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यहां भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं मां, भक्तों की हरेक मनोकामना पूर्ण होती है

यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की मां थावे भवानी मन्नतें पूर्ण करती हैं। नवरात्र के दौरान यहां पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 04 Oct 2016 02:38 PM (IST)Updated: Tue, 04 Oct 2016 02:45 PM (IST)
यहां भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं मां, भक्तों की हरेक मनोकामना पूर्ण होती है

सिवान-गोपालगंज मुख्य मार्ग पर थावे में मां दुर्गा का मंदिर स्थित है। करीब तीन सौ साल पूर्व स्थापित यह मंदिर प्राचीन जागृत शक्तिपीठों में से एक है। यूं तो यहां सालोंभर श्रद्धालुओं का जमघट लगता है, लेकिन शारदीय और वासंतिक नवरात्र के समय यहां बिहार ही नहीं, बल्कि सीमावर्ती यूपी व नेपाल के भी भक्त हजारों की संख्या में आते हैं।

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प्रतिवर्ष अष्टमी को यहां बलि का विधान है, जिसे हथुआ राजपरिवार की ओर से संपन्न कराया जाता है। यह स्थान हथुआराज के ही अधीन था। मंदिर की पूरी देखरेख पहले हथुआराज प्रशासन द्वारा ही की जाती थी। अब यह बिहार पर्यटन के नक्शे में आ गया है।

चेरो वंश से जुड़ा है मंदिर का इतिहास

इस जाग्रत पीठ का इतिहास भक्त रहषू स्वामी और चेरो वंश के क्रूर राजा की कहानी से जुड़ी हुई है। 1714 के पूर्व यहां चेरो वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि इस क्रूर राजा के दबाव डालने पर भक्त रहषू स्वामी की पुकार पर मां भवानी कामरुप कामाख्या से चलकर थावे पहुंचीं।

उनके थावे पहुंचने के साथ ही राजा मनन सिंह का महल खंडहर में तब्दील हो गया। भक्त रहषू के सिर से मां ने अपना कंगन युक्त हाथ प्रकट कर राजा को दर्शन दिए। देवी के दर्शन के साथ ही राजा मनन सेन का भी प्राणांत हो गया। इस घटना की चर्चा पर स्थानीय लोगों ने वहां देवी की पूजा शुरू कर दी। तब से यह स्थान जाग्रत पीठ के रूप में मान्य है।

वन प्रदेश से घिरा है मंदिर

एतिहासिक थावे स्थित दुर्गा मंदिर तीन ओर से वन प्रदेशों से घिरा हुआ है। वन क्षेत्र से घिरे होने के कारण पूरा मंदिर परिसर रमणीय दिखता है। मंदिर में प्रवेश व निकास के लिए एक-एक द्वार है, जहां सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था रहती है।

सप्तमी की पूजा का विशेष महत्व

थावे दुर्गा मंदिर में सप्तमी के दिन होने वाली पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा में भाग लेने के लिए भक्त दूर-दूर से मंदिर में पहुंचते हैं। करीब एक घंटे तक चलने वाली इस पूजा के बाद महाप्रसाद का वितरण किया जाता है। इसके प्रति लोगों में बड़ी आस्था है। जो नहीं पहुंच पाते, उनकी भी इच्छा यहां का प्रसाद ग्रहण करने की होती है।

आरती के समय कपाट हो जाता बंद

मान्यता के मुताबिक आरती के वक्त इसके कपाट बंद कर दिए जाते हैं। जय अंबे गौरी, मैया जब अंबे गौरी आरती यहां कई सालों से हो रही है। इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि नवरात्र के अतिरिक्त बाकी दिनों में आरती केवल सायंकाल में होती है। दोनों नवरात्रों में दोनों समय आरती का विधान है।

सड़क व रेल मार्ग से जुड़ा है मंदिर

यह मंदिर गोपालगंज से सिवान जाने वाले एनएच पर अवस्थित है। गोपालगंज से और सिवान से भी हर समय वाहन उपलब्ध रहते हैं। जिला मुख्यालय से प्रत्येक पांच मिनट पर आटो व बस की सुविधा मंदिर तक जाने के लिए है। इसके अलावा मंदिर के समीप ही थावे जंक्शन स्थित है। जहां सिवान व गोरखपुर से ट्रेन की सुविधा है।

थावे जंक्शन के समीप देवी हाल्ट भी है। जहां इस रुट से आने वाली सभी पैसेंजर ट्रेनों का ठहराव होता है। शारदीय और वासंतिक नवरात्र के दिनों में सभी ट्रनों का ठहराव देवी हाल्ट पर होता है।

यहां भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं देवी : पुजारी

मुख्य पुजारी सुरेश पांडेय का कहना है कि मंदिर का इतिहास तीन सौ साल पुराना है लेकिन देवी की पूजा अादिकाल से पूरी भक्ति व निष्ठा के साथ की जाती है। उनके मुताबिक मां भगवती यहां भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं। यहां पूजा अर्चना करने से भक्तों की हरेक मनोकामना पूर्ण होती है।

भक्तों की है अगाध श्रद्धा

मंदिर के एक भक्त के मुताबिक यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की मां थावे भवानी मन्नतें पूर्ण करती हैं। नवरात्र के दौरान यहां पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है।


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