यह है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ, यहां सती के दोनों घुटने गिरे थे
मंदिर में एक छिद्र से निरंतर जल बहता रहता है। यहां सती दोनों के दोनों घुटनों का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति महामाया और शिव कपाल हैं।
हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर से थोड़ी दूर बागमती नदी की दूसरी ओर गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है। यह नेपाल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मंदिर में एक छिद्र से निरंतर जल बहता रहता है।
यहां सती दोनों के दोनों घुटनों का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति महामाया और शिव कपाल हैं।
यह शक्तिपीठ किरातेश्वर महादेव मंदिर के समीप पशुपतिनाथ मंदिर से सुदूर पूर्व बागमती गंगा के दूसरी तरफ एक टीले पर विराजमान है।
जनश्रुति के अनुसार कभी यहां श्लेषमांत वन था, जहां अर्जुन की तपस्या पर शिव किरात रूप में मिले। यह वन आज गांव बन गया है। यहीं काठमाण्डु हवाई अड्डा भी है।
गुह्येश्वरी पीठ के पास ही सिद्धेश्वर महादेव का मंदिर है, जहां ब्रह्मा ने लिंग स्थापना की थी। यहां पहुंचने के लिए (वायु मार्ग से) काठमाण्डु हवाई अड्डे से गोशाला होते हुए टैक्सी / बस / टैम्पों से बागमती तट उतर कर पुल से दूसरी ओर जाया जा सकता है तथा सड़क मार्ग से काठमाण्डु बस अड्डे से रत्नपार्क शहीद फाटक होते हुए गोशाला तक पहुंचते हैं।