यहां मृत लोगों की मुक्ति, अकाल मौत आत्मा की शांति के लिए शिवलिंग स्थापित किए जाते हैं
इस मठ में कई लाख शिवलिंग एक साथ विराजते हैं। यहां मृत लोगों की मुक्ति और अकाल मौत की आत्मा की शांति के लिए शिवलिंग स्थापित किए जाते हैं।
By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 15 Mar 2017 12:53 PM (IST)Updated: Wed, 15 Mar 2017 01:00 PM (IST)
जंगमवाड़ी मठ, वाराणसी के सारे मठो में सबसे पुराना है। इसे जंगमवाड़ी मठ के नाम से भी जाना जाता है। जंगम का अर्थ होता है शिव को जानने वाला और वाड़ी का अर्थ होता है रहने का स्थान। मठ 50000 sq feet में फैला हुआ है। जंगमवाड़ी मठ में शिवलिंगों की स्थापना को लेकर एक विचित्र परंपरा चली आ रही है। यहां आत्मा की शांति के लिए पिंडदान नहीं बल्कि शिवलिंग दान होता है।
इस मठ में एक दो नहीं बल्कि कई लाख शिवलिंग एक साथ विराजते हैं। यहां मृत लोगों की मुक्ति और अकाल मौत की आत्मा की शांति के लिए शिवलिंग स्थापित किए जाते हैं। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के चलते एक ही छत के नीचे दस लाख से भी ज्यादा शिवलिंग स्थापित हो चुके हैं।
हिंदू धर्म में जिस विधि-विधान से पिंडदान किया जाता है। ठीक वैसे ही मंत्रोचारण के साथ यहा शिवलिंग स्थापित किया जाता है। एक वर्ष में कई हजार शिवलिंगों की स्थापना श्रद्धालुओं द्वारा कर दी जाती है। जो शिवलिंग ख़राब होने लगते है, उसकों मठ में ही सुरक्षित स्थान पर रख दिया जाता है। ये मठ दक्षिण भारतीयों का है। जैसे हिन्दू धर्म में लोग अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिये पिंडदान करते है वैसे ही वीरशैव संप्रदाय के लोग पूर्वजों के मुक्ति के लिए शिवलिंग दान करते है। इस मठ में ये परंपरा पिछले 250 सालों से अनवरत यूं ही चली आ रही है। सबसे ज्यादा सावन के महीने में शिवलिंगों की स्थापना होती है।
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