहां आदि गदाधर तो सर्वप्रथम पादार्पण किया था। पुराना शिला पर आदि गदाधर की मूर्ति अंकित है। श्राद्धकर्ता इनका दर्शन-नमस्कार करते हैं। आदि गया में यह शिला गहराई में है। अत: इसको आदिगया का नाभिस्थल कहा जाता है। बारह भुज वाली मुंडपृष्ठा देवी वरदायिनी मुद्रा में हैं। इनका दर्शन-नमस्कार मोक्षदायक है। करसीली पर्वत पर ही श्वेतशिला है। यह पांडुशिला कहलाती है। यहां श्राद्ध के बाद चांदी दान किया जाता है। द्यौतपद वेदी के नाम से यह प्रसिद्ध है, यहां राजा युद्धिष्ठिर ने अपने पिता पांडु को पिंडदान करके मुक्ति दिलायी थी। पिता के आशीर्वाद से युद्धिष्ठिर सदेह स्वर्ग गए थे। करसीली पर्वत पर ही विष्णु पद मार्ग में कामख्या देवी दर्शनीय हैं।

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