शापित पूर्णासेरा
देहरादून, जागरण संवाददाता। नंदकेसरी से फल्दियागांव प्रस्थान करते वक्त राजजात मार्ग के गांव पूर्णासेरा पहुंचती है। यहां भेकलझाड़ी की छंतोली यात्रा का हिस्सा बन जाती है। मान्यता कि जब देवी कैलाश जा रही थी, तब दैत्य से बचने के लिए भागते हुए लहलहाते खेतों में रास्ता बनाकर बालियों के बीच छिप गई। दैत्य के पहचान लेने पर देवी क्रोधित हो गई
देहरादून, जागरण संवाददाता। नंदकेसरी से फल्दियागांव प्रस्थान करते वक्त राजजात मार्ग के गांव पूर्णासेरा पहुंचती है। यहां भेकलझाड़ी की छंतोली यात्रा का हिस्सा बन जाती है। मान्यता कि जब देवी कैलाश जा रही थी, तब दैत्य से बचने के लिए भागते हुए लहलहाते खेतों में रास्ता बनाकर बालियों के बीच छिप गई। दैत्य के पहचान लेने पर देवी क्रोधित हो गई और उस स्थान पर कभी भी फसल हरी न होने का श्राप दे डाला।
मान्यता है कि शापित होने के ही कारण ही पूर्णासेरा में आज भी फसल नहीं उगती। बाद में जिस झाड़ी के बीच छिपकर देवी ने दैत्य से अपनी जान बचाई थी, वह झाड़ी देवी कृपा से हर मौसम में हरी-भरी दिखाई देती है। कुनियाल ब्राह्मणों द्वारा इस क्षेत्र से होमकुंड तक विशेष पूजा परंपरागत ढंग से की जाती है। मार्ग में देवाल विकासखंड में भी शिव मंदिर श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहता है। यहां प्राचीन मूर्तियां विद्यमान हैं। मंदिर के समीप ही राजजात के पहुंचने पर बड़ा मेला लगता है। इसके बाद यात्र में शामिल देवी-देवताओं की छंतोलियां हाटकल्याणी व उलंग्रा में पूजा पाकर समुद्रतल से 1405 मीटर की ऊंचाई पर स्थित फल्दियागांव पहुंचती हैं। उलंग्रा में एक प्राचीन भवन की कलाकृति पर्यटकों के लिए दर्शनीय है। गांव के नीचे नदी तट पर अवस्थित जैन बिष्ट मंदिर में प्राचीन पाषाण मूर्तियां विद्यमान हैं। गांव में रेवाती देवता, गुलमोहर, काली मंदिर, लाटू, मदन दानू, पडियार गोरिल के मंदिर, लिंग व पत्थर की मूर्ति का अपना अलग ही आकर्षण है। नंदकेसरी से फल्दियागांव की दूरी 10 किमी है।