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यहां लोग खुद को बाली और सुग्रीव का वंशज समझते हैं, शिव पुराण में भी इसका उल्लेख है

इसी तरह राज्य के निचले शुबंसिरी जिले में जीरो नाम की जगह पर वर्ष 2004 में अब तक का दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग मिला।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 07 Feb 2017 11:31 AM (IST)Updated: Wed, 08 Feb 2017 10:08 AM (IST)
यहां लोग खुद को बाली और सुग्रीव का वंशज समझते हैं, शिव पुराण में भी इसका उल्लेख है
यहां लोग खुद को बाली और सुग्रीव का वंशज समझते हैं, शिव पुराण में भी इसका उल्लेख है

यहां के कार्बी जनजाति के लोग खुद को बाली व सुग्रीव के वंशज मानते

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आदिवासियों और हिंदुओं में भेद करने वाले पश्चिमी इतिहासकारों के दावों को तथ्यों के आधार पर कड़ी चुनौती मिल गई है। दंतकथाओं और आस्था से आगे बढ़ कर एक शोधकर्ता ने ऐतिहासिक दस्तावेजों और भग्नावशेषों के आधार पर साबित कर दिया है कि अरुणाचल प्रदेश में लंबे समय से सनातन हिंदू धारा बहती रही है।

वैज्ञानिक शोध पर आधारित अपनी किताब 'अरुणाचल प्रदेश-रीडिस्कवरी ऑफ हिंदुुइज्म इन हिमालयाÓ में उन्होंने ऐसे कई साक्ष्य पेश किए हैं। प्राचीन भारतीय ग्रंथों की ऐतिहासिकता को पूरी तरह खारिज करने वाले पश्चिमी इतिहास को ठोस तथ्यों और तर्को का आधार पर काटने का यह अपनी तरह का पहला प्रयास है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में कार्यरत डाक्टर जगदीश कौर ने इस क्षेत्र में कई वर्षो के शोध के आधार पर यह किताब तैयार की है।

किताब में हाल के वर्षो में हुए कई ऐतिहासिक खनन और शोध के आधार पर सामने आए साक्ष्यों को एक साथ जोड़ कर पेश किया गया है। इनमें साबित होता है कि आदि देव महादेव बड़ी संख्या में यहां के मूल वासियों के आराध्य रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश में पिछली शताब्दी के अंत से शुरू हुई पुरातात्विक खुदाई में ऐसे बहुत से प्रमाण मिले हैं जिनका उल्लेख महाभारत, रामायण और विभिन्न पुराणों में मिलते हैं।

किताब में अनेक चित्रों के साथ इन स्थलों का ऐतिहासिक विवरण दिया गया है। इसी राज्य में वे सारी जगहें हैं जहां परशुराम ने एक कुंड में खुद को पवित्र किया। ऋषि व्यास ने ध्यान लगाया और भगवान कृष्ण ने रुक्मिणी से विवाह किया। राज्य के मालिनी थान में हाल के वर्षो में पुरातात्वविदों ने इंद्र, सूर्य और देवी दुर्गा आदि की कई प्राचीन मूर्तियां पाई हैं। इसी तरह राज्य के निचले शुबंसिरी जिले में जीरो नाम की जगह पर वर्ष 2004 में अब तक का दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग मिला।

शिव पुराण में भी इस जगह का उल्लेख मिलता है। यहां के कार्बी जनजाति के लोग जहां खुद को बाली और सुग्रीव का वंशज समझते हैं, वहीं तीवा खुद को माता सीता का वंशज मानते हैं। इसी तरह मिशमी रुक्मिणी से अपनी शुरुआत समझते हैं। जितनी सच्चाई अब तक सामने आई है, उससे काफी बड़ा हिस्सा अभी तक अनुपलब्ध है। इस संबंध में काफी बड़े प्रयास की जरूरत बताती हैं। सरकारी एजेंसियों की दशकों से चल रही लापरवाही की वजह से खुदाई से मिले प्रमाण भी नष्ट हो रहे हैं। इतिहासकारों को यहां काम करने के लिए पर्याप्त मदद नहीं मिल रही जिससे कि वे उपलब्ध साक्ष्यों की जड़ों तक जा सकें और किसी ठोस नतीजे पर पहुंच सकें।


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