कभी मंदिर की चांदी बेच बनता था घृत मंडल
आज जिस बज्रेश्वरी देवी मंदिर में लाखों-करोड़ों रुपये की चांदी चढ़ाई जाती है, एक दिन ऐसा भी था जब चांदी बेचकर घृत मंडल बनाया जाता था। जानकारी के अनुसार करीब 50 साल पहले मंदिर के पुजारियों को देसी घी के लिए मंदिर की चांदी को बेचना पड़ता था, जिससे घृत पर्व का आयोजन हो सके। प्राचीन काल से शुरू हुई
कांगड़ा। आज जिस बज्रेश्वरी देवी मंदिर में लाखों-करोड़ों रुपये की चांदी चढ़ाई जाती है, एक दिन ऐसा भी था जब चांदी बेचकर घृत मंडल बनाया जाता था।
जानकारी के अनुसार करीब 50 साल पहले मंदिर के पुजारियों को देसी घी के लिए मंदिर की चांदी को बेचना पड़ता था, जिससे घृत पर्व का आयोजन हो सके। प्राचीन काल से शुरू हुई घृत पर्व की परंपरा का निर्वाह आज भी किया जा रहा है, परंतु गुजरे वक्त में संसाधनों की कमी के बावजूद मंदिर के पुजारियों को ही घृत पर्व के लिए देसी घी का इंतजाम करना पडता था। यहां तक कि कई बार मंदिर की चांदी को बेच कर देसी घी को खरीदा गया। करीब पचास साल पहले घृत पर्व का आयोजन कैसे किया जाता था, इस पर मंदिर के वरिष्ठ पुजारी पंडित राम प्रसाद शर्मा ने बताया कि दसवीं की शिक्षा के दौरान उन्होंने पहली बार देसी घी से मक्खन बनाने का कार्य किया था और उस दौरान अस्सी किलो मक्खन तैयार कर मां की पिंडी पर चढ़ाया गया।
1960 के दशक में उनके साथ पं. जोगेश कुमार, पं. संत कुमार, पं. किशोरी लाल पं. रवि चंद घृत पर्व के लिए मक्खन बनाते थे। उन्होंने बताया कि मंदिर के तालाब वालबुद्धि को धर्म में लगाकर जीवनयापन करें
स्थान पर भट्टी बनी हुई थी वहां देसी घी को पिघलाने का कार्य हुआ करता था। देसी घी के लिए कुएं से पानी लाने के लिए एक व्यक्ति को कार्य पर लगाया जाता था। जिससे पानी में देसी घी को रगड़ने से मक्खन तैयार किया जा सके, लेकिन आज पानी का इंतजाम मोटर से हो रहा है।
1989 से शुरू हुआ भगवती जागरण-
घृत पर्व के लिए 1989 में पहली बार जागरण का आयोजन किया गया, जिससे लोगों को इस परंपरा का जानकारी मिली और लोगों की आस्था बढ़ी। इस आयोजन के बाद मंदिर में जागरण का आयोजन होने लगा और श्रद्धालुओं द्वारा देसी घी दान में देने के लिए आगे आने लगे। लगभग छह साल पहले केके शर्मा द्वारा करवाए गए भगवती जागरण के आयोजन से घृत पर्व के आयोजन की जानकारी दूर-दूर तक पहुंची, जिससे अब क्विंटल के हिसाब से मक्खन का लेप माता पर किया जा रहा है।
कई गुणा बढ़ी भागीदारी
'खुशी है कि आज के दौर में इस आयोजन में श्रद्धालुओं की भागीदारी व आस्था पहले से कई गुणा बढ़ गई है।'
-पं. राम प्रसाद शर्मा, मंदिर के वरिष्ठ पुजारी।
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