यहां होली पर मंदिर के पास एक घर में देवता को आदर से बिठाया जाता है
देवता का रथ जिसे करडु कहते हैं इसे लोगों द्वारा सिर पर उठाया जाता है। यह बड़े से टोकरे की तरह होता है।
By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 06 Mar 2017 04:38 PM (IST)Updated: Mon, 06 Mar 2017 04:43 PM (IST)
फाल्गुन यानी मार्च का माह आते ही हिमाचल प्रदेश के ऊपरी क्षेत्रों जैसे किन्नौर, लाहुल स्पिति, कुल्लू और मंडली में मेलों का आयोजन शुरू होता है। यह मेला देवताओं से संबंधित होते हैं। फाल्गुन की संक्राति से इस मेले की शुरुआत होती है। इस मेले को फागली भी कहते हैं। इसमें एक क्षेत्र के देवता अपने मुख्य देवता के यहां फागली मनाते हैं। फागली का यह पर्व कहीं एक दिन, तीन दिन या फिर सात दिनों तक भी चलता है।
इन दिनों ग्रामीण लोग अपने घर के चूल्हों पर बैठल (धूप की जड़ी या एक विशेष पदार्थ) अर्पित करते हैं, ताकि देवता के लौटने के बाद वो वापिस न चले जाएं।यहां मलाणा के जमलू देवता की फागली प्रसिद्ध है। मलाणा में यही एकमात्र पर्व है जब देवता का सारा साज-सामान बाहर निकाला जाता है। इन दिन यहां वर्फ गिरती है, ऐसे में यहां पहुंचना थोड़ा कठिन होता है।
फागली पर्व फरवरी के आखिर से मार्च के आखिर में मनाया जाता है। देवता भी वर्ष में तीन बार मंदिर से बाहर निकलते हैं एक बार फागली में, दूसरी बार ज्येष्ठ में साजा, और तीसरी बार जन्माष्टमी पर।
इन क्षेत्रों की श्रंखला में एक ऐसा ही गांव है 'देउ अंबल'। इस गांव से किसी भी देवता का रथ भ्रमण पर नहीं जाता है। यहां केवल तीन निशान ,घंटी, धड़छ और खंडा हैं। हालांकि देवता का रथ जिसे करडु कहते हैं इसे लोगों द्वारा सिर पर उठाया जाता है। यह बड़े से टोकरे की तरह होता है।
इसलिए इस मंदिर से केवल घंटी, घंटी, धड़छ और खंडा को ही मेले में भ्रमण पर ले जाया जाता है। मान्यता है कि यह उस देवता के अंश है। पर्व के अंतिम दिन, जो कि जगह के लिहाज से अलग-अलग होता है। मंदिर के पास एक घर में देवता को आदर से बिठाया जाता है। और पूजा की जाती है। और वापिस देवता अपने मंदिर की ओर चले जाते हैं।
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