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आइए जानें, यहां के कुछ ऐसे एतिहासिक सिद्धिपीठ जहां मांगी गई मुराद पूरी होती ही है

कहा जाता है कि जिस स्थान पर उगना ने अपना शिव का रूप विद्यापति को दिखाया था उसी जगह पर आज उगना महादेव का विशाल मन्दिर बना हुआ है |

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 23 Sep 2016 11:28 AM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2016 12:16 PM (IST)
आइए जानें, यहां के कुछ ऐसे एतिहासिक सिद्धिपीठ जहां मांगी गई मुराद पूरी होती ही है

मधुबनी जिले में अनेकों मंदिर और सिद्धिपीठ स्थल हैं | इन में से कुछ मंदिर तो इतने प्राचीन हैं की इनकी आयु तक ज्ञात नहीं है | ये सिद्धिपीठ हजारों वर्षो से मिथिला में लोगों की आस्था का प्रतीक बने हुयें हैं | आज भी लोग , यहाँ, मन्नत मांगने के लिए आस-पास और सुदूर जगहों से आते हैं |

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उच्चैठ दुर्गा स्थान

उच्चैठ दुर्गा स्थान मिथिला का एक धरोहर , पर्यटक और धार्मिक स्थान है | ऐसा माना जाता है कि यहाँ छिन्न मस्तिका माँ दुर्गा स्वयं विराजमान हैं | यहाँ जो भी आता है माँ उसकी मनोकामना अवश्य पूरा करती हैं उसी तरह जिस तरह कालीदास को किया था | इसकी कहानी इस प्रकार है-

एकबार महामूर्ख कालीदास अपनी विदुषी पत्नी विद्योत्तमा के द्वारा तिरस्कृत किये जाने के बाद उच्चैठ आ गए और नदी किनारे स्थित एक आवासीय विद्यालय में रसोइया का काम करने लगे | कुछ दिनों के बाद नदी में भयंकर बाढ़ आ गयी | नदी का दोनों किनारा पानी में समा गया | नदी के दुसरी ओर माँ दुर्गा की मन्दिर स्थित थी | मंदिर में संध्या दीप जलाने का कार्य इसी छात्रावास का एक छात्र करता था | लेकिन नदी में भयंकर बाढ़ और तेज बहाव के कारण वह छात्र संध्या दीप जलाने के लिए मंदिर नहीं जा सका |कोई भी छात्र नदी के उस पार जाने की हिम्मत नहीं कर पाए | कालिदास को महामूर्ख जानकार सबों ने उसे नदीं के पार जाकर मंदिर में संध्या दीप जला कर आने को कहा और सच्चाई के लिए कि वह वहां गया था कि नहीं, इसके लिए मंदिर में निशान लगाने को भी कहा |

मुर्ख काली दास नदी में कूद गया डूबते- तैरते मंदिर पहुंचा , संध्या दीप जलाकर पूजा अर्चना की | निशान लगाने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था | उसने दीये की कालिख को हाथ में लगा लिया , चारों ओर दीवारों पर देखा कहीं न कहीं कुछ निशान लगा ही था | उसने सोचा कहाँ निशान लगाऊं उसे सिर्फ माँ की मुंह ही साफ़ दिखाई दिया | फिर उसने माँ के मुंह में ही निशान लगाना चाहा | जैसे ही उसने मैया के चेहरा पर कालिख लगाया माता प्रगट होकर बोलीं अरे मुर्ख तुझे इस मन्दिर में निशान लगाने के कोई स्थान नहीं मिला | इस बाढ़ और भयंकर वर्षा में तुम अपना जीवन जोखिम में डालकर यहाँ आये हो | यह तुम्हारी मुर्खता है या भक्ति |उसने अपनी आपबीती माँ भगवती को सूना डाला | फिर भगवती बोल उठी मैं तुम्हे एक वरदान देती हूँ | आज रात तुम जितनी भी पुस्तकों को स्पर्श करोगे वह सब तुम्हे कंठस्थ हो जाएगा |

वापस आने पर सभी छात्रों को खाना खिला कर उन सबों की पुस्तकों को सारी रात बारी बारी से स्पर्श करता रहा | सब उसे कंठस्थ होता गया | काली दास एक ही रात में विद्वान् बन गया और एक महान कवि बन गया |

राजराजेश्वरी स्थान

राजराजेश्वरी स्थान मधुबनी जिलान्तर्गत खजौली प्रखंड के बेलही गाँव में अवस्थित है | राजराजेश्वरी मंदिर में शिव और पार्वती की प्रतिमा युगल रूप में अवस्थित हैं | कहा जाता है कि शिव और पार्वती यहाँ क्रीड़ा करते थे | इसस्थान की विशेषता यह है कि मंदिर के सामने एक कुण्ड है जो बहुत गहरी है | इसके अंदर एक दुखहरन नाथ महादेव की लिंग है|

कपिलेश्वर स्थान

कपिलेश्वर स्थान मधुबनी जिलान्तर्गत दरभंगा-जयनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है | कपिलेश्वर स्थान में भगवान शिव का एक भव्य मन्दिर है | इस मंदिर का निर्माण दरभंगा महाराज के द्वारा किया गया |कपिल मुनि के द्वारा शिव लिंग स्थापित होने के कारण ही इस स्थान को इस स्थान को कपिलेश्वर स्थान कहा जाता है | दूसरी मान्यता यह है कि जब भगवान राम जनकपुर से विवाह कर अयोध्या वापस जा रहे थे तो उनके साथ चल रहे कपिल मुनि इस स्थान को देख कर बहुत ही प्रभावित हुए और यहाँ उन्होंने एक शिव लिंग की स्थापना कर यहीं उनकी पूजा में लीन हो गए | इसलिए इस मन्दिर को कपिलेश्वर बाबा के नाम से भी जाना जाता है |

उगना महादेव (भवानीपुर)

कहा जाता है कि विद्यापति की भक्ति भावना से भगवान् शिव इतने प्रभावित हो गए कि वे नौकर के रूप में विद्यापति के साथ रहने लगे | लोकमानस कथा के अनुसार भगवान् शिव अपना भेष एक मुर्ख गंवार के रूप में बदल कर विद्यापति के पास आये और चाकरी करने लगे | उनके यहाँ काम करते-करते वे विद्यापति के विश्वासी बन गए | विद्यापति कहीं भी जाते वे उगना को अपने साथ ले जाते | उगना भी उनके साथ हाँ में हाँ मिलाता | एक समय की बात है | विद्यापति को राज दरवार जाना था | वे उगना के साथ चल पड़े | जेठ महीना था | सूर्यदेव अपनी पराकाष्ठा पर थे | रास्ते में कहीं पेड़ पौधे भी नहीं थे जिसके छाँव में वे थोड़ा विश्राम कर लेते | इसी समय विद्यापति को प्यास लगी | वे उगना से बोल पड़े - उगना मुझे बहुत जोड़ों से प्यास लगी है , प्यास के मारे मैं अब थोड़ा भी नहीं चल पाउँगा , मुझे कहीं से जल लाकर दो | अपनी झोला से लोटा निकाल कर वे उगना की तरफ बढ़ा दिए | उगना दूर- दूर तक अपना नजर दौड़ाया कहीं भी कुआं , सरोवर या नदी दिखाई नहीं दिया |

उगना एक झाड़ी के पीछे जाकर अपनी जटा से एक लोटा गंगाजल निकालकर विद्यापति को देते हुए कहा कि आस पास में कहीं भी जल नहीं मिला | इसे मैं बहुत दूर से लाया हूँ | विद्यापति प्यास से व्याकुल थे | उन्होंने सारा जल एक ही सांस में पी गए | जल पीने के बाद वे उगना से बोल पड़े कि जल का स्वाद तो ऐसा नहीं होता है यह जल नहीं गंगाजल है , गंगाजल तो सिर्फ शिव के पास ही होता है | इस बात से उगना झेंप गए कि अब तो चोरी पकरी गयी | अंत में उगना विद्यापति को अपना शिव का रूप दिखाए और बोले कि इस बात को गुप्त ही रखना | विद्यापति की पत्नी शुशीला उगना को कोई काम करने के लिए बोली | उगना को काम करने में कुछ देर हो गया |जिस कारण सुशीला उगना को झाड़ू से मारने लगी | उगना झाड़ू की मार खा ही रहे थे कि विद्यापति की नजर उन पर पड़ी और अपनी पत्नी सुशीला को डांटने लगे , लेकिन सुशीला झारू से उगना को मारती ही रही , इस पर भावावेश में आकर विद्यापति सुशीला से बोले कि ओ ना समझ नारी , जिसे तुम मार रही हो यह कोई साधारण आदमी नहीं , ये तो साक्षात शिव हैं | यह बात सुन कर उगना वहीँ पर अंतर्ध्यान हो गए | कहा जाता है कि जिस स्थान पर उगना ने अपना शिव का रूप विद्यापति को दिखाया था उसी जगह पर आज उगना महादेव का विशाल मन्दिर बना हुआ है |

बुढ़ीमाय माय मंदिर (मंगरौनी)

यह सिद्धपीठ स्थान है | इस मंदिर का निर्माण एक महान तांत्रिक पं० मदन मोहन उपाध्याय के द्वारा कराया गया | ऐसी धारणा है कि अपनी तन्त्र विद्या के बल पर पंडित जी प्रतिदिन सुवह मंगरौनी से कामरूप कामख्या भगवती पूजा करने के लिए चले जाते थे और दोपहर तक वापस आ जाते थे |एकदिन भगवती ने पंडित जी से कहा कि मैं तुम्हे मंगरौनी में ही मिलूंगी जिसके लिए तुम्हे एक तालाब खुदवाना होगा | पंडित जी ने ऐसा ही किया | पंडित जी को उस तालाब में भगवती एक यन्त्र के रूप में मिली |

एकबार राज दरबार में पंडित जी से पूछ गया कि आज अमावश्या है कि पूर्णिमा | वहां पर उपस्थित सभी पंडितों ने कहा कि आज अमावश्या है , जबकि पंडित जी जानकारी के अभाव में बोल उठे कि नहीं आज पूर्णिमा है | भरी सभा में पंडित जी की उत्तर सुन कर सभी उन पर हंसने लगे | राजा ने उनसे कहा कि आप साबित करे कि आज पूर्णिमा है | पंडित जी को अपनी गलती की एहसास हुई | उन्होंने माता के मन्दिर में आकर पूजा की | उनकी पूजा से माता प्रसन्न हुईं और अपनी कंगना की रौशनी से अंधेरी रात को पूर्ण चाँदनी रात में बदल दी | अर्थात अमावश्या की रात को पूर्णिमा की रात में बदल दी |तब से ही मंगरौनी के इस मन्दिर को सिद्धपीठ के रुमा में जाना जाता है |

भुवनेश्वरी मंदिर (मंगरौनी )

भुवनेश्वरी भगवती स्थान मंगरौनी ग्राम में स्थित | मिथिलांचल के प्रसिद्द पंडित मुनेश्वर झा इसी गाँव के राणे वाले थे | 14 जनवरी 1934 ई० को मिथिलांचल में भयंकर भूकंप आयी | भूकंप में मरे हुए लोगों की आत्मा की शान्ति के लिए पंडित मुनेश्वर झा के नेतृत्व में विष्णु यग्य का आयोजन किया गया |फिर उसके बाद 24 लाख गायत्री मन्त्र का जप और अनुष्ठान किया गया जो दो वर्ष तक चलता रहा | वैसे तो यहाँ सालों भर भक्तों का आना लगा रहता है | लेकिन शारदीय एवं वासन्ती नवरात्रा में भक्तों की भयंकर भीड़ लगती है |


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