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इस शक्तिपीठ में मूर्ति की नहीं यंत्र की होती है पूजा

गुजरात का मां अम्बा-भवानी मदिर 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख पीठ है। माता सती के शरीर के जब भगवान विष्णु ने 52 टुकड़े किये तब उनके शरीर के अवशेष जहाँ जहाँ गिरे उन सभी जगहों को आज शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। गुजरात का मां अम्बा-भवानी मंदिर

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 10 Mar 2016 01:04 PM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2017 01:21 PM (IST)
इस शक्तिपीठ में मूर्ति की नहीं यंत्र की होती है पूजा
इस शक्तिपीठ में मूर्ति की नहीं यंत्र की होती है पूजा

गुजरात का मां अम्बा-भवानी मदिर 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख पीठ है। माता सती के शरीर के जब भगवान विष्णु ने 52 टुकड़े किये तब उनके शरीर के अवशेष जहाँ जहाँ गिरे उन सभी जगहों को आज शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। गुजरात का मां अम्बा-भवानी मंदिर उन्ही शक्तिपीठ में से एक हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। यहांं मां का एक श्री यंत्र स्थापित है। इस श्री यंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अम्बे यहां विराजमान हैं। नवरात्र में यहां का पूरा वातावरण शक्तिमय रहता है।

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गुजरात स्थित यह मंदिर पालनपुर से लगभग 65 कि.मी, आबू पर्वत से 45 कि.मी, आबू रोड से 20 किमी, श्री अमीरगढ़ से 42 कि.मी, कडियाद्रा से 50 कि.मी. दूरी पर गुजरात-राजस्थान सीमा पर अरासुर पर्वत के समीप स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है। इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम 1975 से शुरू हुआ था और तब से अब तक जारी है। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊंचा है। शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं।
मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है। इस पहाड़ पर भी देवी मां का प्राचीन मंदिर स्थापित है। माना जाता है यहां एक पत्थर पर मां के पदचिह्न बने हैं। पदचिह्नों के साथ-साथ मां के रथचिह्न भी बने हैं। अम्बाजी के दर्शन के बाद श्रद्धालु गब्बर जरूर जाते हैं।
अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहां आ चुके हैं। हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा के मौके पर यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में गरबा करके शक्ति की आराधना की जाती है। समूचे गुजरात से कृषक अपने परिवार के सदस्यों के साथ मां के दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं।
व्यापक स्तर पर मनाए जाने वाले इस समारोह में भवई और गरबा जैसे नृत्यों का प्रबंध किया जाता है। साथ ही यहां पर सप्तशती का पाठ भी आयोजित किया जाता है। भाद्रपदी पूर्णिमा को इस मंदिर में एकत्रित होने वाले श्रद्धालु पास में ही स्थित गब्बरगढ़ नामक पर्वत श्रृंखला पर भी जाते हैं, जो इस मंदिर से दो मील दूर पश्चिम की दिशा में स्थित है। प्रत्येक माह पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहां मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। अम्बाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है।

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