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इसीलिए तो यहाँ बलि देने की परम्परा आज भी बरकरार है

कोलाकता वाली माँ काली माँ से मांगी गई सभी मुरादें क्षण में पुरी हो जाती है.! सिद्धि प्राप्ति के लिए पंडितों और साधुओं का जमावड़ा लगा रहता है!

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 04 Nov 2016 03:36 PM (IST)Updated: Fri, 04 Nov 2016 03:48 PM (IST)
इसीलिए तो यहाँ बलि देने की परम्परा आज भी बरकरार है

कोलाकता वाली माँ काली, यहाँ दिल से मांगी गई मुराद क्षण में पुरी करती है ! कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नो घोरा प्रचोदयात्। कोलकता का नाम पहले कालिकाता था, जो माँ काली के ही नाम पर रखा गया था! यहाँ जन-जन के दिल में और घर-घर में माँ काली विराजमान हैं! कहते हैं माँ काली की दर्शन मात्र से सब दुःख दूर हो जाते हैं!

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माँ से मांगी गई सभी मुरादें क्षण में पुरी हो जाती है.! इसीलिए तो यहाँ बलि देने की परम्परा आज भी बरकरार है! मंगलवार और शनिवार को विशेष भीड़ होती है! सिद्धि प्राप्ति के लिए पंडितों और साधुओं का जमावड़ा लगा रहता है! इसीलिए कोलकाता महानगरी समेत पुरे देश में काली माँ की पूजा की जाती है। जिस प्रकार शेरोंवाली माँ के मंदिर में जगराता होता है, उसी प्रकार काली माँ के मंदिर में प्रत्येक अमावश्या को यहाँ विशेष पूजा अर्चना होता है। इसी कारण कोलकातावासी माँ काली के भक्त हैं तथा उनके शक्ति रूप को मानते हैं।

काली मंदिर में दर्शन किए बिना कोलकाता की सैर अधूरी मानी जाती है। हुगली नदी के पूर्वी तट पर कालीघाट स्थित काली मंदिर सन 1855 में बनाया गया था। इस पुरानी इमारत में दुर्गादेवी तथा शिव की मूर्ति की स्थापना की गई है। कालीघाट में स्थित इस पौराणिक मंदिर में प्रवेश करने के लिए आपको उपस्थित भक्तजन की भीड़ का सामना करना पड़ेगा। पतली गली में स्थित, फूलों की दुकान, मिठाइयों तथा पूजा की सामग्री से सजी हुई दुकानों के बीच से गुज़रना पड़ता है। माँ महाशक्ति के बारे में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार देवी सती ने जब अपने पिता दक्ष के यहाँ अपमानित होकर यज्ञ में स्वयं को भस्म कर लिया तब क्रोध में आकर यज्ञ ध्वंस के समय भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया। इस समय माता सती के शरीर के अंश कहीं-कहीं धरती पर गिरे। कहते हैं कि उनके पाँव के अंश कोलकाता में जहाँ माँ काली मंदिर बना है, वहाँ गिरे थे। इन अंशों ने पत्थर का रूप धारण किया था। इसी की पूजा-अर्चना की जाती है। एक और कथा भी प्रचलित है कि भागीरथी नदी के तट पर एक भक्त ने पाँव के अँगूठे के आकार का पत्थर पाया था जो स्वयंभू लिंग था और नकुलेश्वर भैरव का प्रतीक था। भक्त इसे जंगल में ले गया और माँ काली की पूजा करने लगा। कोलकाता स्थित प्रसिद्ध काली माँ का मंदिर बहुत ही भव्य है। इस मंदिर की दीवारों पर बनाई गई टेराकोटा की चित्रकला के अवशेष यहाँ दिखाई देते हैं। मंदिर के पुजारी काली माँ की मूर्ति को स्नान कराते हैं जिसे स्नान यात्रा के नाम से जाना जाता है। ऐसा साल में एक बार किया जाता है। इस दिन अनगिनत भक्तजन आते हैं। काली मंदिर में दुर्गा पूजा, नवरात्रि तथा दशहरा के दिन देवी की विशेष पूजा की जाती है। इस पूजा का समय अक्टूबर के महीने में तय समय के अनुसार रखा जाता है। मंदिर के पट तड़के 3.00 से लेकर प्रात: 8.00 बजे तक खुले रहते हैं तथा प्रतिदिन प्रात: 10.00 से लेकर संध्या 5.00 बजे तक भक्तजन मंदिर में पूजा-अर्चना कर सकते हैं। पूजा का समय 6.00 बजे से लेकर रात के 8.30 तक रहता है। काली माँ की पूजा श्रद्धा तथा आस्था के साथ की जाती है। अमावस्या के दिन मंदिर में काली माँ के लिए महापूजन का आयोजन किया जाता है। रात्रि के 12.00 बजे शक्तिरूपी देवी की आरती की जाती है। माँ को गहनों से सजाया जाता है तथा आरती के बाद माँ के चरणों में भोग चढ़ाया जाता है। आभूषणों तथा लाल फूलों की माला से माँ काली की प्रतिमा को सजाया जाता है।

मुख्य प्रथा जो मंदिर में प्रचलित है वह है बलि जिसका रूप वर्तमान में बदल गया है। पहले बकरे की ज्यादा संख्या में बलि चढ़ाई जाती थी, आजकल अनाज और फल की भी बलि होती है। कहा जाता है कि देवी के मंदिर में काली माँ जागृत अवस्था में हैं। माँ के द्वारा यहाँ पर आए भक्तजन की प्रार्थना स्वीकार की जाती है। देवी उनकी मनोकामना पूर्ण करती हैं!

कैसे पहुंचें : ट्रेन द्वारा : देश के किसी भी कोने से हावड़ा और सियालदह रेलवे स्टेशन पहुंचें, यहाँ से बस और टैक्सी की सुविधा प्रयाप्त है!

हवाई मार्ग : देश और विदेश के किसी भी कोने से नेताजी सुभास चन्द्र बोस इंटरनेश्नल एअरपोर्ट पहुंचें, यहाँ से बस और टैक्सी के साथ-साथ प्राइवेट गाड़ियाँ भी मिलती है.। कालीघाट, माँ काली मंदिर : हावड़ा और सियालदह से लगभग ६ कि.मी. कि दुरी पर स्थित है.।


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