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आइए! अपने तीर्थो को जानें

तीर्थ देवभूमि उत्तराखंड की आत्मा हैं। यह करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र भी हैं और आर्थिकी का आधार भी। इसके बावजूद आज तक हम चारधाम से इतर अपना ध्यान फोकस नहीं कर पाए। यही वजह है कि तीर्थाटन एवं पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण सैकड़ों तीर्थ स्थल आज भी देश-दुनिया की नजरों से अछूते हैं। यहां तक कि पंच बदरी और पंच क

By Edited By: Published: Tue, 15 Apr 2014 12:00 PM (IST)Updated: Tue, 15 Apr 2014 12:33 PM (IST)
आइए! अपने तीर्थो को जानें

देहरादून। तीर्थ देवभूमि उत्तराखंड की आत्मा हैं। यह करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र भी हैं और आर्थिकी का आधार भी। इसके बावजूद आज तक हम चारधाम से इतर अपना ध्यान फोकस नहीं कर पाए। यही वजह है कि तीर्थाटन एवं पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण सैकड़ों तीर्थ स्थल आज भी देश-दुनिया की नजरों से अछूते हैं।

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यहां तक कि पंच बदरी और पंच केदार श्रृंखला के मंदिरों में भी हम बदरी-केदार के अलावा अन्य किसी से परिचित नहीं। जबकि, इनका पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व बदरी-केदार धाम से कहीं भी कम नहीं। इसके अलावा भी चारधाम यात्रा मार्ग में अनेक तीर्थ स्थल हैं, जिन्हें दुनिया की नजरों में लाने की जरूरत है। इसी ध्येय से 'दैनिक जागरण' आज से देवभूमि के तीर्थो की एक परिचयात्मक श्रृंखला शुरू करने जा रहा है। इसकी शुरुआत हम यमुनोत्री धाम से कर रहे हैं।

भक्ति का उद्गम यमुनोत्री धाम-

जीवन में भक्ति का विशेष महत्व है। इसीलिए धर्मग्रंथ सर्वप्रथम यमुनाजी के दर्शनों की सलाह देते हैं। यमुनाजी को भक्ति का उद्गम माना गया है। उत्तरकाशी जनपद में बंदरपुछ चोटी के पश्चिम किनारे पर समुद्रतल से 3165 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यमुनोत्री धाम। इसे पवित्र जल तीर्थ कहा गया है, जो चारधाम यात्रा का पहला ठहराव स्थल भी है। यहां से यमुना का उद्गम (4421 मीटर) मात्र एक किमी की दूरी पर है, लेकिन दुर्गम चढ़ाई होने के कारण श्रद्धालु इसे देखने से वंचित रह जाते हैं। वैसे यमुनोत्री पहुंचने के लिए मोटर मार्ग का अंतिम बिंदु हनुमान चट्टी है, लेकिन अब हल्के वाहनों से जानकीचट्टी तक पहुंचा जा सकता है। यहां से मंदिर मात्र पांच किमी की दूरी पर रह जाता है, जिसका निर्माण टिहरी के महाराजा प्रताप शाह ने करवाया था।


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