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निधिवन में हर रोज कान्हा रचाते रास

भक्ति की शक्ति के आगे भगवान भी विवश होते हैं। अगर आपको इस पर यकीन नहीं तो एक बार वृंदावन जरूर आएं। यहां निधिवन में हर सुबह इसका प्रमाण भक्तजन अपनी आंखों से देखते हैं। मान्यता है कि आज भी राधा और कृष्ण यहां रास रचाने आते हैं। निधिवन वह

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 27 Nov 2014 11:30 AM (IST)Updated: Thu, 27 Nov 2014 11:37 AM (IST)
निधिवन में हर रोज कान्हा रचाते रास

वृंदावन। भक्ति की शक्ति के आगे भगवान भी विवश होते हैं। अगर आपको इस पर यकीन नहीं तो एक बार वृंदावन जरूर आएं। यहां निधिवन में हर सुबह इसका प्रमाण भक्तजन अपनी आंखों से देखते हैं। मान्यता है कि आज भी राधा और कृष्ण यहां रास रचाने आते हैं। निधिवन वह पवित्र स्थान है जहां संगीत साधना से स्वामी हरिदास ने अपने आराध्य बांकेबिहारी का प्राकट्य किया था।

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मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण एवं राधाजी अर्धरात्रि के बाद प्रतिदिन निधिवन में रास रचाने आते हैं। इसके बाद यहां मौजूद रंगमहल में शयन करते हैं। ठाकुरजी के लिए रंगमहल में प्रतिदिन प्रसाद (माखन मिश्री व लड्डू) रखा जाता है, शयन के लिए पलंग भी है। प्रतिदिन प्रात:काल रंगमहल में रखे पलंग की चादर पर पड़ी सलवटें देखकर प्रतीत होता है यहां निश्चित ही किसी ने रात्रि विश्राम किया है। साथ ही प्रसाद ग्रहण के भी चिन्ह मिलते हैं।

सेवायत भीकचंद्र गोस्वामी बताते हैं सालों से यह क्रम अनवरत जारी है। सेवायत बताते हैं कि रात में निधिवन में कोई जीव यहां तक कि पशु पक्षी भी परिसर में नहीं रहते। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति इस परिसर में रात्रि में रुका और भगवान की क्रीड़ा का दर्शन कर लिया तो वह सांसारिक बंधनों से मुक्ति पा जाता है। इस तरह की कई घटनाओं का भी उल्लेख है।

निधिवन स्थित विशाखा कुंड के बारे में कहा जाता है कि भगवान कृष्ण सखियों के साथ रास रचा रहे थे। इसी दौरान विशाखा सखी को थकान हुई तो उन्होंने पानी मांगा। इस पर श्रीकृष्ण ने अपनी वंशी से इस कुंड की खुदाई कर दी। जिससे पानी पीकर विशाखा सखी ने अपनी प्यास बुझाई। तभी से इसे विशाखा कुंड के नाम से जाना जाता है। इसी कुंड के निकट ठा. बांकेबिहारी का प्राकट्य स्थल है। निधिवन वास्तव में पेड़ों से घिरा स्थान है। यहां के वृक्षों को देखने से ही इनकी प्राचीनता का अहसास होता है। इस प्रकार के वृक्ष वृंदावन में सेवाकुंज एवं तटियास्थान पर ही देखने को मिलते हैं, इन वृक्षों की खासियत है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं हैं। इनकी डाली नीचे की ओर झुकी हुई हैं। मान्यता है कि ये वृक्ष भगवान को प्रणाम करने की मुद्रा में हमेशा रहते हैं।


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