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आइए जानें विभिन्न प्रदेशों व इलाकों में कैसे मनाई जाती है होली

भारत के प्रमुख फेस्टिवल होली में जितनी ऊर्जा और स्पंदन है, संभवत: उतनी किसी दूसरे त्योहार में नहीं। ऐसे में अगर आप इस त्योहार का संपूर्ण आनंद लेना चाहते हैं, उसे सेलिब्रेट करना चाहते हैं, तो विभिन्न प्रदेशों एवं इलाकों में खास अंदाज में मनाए जाने वाले होली के बारे

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 25 Feb 2015 12:26 PM (IST)Updated: Wed, 25 Feb 2015 12:41 PM (IST)
आइए जानें विभिन्न प्रदेशों व इलाकों में कैसे मनाई जाती है होली

भारत के प्रमुख फेस्टिवल होली में जितनी ऊर्जा और स्पंदन है, संभवत: उतनी किसी दूसरे त्योहार में नहीं। ऐसे में अगर आप इस त्योहार का संपूर्ण आनंद लेना चाहते हैं, उसे सेलिब्रेट करना चाहते हैं, तो विभिन्न प्रदेशों एवं इलाकों में खास अंदाज में मनाए जाने वाले होली के बारे में भी जान लें...

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बसंत की अंगड़ाई, मौसमी फूल और पछुआ हवा यानी पश्चिमी दिशा से बहने वाली हवा की सरसराहट फागुन का एहसास कराने लगी है। यूं कहें कि होली बस दस्तक देने ही वाली है। विविध भारत की सांस्कृतिक छटा को निहारने का इससे सुनहरा अवसर दूजा नहीं हो सकता, क्योंकि उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक, इस पर्व के अनेक रंग एवं रूप हैं, विस्मयकारी और आश्चर्यचकित करने वाले। इतनी मस्ती, अल्हड़पन और आत्मीयता किसी और फेस्टिवल में देखने को नहीं मिलती है।

बरसाने की होली

ब्रज-बरसाने की होली मनाने की परंपरा ही निराली है, जो भारत में कहीं और देखने को नहीं मिलेगी। कथा है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण अपनी प्रियतमा राधा संग होली खेलने नंदगांव आते थे। खूब सारी अठखेलियां, हास-परिहास होता था। गोपियां कान्हा के चिढ़ाने पर उन्हें डंडे लेकर दौड़ाती थीं। उस परंपरा को यहां के निवासियों ने

आज भी कायम रखा है और नाम दिया है लठ मार होली। हर साल बरसाने में आई

जइयो बुलाए गई राधा प्यारी....गीत के साथ इस होली महोत्सव की शुरुआत होती है। बरसाना की महिलाएं रंग-गुलाल लेकर निकलती हैं और लज्ञें (डंडा) से प्रतीक स्वरूप पुरुषों को मारती हैं। पुरुष भी बचाव के लिए बड़ी-सी मजबूत ढाल लेकर आते हैं। दोनों की अलग-अलग टोलियां होती हैं। आपको यह सब पढ़कर हैरानी हो सकती है,

लेकिन यही है इसका अनूठा स्वरूप। पूरी तरह मस्त होली।


मथुरा-वृंदावन के रंग

आपने मथुरा-वृंदावन-गोवर्धन आदि स्थानों की यात्रा तो पहले भी की होगी। लेकिन क्या कभी होली के दौरान यहां के खुशनुमा माहौल की अनुभूति की है? यहां होली की तैयारियां वसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाती हैं। इसके बाद पूरे 16 दिनों तक कृष्ण नगरी में त्योहार का सुरूर चढ़ा होता है। हर दिन किसी विशेष थीम पर कोई न कोई

आयोजन होता है। पूरे क्षेत्र के मंदिरों में रंगों और प्रार्थनाओं का दौर चलता है, गुलाल उड़ते हैं। फूलों की वर्षा होती है। बांके बिहारी मंदिर में पांच दिन का महोत्सव होता है। आप अगर इस पारंपरिक होली महोत्सव के गवाह बनना चाहते हैं, इसके उल्लास में शामिल होना चाहते हैं, तो मथुरा-वृंदावन का कोई विकल्प नहीं है।


बनारस नगरी में अल्हड़पन

शिवजी के प्रसाद भांग, पान और ठंडई की जुगलबंदी के साथ बनारस की होली का रंग ही अलहदा होता है। इतनी जीवंतता जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। बाबा विश्वनाथ की नगरी में गुलाल के रंगों में डूबी फाल्गुनी बयार भारतीय संस्कृति से हमारा परिचय कराती है। यहां की संकरी गलियों से निकलने वाली होली की सुरीली

धुन किसी को भी मस्ती में झूमने के लिए मजबूर कर सकती है। देश-विदेश के सैलानी गंगा घाटों पर आपसी सौहार्द्र के बीच अल्हड़ अंदाज में एक-दूसरे को रंगों से सराबोर करते हैं। बनारस की मटका फोड़ होली और हुरियारों के ऊर्जामय लोकगीत हर किसी को अपने रंग में रंग लेते हैं। फाग के रंग और सुबह-ए-बनारस का प्रगाढ़

रिश्ता यहां की विविधताओं का खूबसूरत एहसास कराता है। अपने अनूठेपन के साथ काशी की होली का अपना महत्व है, जो बाबा विश्वनाथ के दरबार से शुरू होती है। रंगभरी एकादशी के दिन काशीवासी भोले बाबा संग अबीर-गुलाल खेलते हैं और फिर सभी होलियाना माहौल में रंग जाते हैं। होली का यह सिलसिला बुढ़वा मंगल तक चलता

है। बनारस की होली का एक और मस्ती भरा रंग है होली की बारात। बैंड-बाजे के साथ निकलने वाली होली की इस बारात में बाकायदा दूल्हा रथ पर सवार होता है। बारात के नियत स्थान पर पहुंचते ही महिलाएं परंपरागत ढंग से दूल्हे का परछन करती हैं। मंडप सजाया जाता है, जिसमें दुल्हन आती है और फिर शुरू होती है वर-वधू के बीच बहस और दुल्हन के शादी से इंकार करने पर बारात रात में लौट जाती है।

पुरुलिया की पारंपरिक होली

पारंपरिक होली का ही अगर कुछ अलग रंग देखना हो, संगीत और नृत्य का आनंद लेना है, तो कोलकाता से 246 किमी. दूर बसे पुरुलिया जाएं। यहां की लाल मित्र्ी और वसंत में खिलने वाले पलाश के फूल जब आपका स्वागत करेंगे, तो वह दृश्य अप्रतिम होगा। यहां होली के समय वसंत उत्सव मनाने का रिवाज है। इसमें गुलाल के रंगों में

सराबोर स्थानीय लोग छाऊ नृत्य, दरबारी झूमर और नटुआ नृत्य आदि से इस तरह सम्मोहित कर देंगे, जिसकी आपने कल्पना नहीं की होगी। कई दिनों तक बांधर देउल मंदिर का बाहरी परिसर नृत्य, संगीत और रंगों में नहाया होता है। आप यहां बेफिक्री से एक या दो दिन ठहर सकते हैं। टेंटों में रहने की पूरी व्यवस्था की जाती है।

मुंबई में रंगों की बरसात

महाराष्ट्र के आसपास के इलाके और मायानगरी में होली का स्वरूप भी इसके मिजाज के अनुकूल होता है। परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत मिश्रण। कहीं रंग भरे पानी से सने युवा पार्टी करते नजर आते हैं, कहीं सड़कों पर टंगी माखन की हांडियां फोड़ने के लिए घूमते गोविंदाओं की टोली होती है। मस्ती और शोरगुल के बीच होली मनाने का अंदाज ही कुछ जुदा होता है। लोग भीगने और भिगोने को आतुर रहते हैं। वैसे, समूचे महाराष्ट्र और मालवा अंचल में होली का जश्न करीब पांच दिनों तक चलता है। होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी से लेकर रंग पंचमी तक यह रंग पर्व पूरे शबाब पर होता है।दिल्ली की फ्यूजन होली पारंपरिक के बाद अगर मॉडर्न युग की होली की बात करें, तो दिल्ली का काउ फेस्टिवल हाजिर है। यह एक संगीत महोत्सव है, जो हर वर्ष होली के अवसर पर दिल्ली में आयोजित किया जाता है। इसमें एक तरफ रंग-गुलाल उड़ाए जाते हैं, भांग परोसे जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ

म्यूजिक और डांस का मदमस्त संगम देखने को मिलता है। नामी-गिरामी बैंड्स लाइव परफॉर्मेंस देते हैं। एक बिल्कुल अलग प्रकार का कल्चरल फ्यूजन होता है। हां, इसमें शामिल होने के लिए आपको टिकट लेना होगा।

जयपुर का गज महोत्सव

अपने रंगीलेपन के लिए पहचाने जाने वाले राजस्थान की होली भी कम निराली नहीं होती है। होली की पूर्व संध्या पर जयपुर में गज महोत्सव का आयोजन होता है। शहर के मशहूर रामबाग पोलो ग्राउंड में एक विशाल

परेड से इसकी शुरुआत होती है। परेड में खूबसूरत और भव्य तरीके से सजे-धजे हाथी, ऊंट, घोड़े और लोक कलाकार सड़कों पर नाचते हुए निकलते हैं। इसके अलावा, यहां हाथियों के बीच पोलो का खेल और रेस होती है। महोत्सव का खास आकर्षण विदेशी और लोकल सैलानियों के बीच होने वाला टग ऑफ वॉर यानी रस्साकशी का खेल होता है। उस समय वहां मौजूद लोगों के बीच जोश देखते ही बनता है।


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