गीता ज्ञान से जीवन प्रकाशमान
धर्मनगरी कुरुक्षेत्र से कुछ ही दूरी पर स्थित ज्योतिसर तीर्थ वह ऐतिहासिक तथा प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है जहां महाभारत के युद्ध में स्वयं भगवान कृष्ण ने कर्म का महत्व बताते हुए मोहग्रस्त अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा था, कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि।। अर्थात् हे अर्जुन! तेर
धर्मनगरी कुरुक्षेत्र से कुछ ही दूरी पर स्थित ज्योतिसर तीर्थ वह ऐतिहासिक तथा प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है जहां महाभारत के युद्ध में स्वयं भगवान कृष्ण ने कर्म का महत्व बताते हुए मोहग्रस्त अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा था, कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि।।
अर्थात् हे अर्जुन! तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में अधिकार नहीं है। इसलिए तू न तो अपने आपको कर्मो के फलों का कारण समझ और न ही कर्म करने में तू आसक्त हो। भगवान कृष्ण द्वारा दिए गए गीता ज्ञान व कर्म के महत्व को जीवित रखने के लिए कुरुक्षेत्र में हर वर्ष गीता जयंती उत्सव मनाया जाता है जिसमें असंख्य श्रद्धालु पहुंचकर असीम शांति अनुभव करते हैं।
हरियाणा प्रदेश की धरा वह पावन धरती है जहां स्वयं भगवान कृष्ण ने पांडव पुत्र अर्जुन को गीता का उपदेश देकर अर्जुन के माध्यम से समस्त विश्व को कृतार्थ किया था। यह कुरुक्षेत्र की धरा पर भगवान कृष्ण द्वारा महाभारत के युद्ध में मोहवश अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश का ही प्रतिफल है कि हरियाणा प्रदेश के लोग अपने जीवन में कर्म के महत्व को बखूबी समझते हैं। भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों से परिपूर्ण तथा वैदिक ग्रंथों का सार तत्व 'गीता' वह पवित्र ग्रंथ है जिसके माध्यम से समस्त जगत का कल्याण होता है तथा गीता में संचित ज्ञान को अपने कर्मो में ढालने से जीवन प्रकाशमान हो जाता है। कुरुक्षेत्र की पावन धरा को धर्मक्षेत्र ही नहीं बल्कि गीतोपदेश स्थली के रूप में भी दुनियाभर में जाना जाता है।
कुरुक्षेत्र में ही अर्जुन को गीता का उपदेश दिए जाने के कारण यहां हर वर्ष गीता जयंती उत्सव मनाया जाता है ताकि कर्म के महत्व को पहचानते हुए गीता के संदेश को स्मरण कर अपने तथा दूसरों के जीवन को गीता ज्ञान से प्रकाशित किया जा सके। इस गीता जयंती उत्सव में कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड, प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग, भारत सरकार का सांस्कृतिक विभाग तथा अनेक धार्मिक संस्थाएं व श्रद्धालु बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। गीता जयंती उत्सव में जहां गीता से संबंधित अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, वहीं विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी अभिन्न रूप से शामिल किया जाता है। गीता जयंती उत्सव के अवसर पर ही कुरुक्षेत्र में स्थित ब्रह्म सरोवर के तट पर भव्य शिल्प मेले का आयोजन भी किया जाता है। पांच दिन तक आयोजित किए जाने वाले इस उत्सव के अंतिम दिवस की संध्या को ब्रह्म सरोवर पर दीपों की कतारों से जहां मनोहारी दृश्य प्रस्तुत होता है, वहीं आतिशबाजी से भी पूरा क्षेत्र गूंज उठता है। मेले के रूप में मनाए जाने वाले इस उत्सव पर देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी अनेक श्रद्धालु पहुंचते हैं तथा आध्यात्कि शांति व असीम आनंद का अनुभव करते हैं। इस वर्ष भी कुरुक्षेत्र में यह उत्सव नौ दिसंबर से 13 दिसंबर तक धूमधाम से मनाया जाएगा। कुरुक्षेत्र की पावन धरा की गौरवगाथा के बारे में माना जाता है कि ऋग्वैदिक साक्ष्यों के अनुसार आर्यो की प्रमुख जातियां 'भरत' एवं 'पुरु' कुरुक्षेत्र की भूमि से ही संबंधित रही हैं। यहीं पर 'कुरु' जाति का जन्म हुआ तथा यह क्षेत्र कुरुक्षेत्र कहलाया।
कुरुक्षेत्र से कुछ ही दूरी पर कुरुक्षेत्र-पिहोवा मार्ग पर स्थित 'ज्योतिसर तीर्थ' वह ऐतिहासिक तथा प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जहां महाभारत के युद्ध में स्वयं भगवान कृष्ण ने मोहग्रस्त अर्जुन को विराट स्वरूप दिखाकर तथा गीता का उपदेश (ज्ञान) देकर यथार्थ सत्य का आभास करवाकर कर्म की ओर यानी युद्ध के लिए प्रवृत्त किया था। ज्योतिसर तीर्थ स्थान पर संगमरमर से बनी प्रतिमाएं, भवन तथा चबूतरे अनायास ही श्रद्धालुओं व सैलानियों को आकर्षित करते हैं। यहीं पर संगमरमर से बना पांडव पुत्र अर्जुन का रथ विशेष रूप से आकर्षित करता है जिस पर अर्जुन के सारथी बने भगवान कृष्ण साक्षात रूप से गीता का उपदेश देते प्रतीत होते हैं।
इस रथ की स्थापना कामकोटि पीठ के शंकराचार्य ने वर्ष 1967 में करवाई थी। यहीं पर लगभग 5000 वर्ष पुराना अक्षय वट वृक्ष स्थित है। कहा जाता है कि इस वट वृक्ष का कभी क्षय यानी अंत नहीं होता क्योंकि इसकी दाढि़यां जमीन में समाकर तने का रूप ले लेती हैं और नए वृक्ष का निर्माण करती हैं। इस अक्षय वट वृक्ष को महाभारत व गीता उपदेश का साक्षी माना जाता है।