यहां कश्मीरी पंडित समुदाय उमा को बेटी और शिव को पूजते हैं दामाद के रूप में
भगवान शिव के गणों के लिए मांस मछली के पकवान बनाए जाते हैं। उनके भोग के लिए 'वटुक' के साथ 'रिजडयूल' बर्तन की स्थापना भी की जाती है।
महाशिवरात्रि का पर्व पूरे भारतवर्ष में भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह के रूप में मनाया जाता है, लेकिन कश्मीरी पंडित समुदाय उमा को बेटी और शिव को दामाद के रूप में पूजते हैं। कश्मीरी पंडित महाशिवरात्रि को 'हेरथ' यानि बेटी की शादी के रूप में मनाते हैं। इस दिन आदिशक्ति उमा की शादी भगवान शिव से पूरे रस्मों-रिवाज के साथ की जाती है। हिमालय की बेटी की शादी की तैयारियों को लेकर पूरा पंडित समुदाय पंद्रह दिन तक तैयारियों में डूबा रहता है। पंडितों में खासा उत्साह है। उमा की भगवान शिव के साथ शादी कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। परंपरा के अनुसार अभी भी हुर उकदोह से शुरू पर्व की रस्मों में हुर-अठ््म, बेटियों को अत-गत देने की रस्म को पूरी श्रद्धा से निभाया जा रहा है।
पंडित समुदाय का मानना है कि महाशिवरात्रि पर्व के पावन अवसर पर की जाने वाली पूजा-अर्चना बेटी उमा के दूल्हे भगवान शिव की विवाह से पहले की गई आराधना है, जिसमें शिवगणों की भी पूजा की जाती है। पंडित परिवारों में भगवान शिव को दामाद के रूप में माना जाता है।
'हेरथ त्रुवह' यानि त्रयोदशी को कश्मीरी पंडित परिवारों में 'वटुक स्थापना' की जाती है। पारंपरिक लोकगीतों के साथ वटुक को बहते पानी से भरकर अखरोट भिगोए जाते हैं। उसमें दूध, मिश्री के कंद व अन्य डालकर उन्हें घास के आसन पर प्रतिष्ठापित किया जाता है। उनके साथ ही शिवगणों की पूजा के लिए भी बर्तनों की स्थापना की जाती है।
वटुक परिवार की स्थापना के लिए पंडित परिवारों में बड़ी सी पीतल की गागर व अन्य तेरह बर्तनों को प्रयोग में लाया जाता है। समय के साथ प्रचलन में बदलाव आया है। इससे पहले वटुक को अक्सर मिट्टी के घड़े में ही प्रतिष्ठापित किया जाता था, जो अब समय के साथ बदल गया है।
हेरथ त्रुवह को होने वाली शिव विवाह पूजा में वटुक स्थापना के बाद सबसे पहले देव पूजा की जाती है। भगवान शिव को नाना प्रकार के स्नान करवाने के बाद उन्हें फूलों वस्त्रों व जनेऊ से अलंकृत किया जाता है। आग जलाकर देवताओं को आहुति के अलावा पितरों को भी आहुति दी जाती है। इस में द्रव का भी उपयोग किया जाता है। इस बीच घर में जो पकवान बनाए जाते हैं उनका भोग भगवान शिव को लगाया जाता है। भगवान शिव के गणों के लिए मांस मछली के पकवान बनाए जाते हैं। उनके भोग के लिए 'वटुक' के साथ 'रिजडयूल' बर्तन की स्थापना भी की जाती है। 'हेरथ त्रुवह' के दिन घर के बड़े व्यक्ति को व्रत रखना पड़ता है, जिसे वह भगवान शिव को भोग लगाने के बाद ही तोड़ता है। अगले दिन पंडितों में 'सलाम' की प्रथा है। हेरथ त्रुवह के बाद वटुक की अमावस तक पूजा की जाती है बाद में बहते पानी में उसका विसर्जन किया जाता है। तिला अष्टमी तक भगवान शिव का प्रसाद सभी-सगे संबंधियों में बांट दिया जाता है।