महात्मा बुद्ध की आध्यात्मिक नगरी बोधगया जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई
प्राचीन धार्मिक स्थलों से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। उनकी इसी भावना का सम्मान करते हुए अब हम उन्हें परिचित कराएंगे देश के प्रमुख तीर्थस्थलों से। इसी शृंखला की पहली कड़ी में आइए चलें, गौतम बुद्ध की ज्ञान स्थली बोधगया के दर्शन करने।
महात्मा बुद्ध का नाम सुनते ही सबसे पहले लोगों के मन में यही सवाल उठता है कि आ$िखर वह पावन भूमि कैसी होगी, जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई? पाठकों की इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए इस बार सखी उन्हें ले जा रही है बोधगया की सैर पर।
बोधिवृक्ष की छांव में
बिहार के गया जिले के पास निरंजना नदी के तट पर स्थित उरुविल्व नामक ग्राम में कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ ने 49 दिनों तक कठोर तपस्या की। चूंकि वह पीपल के वृक्ष की छांवमें बैठ कर तपस्या कर रहे थे और उन्हें बैसाख मास की पूर्णिमा को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, इसीलिए उस वृक्ष को बोधिवृक्ष और उस तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर विभिन्न देशों से बौद्धधर्म के अनुयायी बिहार के गया शहर से 12 किमी. की दूरी पर स्थित बोधगया नामक स्थल पर गौतम बुद्ध की पूजा अर्चना के लिए एकत्र होते हैं। बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर में भगवान बुद्ध का वही पद्माकार आसन संरक्षित है, जिस पर वह बैठकर ध्यान करते थे। यह बौद्ध संप्रदाय का बहुत बड़ा धार्मिक केंद्र है। महाबोधि मंदिर के आसपास तिब्बती, चीनी, जापानी, बर्मी व थाइलैंड के बौद्ध अनुयायियों के मठ हैं। इस पूरे क्षेत्र को महाबोधि विहार कहा जाता है, जिसके अंदर 100 बौद्ध स्तूप हैं। बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के बाद सम्राट अशोक ने इनका निर्माण करवाया था। मानसिक शांति की तलाश में वह अकसर यहां भ्रमण करने आते थे। 1860 ई. में कनिंगघम नामक पुरातत्वशास्त्री ने इस बौद्ध मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था क्योंकि इसका निचला हिस्सा ध्वस्त हो चुका था।
आकर्षण का केंद्र
बोधगया में महाबोधि मंदिर और ऐतिहासिक पीपल के वृक्ष के अलावा तिब्बती मंदिर, चीन का मंदिर, जापानी मंदिर, भूटान का मंदिर और पुरातात्विक संग्रहालय सभी दर्शनीय हैं। बौद्ध मंदिर के स्तूप ग्रेनाइट पत्थरों सेबने हैं। इसमें लगभग 30 बड़े झरोखे हैं। बोधगया से थोड़ी ही दूरी पर ढोगेश्वरी गुफा है, जहां गौतम बुद्ध ने चिंतन-मनन किया था। बोधगया का मुख्य आकर्षण है-जापानी बौद्ध अनुयायियों द्वारा नवनिर्मित भगवान बुद्ध की विशालतम प्रतिमा, जो बहुत दूर से ही नज़र आ जाती है। इसे चुनार के गुलाबी पत्थरों से बनाया गया है। यह प्रतिमा 80 फीट ऊंची और 51 फीट चौड़ी है। लगभग 1 करोड़ रुपये की लागत वाली इस प्रतिमा के निर्माण में चार वर्षों का समय लगा। 18 नवंबर 1990 को बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने इसका अनावरण किया। यहां मौज़ूद विशाल धर्मचक्र पर महात्मा बुद्ध के बहुत सारे उपदेश अंकित हैं। 'बुद्धं शरणं गच्छामिÓ की ध्वनि से यह मंदिर हमेशा जीवंत प्रतीत होता है और शाम होते ही रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा उठता है।
अन्य दर्शनीय स्थल
हिंदुओं का प्रमुख तीर्थस्थल गयाधाम भी बोधगया के दक्षिण दिशा में स्थित है, जहां लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। बोधगया से थोड़ी दूरी पर स्थित राजगीर का विश्व शांति स्तूप भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। वैसे तो बोधगया बौद्ध अनुयायियों का सबसे बड़े तीर्थस्थल है लेकिन अन्य धर्मों के लोग भी यहां आध्यात्मिक शांति के लिए आते हैं।