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मनोकामना पूरी होने के कारण यहांं प्रतिवर्ष देश-विदेश से 2 करोड़ तीर्थयात्री आते है

देवघर को ह्रदयपीठ और चिताभूमि भी कहा गया है माना जाता है कि यहाँ पार्वती का ह्रदय गिरा था और भगवान शिव ने उनका अंतिम संस्कार किया था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 11 Jun 2016 04:08 PM (IST)Updated: Sat, 11 Jun 2016 04:16 PM (IST)
मनोकामना पूरी होने के कारण यहांं प्रतिवर्ष देश-विदेश से 2 करोड़ तीर्थयात्री आते है

झारखण्ड के देवघर जिले में विराजमान है द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक रावणेश्वर "बैद्यनाथ धाम"। बाबा बैद्यनाथ का यह मंदिर अति प्राचीन है। बाबा बैद्यनाथ को आत्मलिंग, मधेश्वरलिंग, कामनालिंग, रावणेश्वर महादेव, मर्ग तत्पुरुष, और बैजनाथ के आठ नामों से जाना जाता है। पुराणों में देवघर को ह्रदयपीठ और चिताभूमि भी कहा गया है क्योकि माना जाता है कि इसी स्थान पर माता पार्वती का ह्रदय गिरा था और भगवान शिव ने उनका अंतिम संस्कार किया था।

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धार्मिक और अध्यात्मिक दृष्टिकोण से राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त पवित्र नगरी को झारखण्ड सरकार ने धार्मिक नगरी ( होली सिटी) घोषित किया है। मान्यता है कि मनोकामना लिंग के रूप में प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ के दरबार में जो भी सच्चे ह्रदय से कामना लेकर आते है, उनकी मनोकामना अवस्य पूरी होती है। यही कारण है कि यहाँ प्रतिवर्ष देश-विदेश से 2 करोड़ तीर्थयात्री आते है। सिर्फ सावन में श्रधालुओं कि संख्या 50 लाख के आस-पास रहती है।

"श्रावणी मेला" दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। कहते है कि त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोतम राम ने सावन महीने में ही बिहार स्थित सुल्तानगंज से गंगाजल काँवरमें भरकर भोले शंकर को अर्पित किया था। कहा जाता है श्रावण में ही समुद्र मंथन हुआ था और मंथन के दौरान निकले विष को विषपान कर शंकर नीलकंठ कहलाये। विष के प्रभाव को कम करने के लिए ही शिवशंकर ने अपने माथे पर अर्धचंद्र धारण किया। इतना ही नहीं सभी देवता शिव पर गंगा जल डालने लगे और तभी से सावन महीने में शिव भक्तो द्वारा शिवलिंग पर गंगा जल अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई। सुल्तानगंज से उत्तरवाहिनी गंगा से जल भरकर बाबाधाम की 105 किमी की लम्बी और काफी कठिन कांवड़ यात्रा करने के पश्चात भक्त बाबा को जल अर्पित करते है।

श्रद्धा और भक्ति का अनूठा मिसाल देखना है तो एक बार सावन महीने में बाबा दरबार आना होगा। ऐसी मान्यता है की विश्वनाथ की पूजा से मोक्ष मिलता है। महाकाल की पूजा से आकाल मृत्यु नहीं होती, इसी प्रकार मल्लिकार्जुन व अन्य ज्योतिर्लिंगों की पूजा की महता है। देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से पाप धुल जाते है और उन्हें केवल्य की प्राप्ति होती है। "मत्स्य" पुराण में बाबा नगरी को आरोग्य प्रदान माना गया है।


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