जानें केरल के इन मंदिरों के पीछे क्या है रहस्य
केरल में कई ऐसे रहस्यमय मंदिर हैं जो अपनी भव्यता और चमत्कारों के लिये जाने जाते हैं। हम आप को आज केरल उन सबसे प्रसिद्ध मंदिरों से रुबरु करवायेंगे जो विश्व में अपनी अलग पहचान रखते हैं।
पद्मनाभस्वामी मंदिर
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम स्थित प्राचीन हिन्दू वैदिक मंदिर पद्मनाभस्वामी अपनी भव्यता और रहस्यों के चलते विश्व में प्रसिद्ध है। कहा जाता है इस मंदिर को कलयुग की शुरुआत में बनाया गया था। भगवान विष्णू की यहां शेष शैया पर लेटी हुई मूर्ति विराजमान है। इस मूर्ति की लंबाई 18 फीट है। दिवाकरा मुनि नाम के एक ब्राम्हण को भगवान विष्णू ने दर्शन दिये थे। दिवाकरा मुनि के यहां भगवान विष्णू ने बालक के रुप में जन्म लिया था। वो बच्चा उसी स्थान पर विलुप्त हो गया जहां मंदिर बनाया गया है। मान्या है कि भगवान विष्णू इसे मंदिर में निवास करते हैं। ये मंदिर अपने बहुमूल्य खजाने के लिये भी जाना जाता है। कहा जाता है यहां एक विशेष द्वारा है जिसे मंत्रोच्चरण कर के ही खोला जा सकता है। इस मंदिर में सिर्फ हिन्दुओं को प्रवेश की मान्यता प्रदान की गई है। यहां धोती पहन कर दर्शन किये जाते हैं।
शबरी माला श्री अय्यप्पन मंदिर
शबरी माला श्री अय्यप्पन मंदिर देश के सबसे प्राचीन और रहस्यमय मंदिरों में से एक है। केरल के पथानामथिट्टा जिले की पहाडि़यों पर बना हुआ है। इस मंदिर में प्रति वर्ष करोड़ो लोग दर्शन के लिये आते हैं। यहां 10 वर्ष से 50 वर्ष तक की महिलाओं का प्रवेश निषेध है। नवंबर से जनवरी में यहां दर्शनों के लिये लाखों करोड़ों भक्तो की भीड़ जमा होती है। यहां पर मन और मस्तिष्क को काबू करना सिखाया जाता है। मंदिर में पूजन के लिये नारियल में घी भरा जाता है। चावल और केला एकत्र किया जाता है। मंदिर तक जाने के लिये 4 से पांच किलोमीटर पैदल पहाडि़यों पर चढ़ना होता है। कहा जाता है यहां के राजा मणिकंदन ने एक बच्चे को गोद लिया था। बालक में कुछ शक्तियां थीं। भगवान ने स्वप्न में आकर राजा से कहा कि क्या वो सबरीमाला में एक मंदिर का निर्माण करवा सकता है। भगवान ने राजा को जंगल में दर्शन दिये। इसके बाद राजा ने वहां एक मंदिर का निर्माण करवाया और इस मंदिर को भगवान अय्यप्पन को सौंप दिया।
गुरुवायुर मंदिर
केरल के गुरुवायुर में स्थित गुरुवायुर मंदिर बाल गोपाल श्री कृष्ण का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। ये भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। यहां भगवान कृष्ण की पूजा गुरुवायुरप्पन के रूप में की जाती है। मंदिर में भगवान विष्णू के दस अवतारों का भी वर्णन किया गया है। मान्यता है कि इस मंदिर में जिस मूर्ति की स्थापना की गई है वह मूर्ति द्वारिका की है। एक बार जब द्वारिका में भयंकर बाढ़ आई तो यह मूर्ति बहगई। देव गुरु बृहस्पति को भगवान की ये मूर्ति मिली। उन्होंने वायु की सहायता से इस मूर्ति को उपयुक्त स्थान पर पहुंचा दिया। वायु और बृहस्पति ठस मूर्ति की स्थापना के लिये एक उपयुक्त स्थान ढूंढ रहे थे। तभी वह केरल पहुंचे। जहां उन्हें माहादेव और माता पार्वती के दर्शन हुये। महादेव के कहने पर बृहस्पति और वायु ने उस मूर्ति की स्थापना की। गुरु और वायु के नाम पर ही इस मंदिर का नाम गुरुवायुर श्रीकृष्ण मंदिर पड़ा।
मन्नारसला श्री नागराज मंदिर
केरल में स्थित मन्नारसला श्री नागराज मंदिर नाग देवताओं के लिये जाना जाता है। कहा जाता है यहां नागरज स्वयं वास करते हैं। केरल में नागों की पूजा करने वाले सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। इस अतिप्राचीन मंदिर का उपवन भारी पेड और ढेरों लताओं से भरा है जो इसे रहस्यमय और जादु परिवेश देता है। भगवान परशुराम का नाम इस मंदिर से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है भगवान परशुराम ने जब भगवान शिव के फरसे को जमीन पर पटका तो जमीन का एक टुकड़ा कट के समुद्र में चला गया। इस टुकड़े को केरल के नाम से जाना जाता है। यहां की मिट्टी उपजाऊ नहीं थी। यहां नागों का जहर फैला हुआ था। इस पर परशुराम ने भोलेनाथ को प्रसन्न कर इसे ठीक करने का उपाय पूछा। भगवान ने कहा कि नागराज वासुकी इसे ठीक कर सकते हैं। इसपर भगवान परशुराम ने वासुकी को प्रसन्न की इस भूमि को ऊपजाऊ बना दिया। यहां नाग दोष का निवारण भी किया जाता है।
अटुकल भगवती मंदिर
अटुकल भगवती मंदिर केरल के त्रिवेंद्रम में स्िथत है। अटुकल मंदिर देवी भगवती को समर्पित है। कहा जाता है कि देवी भगवती ही सबसे बड़ी शक्ति हैं। वहीं संघारक भी हैं। वो अपने भक्तों की रक्षा अपने बच्चों की तरह करती हैं। अटुकल मंदिर अपनी खूबसूरती और आर्कीटेक्चर के लिये प्रसिद्ध है। इस मंदिर की बनावट बहुत खास है। मंदिर को केरल और तमिलनाडु दोनो राज्यों के आर्कीटेक्चर को देखकर बनाया गया है। यहां एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि एक कनगी ने अपने पति को न्याय की आस में खो दिया था। कनगी ने वहां के राजा से इस बात का बदला दिया। कनगी ने पूरे शहर को तबाह कर दिया। उस शहर की देवी के कहने पर कनगी ने अपना श्रॉप वापस लिया। भक्त आस्था और विस्वास के साथ इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं।इस मंदिर में माथा टेकने के बाद भक्तों की हर मुराद पूरी की जाती है।
चोट्टानिकारा मंदिर
केरल की पंचायत चोट्टानिकारा में चोट्टानिकारा देवी मंदिर का निर्माण किया गया था। ये देवी शक्ति का मंदिर है। चोट्टानिकारा देवी की पूजा माता शक्ति के तीन रूपो में होती है। महासरस्वती जो ज्ञान की देवी हैं। महालक्ष्मी जो धन की देवी हैं। मां दुर्गा जो शक्ति की देवी हैं। माना जाता है यहां बुरी आत्माओं को नष्ट किया जाता है। इस मंदिर की स्थापना 1500 साल पहले हुई थी। माना जाता है यहां एक राक्षस रहता था। जो रोज जानवरों को खाता था। एक दिन जब कोई जानवर नहीं मिला तो लकड़हारे की बेटी ने एक गाय का बछड़ा पाला था उसे राक्षस को सौपने के लिये कहा गया। लड़की ने बछड़े की जगह खुद को भेजना ज्यादा ठीक समझा। तब बछड़े ने देवी का रुप लिया और बताया कि वो रुप बदल कर यहां रह रहीं थी।