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मां के चमत्कार पर टिका है नैनीताल का अस्तित्व

मान्यता है कि नैनीताल में देवी सती की बाईं आंख गिरी, जो रमणिम सरोवर के रूप में रूपांतरित हो गई।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 18 Mar 2017 01:04 PM (IST)Updated: Fri, 24 Mar 2017 12:31 PM (IST)
मां के चमत्कार पर टिका है नैनीताल का अस्तित्व
मां के चमत्कार पर टिका है नैनीताल का अस्तित्व
नैनीताल । सरोवर के इर्द-गिर्द बसा है खूबसूरत शहर नैनीताल। प्रकृति की सुंदरता को समेटे इस शहर में अलौकिक आस्था भी बसती है मां नयना देवी के लिए। भूगर्भीय दृष्टिï से संवेदनशील नैनीताल में जिस तेजी से बसासत का ग्राफ बढ़ा, उसी तेजी से खतरे भी बढ़ते गए, लेकिन मां की कृपा ने कभी भी यहां के लोगों के करीब खतरे को फटकने नहीं दिया। पूरे प्रदेश में बादल फटने की घटनाएं हर साल होती हैं। नैनीताल में बादल इस कदर बरसते हैं कि लगता है किसी न किसी पहाड़ी से कभी बड़ा भूस्खलन न हो जाए। थोड़ा-बहुत नुकसान तो शहर ने झेला, लेकिन मां की अनुकंपा ने कभी इसके स्वरूप को बिगडऩे नहीं दिया।
   स्थानीय लोगों के साथ ही देश-विदेश के पर्यटकों की अपार आस्था है मंदिर पर। मंदिर में सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। जबकि श्रीराम सेवक सभा की ओर से आयोजित नंदा देवी महोत्सव और सर्वजनिक दुर्गा पूजा कमेटी की ओर से आयोजित दुर्गा पूजा महोत्सव में संख्या बढ़ जाती है।
कैसे पहुंचें
हल्द्वानी से अगर वाया ज्योलीकोट निकलते हैं तो तल्लीताल में बस स्टेशन है। यहां से करीब डेढ़ किमी दूर सरोवर किनारे स्थित है मां नयना देवी का मंदिर। भक्त बस स्टेशन से ठंडी सड़क या माल रोड से पैदल ही अथवा टैक्सी से मंदिर पहुंच सकते हैं। अगर वाया कालाढूंगी आएं तो मल्लीताल या फिर गाड़ीपड़ाव से पैदल ही मां के दरबार तक पहुंचा जा सकता है।
मंदिर का इतिहास
19वीं शताब्दी में नैनीताल की खोज के बाद नैनीताल के पिलिग्रिम कॉटेज में पहला मकान बनाने वाले मोती राम साह द्वारा यह मंदिर बनाया गया। मंदिर पहले बोट हाउस क्लब व कैपिटल सिनेमाघर के मध्य में स्थित बताया जाता है। 1880 के विनाशकारी भूस्खलन में मंदिर को नुकसान पहुंचा था। बताते हैं कि मां नयना देवी ने मोती राम साह के बेटे अमरनाथ साह को स्वप्न में उस स्थान के बारे में बताया जहां मूर्ति दबी पड़ी थी। इसके बाद अमरनाथ साह द्वारा मित्रों व अन्य लोगों के सहयोग से देवी की मूर्ति का उद्धार करने के साथ ही नए सिरे से मंदिर का निर्माण कराया गया। झील किनारे यह मंदिर 1883 में बनकर तैयार हो गया। अमरनाथ साह के निधन के बाद उनके बेटे उदयनाथ फिर प्रपौत्र राजेंद्र साह मंदिर की देखरेख करते रहे। 21 जुलाई 1994 को मां नयना देवी मंदिर अमर उदय ट्रस्ट का गठन होने के बाद व्यवस्थाएं न्यास के हाथ में आ गई। मंदिर के ट्रस्टी जेपी साह बताते हैं कि ट्रस्ट के माध्यम से सालभर अनेक धार्मिक क्रियाकलाप आयोजित किए जाते हैं।
धार्मिक मान्यताएं
पुराणों के अनुसार अत्री, पुलस्य व पुलह ऋषियों ने इस घाटी में तपस्या करते हुए तपोबल से मानसरोवर का पानी खींच लिया था। इसलिए नैनी झील के जल को पवित्र माना जाता है। नयना देवी मंदिर झील के किनारे स्थित है। यह भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। पुराणों के अनुसार देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ कराया और उसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। इससे खिन्न होकर देवी सती ने अगले जन्म में भी शिव की धर्मपत्नी बनने की कामना के साथ यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इससे स्तब्ध व दु:खी होकर भगवान शिव ने देवी सती की देह अपने कंधे पर उठाई और तांडव करने लगे तो सृष्टिï का संतुलन बिगडऩे से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। इसके बाद भगवान विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से सती की देह को खंड-खंड किया गया। सती के शरीर के अंश जहां-जहां गिरे, कालांतर में वहीं शक्तिपीठ बन गए। मान्यता है कि नैनीताल में देवी सती की बाईं आंख गिरी, जो रमणिम सरोवर के रूप में रूपांतरित हो गई। इस मान्यता की पुष्टिï चायना पीक से झील का आकार आंख की तरह होना भी करता है।

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