दत्त जयंती पर 12 बजे इस मंदिर में गुरुदेव की खड़ाऊ की आवाज सुनाई देती
कभी पीपल, बरगद और गूलर के घने जंगल में, सरस्वती और चंद्रभागा नदियों के संगम पर श्री दत्तात्रेय भगवान के जागृत मंदिर का जिक्र मराठाशाही बखर में मिलता है। यहां समर्थ रामदास स्वामी ने साधना की और नजदीक ही खेड़ापति हनुमान की स्थापना भी। कृष्णपुरा के दत्त मंदिर का अस्तित्व
कभी पीपल, बरगद और गूलर के घने जंगल में, सरस्वती और चंद्रभागा नदियों के संगम पर श्री दत्तात्रेय भगवान के जागृत मंदिर का जिक्र मराठाशाही बखर में मिलता है। यहां समर्थ रामदास स्वामी ने साधना की और नजदीक ही खेड़ापति हनुमान की स्थापना भी। कृष्णपुरा के दत्त मंदिर का अस्तित्व इंदौर से भी प्राचीन है, यानी होलकर रियासत के सूबेदार मल्हारराव होलकर के मालवा (इंदूर) आगमन से भी पूर्व श्री दत्त मंदिर की मौजूदगी दर्ज है।
आगरा से औरंगजेब को चकमा दे छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके पुत्र कुछ समय संन्यासी वेश धरकर दत्त मंदिर में रहे थे। इसका जिक्र सज्जनगढ़ के प्रमुख सुरेश बुवा रामदास ने भी किया है। श्री दत्त मंदिर के इस शांत परिसर में कभी गुरु नानकदेवजी ने भी उदासी यात्रा के दौरान संत समागम का लाभ लिया था।
कभी जगद्गुरु शंकराचार्य साधु-संन्यासियों के साथ त्यम्बकेश्वर (नासिक) से उज्जैन के सिंहस्थ में ओंकारेश्वर के रास्ते क्षिप्रा पहुंचते थे। चूंकि सिंहस्थ में दत्त अखाड़े के नागा साधुओं का विशेष मान होता है, सो शायद उन्हीं अखाड़ों के साधुओं ने खुले चबूतरे पर श्री दत्त प्रतिमा की स्थापना की होगी।
मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद श्री दत्त मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण हुआ। साथ ही काष्ठ प्रतिमा की जगह पाषण प्रतिमा की स्थापना की गई।
यहां का निर्णय अंतिम
इस मंदिर की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गाणगापुर स्थित श्री दत्त संस्थान में धार्मिक विधि-विधान या तिथियों को लेकर असमंजस की दशा में श्री दत्त मंदिर इंदौर का निर्णय अंतिम माना जाता है।
श्री दत्त जयंती पर होने वाले भंडारे में ठीक 12 बजे मंदिर में गुरुदेव की खड़ाऊ की आवाज सुनाई देती है। प्रति गुरुवार और दत्त जयंती गुरु पूर्णिमा पर यहां श्रद्धालुओं की कतार लगती है।