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मचैल यात्रा: प्रकृति की गोद में की गई इस यात्रा को लोग जीवन भर नहीं भूलते

मचैल माता का मंदिर काष्ठ का बना हुआ है।मंदिर के मुख्य भाग में समुद्र मंथन का आकर्षक और कलात्मक दृश्य अंकित है।,

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 03 Aug 2016 12:21 PM (IST)Updated: Wed, 03 Aug 2016 12:56 PM (IST)
मचैल यात्रा: प्रकृति की गोद में की गई इस यात्रा को लोग जीवन भर नहीं भूलते

किश्तवाड़, असाल गांव में माता सरथल का सिद्धपीठ हो या पाडर की दुर्गम पहाडिय़ों के बीच मां रणचंडी का मंदिर है। इसके इतिहास, महत्व व लोकप्रियता को देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि इन देवियों के प्रति यहां के जनमानस में कितनी श्रद्धा व आस्था है।

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मचैल गांव किश्तवाड़ से 95 किलोमीटर और गुलाबगढ से तीस किलोमीटर दूर भूर्ज और भोट नाले के बीच स्थित अत्यंत खूबसूरत गांव है। दुर्गम पहाडिय़ों के बीच प्रकृति की गोद में बसे इस गांव के मध्य भाग में प्रसिद्ध मचैल माता का मंदिर काष्ठ का बना हुआ है। इस मंदिर के मुख्य भाग में समुद्र मंथन का आकर्षक और कलात्मक दृश्य अंकित है। मंदिर के बाहरी भाग में पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियां लकड़ी की पट्टिकाओं पर बनी हुई हैैं। मंदिर के भीतर मां चंडी एक पिंडी के रूप में विराजमान हैं। इस पिंडी के साथ दो मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें एक चांदी की मूर्ति है। इसके बारे में कहा जाता है कि बहुत पहले जंस्कार (लद्दाख) के बौद्ध मतावलंबी भोटों ने इसे मंदिर में चढ़ाया था। इसलिए इस मूर्ति को भोट मूर्ति भी कहते हैं। मूर्तियों पर कई प्रकार के आभूषण सजे हैं। मंदिर के सामने खुला मैदान है, जहां यात्री खड़े हो सकते हैं।

इस देवी पीठ के बारे में कई जनश्रुतियां हैं। कहते हैं कि जब भी किसी शासक ने मचैल के रास्ते जंस्कार या लद्दाख के क्षेत्र पर चढ़ाई की तो अपनी विजय के लिए माता से जरूर प्रार्थना की। सेना नायकों और योद्धाओं की इष्टदेवी होने के कारण ही इनका नाम रणचंडी पड़ा। जोरावर सिंह, वजीर, लखपत जैसे सेना नायकों ने जब जंस्कार या लद्दाख पर चढ़ाई की तो मां से प्रार्थना की और विजय हासिल की थी। वर्ष 1947 में जब जंस्कार क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में चला गया तो भारतीय सेना में कर्नल हुकूम सिंह ने माता के मंदिर में मन्नत रखी और जब वह जीत कर आए तो मंदिर में भव्य यज्ञ के आयोजन के साथ धातु की मूर्ति स्थापित की। दूसरी मूर्ति कर्नल यादव ने चढ़ाई थी।

वर्तमान में ठाकुर कुलवीर सिंह पाडर क्षेत्र में पुलिस अधिकारी के रूप में नियुक्त थे। उनका भी मचैल आना हुआ। यहां उन्हें माता की भव्यता और कृपा का एहसास हुआ और वह माता की भक्ति में लीन हो गए। उन्होंने वर्ष 1981 में मचैल यात्रा शुरू की। पहले यह यात्रा छोटे से समूह तक ही सीमित थी, लेकिन किश्तवाड़ व गुलाबगढ़ का मार्ग खुलने के बाद यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। यात्रा में धीरे-धीरे राज्य ही नहीं बाहरी राज्य पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश से भी श्रद्धालु आने लगे।

मचैल यात्रा भाद्रपद संक्रांति से दो दिन बाद 18 अगस्त भद्रवाह के चिनौत गांव से प्रांरभ होती है, जिसकी विधिवत पूजा की जाती है। छड़ी में हजारों लोग ढोल, नगाड़े जैसे वाद्य यंत्रों के सुरीले और दिव्य रागों से मां के जयकारे लगाते हुए चलते हैं। इस यात्रा का महत्वपूर्ण व पहला पड़ाव किश्तवाड़ होता है। इस यात्रा की एक कड़ी के रूप में महालक्ष्मी मंदिर पक्का डंगा जम्मू से भी एक छड़ी निकाली जाती है, जो किश्तवाड़ पहुंच कर यात्रियों के साथ मिल जाती है। इस तरह से यह यात्रा पूरे जम्मू संभाग की यात्रा बन जाती है। किश्तवाड़ में यात्रा का भव्य स्वागत होता है। यहां रात्रि विश्राम व खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है। अगले दिन हजारों की संख्या में स्त्री, पुरुष, बच्चे व बूढ़े यात्रा की विदाई करते हैैं। किश्तवाड़ से गुलाबगढ़ की यात्रा वाहनों से तय की जाती है, लेकिन इसके आगे पैदल सफर तय करना पड़ता है।

गुलाबगढ़ से प्रात:काल छड़ी मसू के लिए रवाना होती है। मसू से निकल कर छड़ी का अगला पड़ाव चशोती गांव होता है। चशोती से निकल कर अगले दिन यात्रा मचैल गांव पहुंचती है।

इन छोटे-छोटे गांव के लिए छड़ी का पहुंचना उत्सव के समान होता है। यहां के लोग अपने तरीके से छड़ी का स्वागत करते हैं और यात्रियों की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। जगह-जगह लंगर का इंतजाम होने के बावजूद स्थानीय लोग अपने घरों में भोजन कराते हैं और रात्रि विश्राम के लिए जगह देते हैं। पैदल चलने के कारण यह यात्रा थोड़ी कठिन जरूर होती है, लेकिन प्रकृति के अनुपम दृश्यों, पहाड़ों से गिरते झरनों, लंबे छायादार वृक्षों, फूलों व कहीं-कहीं भोट नाले को निहारते हुए यात्री सारी थकान भूल जाते हैैं। प्रकृति की गोद में की गई इस यात्रा को लोग जीवन भर नहीं भूलते। मंदिर में पहुंच कर मन उल्लास से भर जाता है। यहां पहुंच कर जैसे यात्री जन्म-जन्म के पुण्य प्राप्त कर सभी बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। अब इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु शिरकत करने लगे हैं। यात्रा की देखरेख कर रही सर्व शक्ति सेवक संस्था कोशिश कर रही है कि यह यात्रा माता वैष्णो देवी व बाबा अमरनाथ की तर्ज पर बोर्ड के अधीन हो जाए ताकि यात्रियों को और सुविधा मिल सके।

यात्रियों की सुरक्षा के पूरे प्रबंध किए गए

डीसी गुलाम नबी बलवान का कहना है कि यात्रियों की सुरक्षा के पूरे बंदोबस्त किए गए हैं। कई जगहों पर टेंट लगाए गए हैं। चिकित्सा सुविधा का पूरा इंतजाम किया गया है। यात्रियों के ज्यादा होने पर उन्हें गुलाबगढ़ में ही रोक दिया जाएगा। जब मचैल में जगह होगी तो यात्रियों को छोड़ेंगे। हेलीकॉप्टर वालों पर पूरी नजर रहेगी। उन्होंने कहा कि हम संस्था के लोगों से तालमेल बनाए हुए हैं। उम्मीद है कि यात्रा अच्छी तरह संपन्न होगी।

इन जगहों में लगेंगे लंगर

अठोली, गुलाबगढ़, मसू, सियेगी, कुंडेल, चशोती, हमोरी, दर्शनगेट व मचैल चिकित्सा केंद्र

गुलाबगढ़, मसू, कुंडेल, चशोती, हमोरी, मचैल में चिकित्सा केंद्र स्थापित हैं


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