यहां होती है भक्तों की मनोकामना पूरी
कहते हैं मां के चरणों में सुख शांति व समृद्धि की प्राप्ति होती है। कुछ कहने से पहले मां पुत्रों की इच्छा के बारे में जान जाती हैं। बनसप्ती माई के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था कुछ इसी प्रकार की है।
मोतिहारी। कहते हैं मां के चरणों में सुख शांति व समृद्धि की प्राप्ति होती
है। कुछ कहने से पहले मां पुत्रों की इच्छा के बारे में जान जाती हैं। बनसप्ती
माई के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था कुछ इसी प्रकार की है। यहां आने के बाद मन
की शांति के साथ मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। आस्था व भक्ति लोगों की इस
प्रकार है कि यहां उत्तर बिहार के सीतामढ़ी, शिवहर, पश्चिम चंपारण व नेपाल से भारी संख्या में श्रद्धालु मां के दरबार में आकर पूजा-अर्चना कर मन्नतें मांगते
हैं।
इसका कोई प्रमाणिक इतिहास तो नहीं है, पर किंवदंतियों के अनुसार सैकड़ों वर्ष पूर्व इस स्थल के आसपास वन था। यहां रह रहे एक ग्रामीण के स्वप्न में मां आईं। तदोपरांत पूजा-अर्चना शुरू हुई। धीरे-धीरे लोगों की मनोकामना पूरी होने के साथ बढऩे लगी आस्था। पुजारी राधारमण दास ने कहा कि इस स्थान पर पहले मां च्वाला के रूप में थी। बाद में मां का शीतल स्वरूप पिंडी के रूप में स्थापित हो गया।
आज भी श्रद्धालु जिनकी आस्था मां के प्रति सच्ची होती है पिंडी में पीला स्वरूप में मां दर्शन देती हैं।
इस मंदिर में कोई ट्रस्ट या संरक्षक नहीं है। मां-भक्त व पुजारी के अलावा कोई तीसरा यहां नहीं है। भक्तों के चढ़ावे से मंदिर के खर्चे चलते हैं। पुजारी के अलावा मां की सेवा में 10 अन्य सेवक लगे हैं। यहां नवरात्र में लाखों की संख्या में लोग मां के दर्शन को आते हैं। सप्ताह के हर दिन यहां लोगों की भीड़ रहती है।
मिलती है सुख व शांति-
मंदिर में मोतिहारी से दर्शन को आए एमआर राजीव रंजन ने कहा कि इस स्थल पर आने मात्र से सुख व शांति की प्राप्ति होती है। उनकी मांगी गई मनोकामना पूरी होती है। इसी कारण वे महीने में दो से तीन बार नियमित आकर मां की शीतल छांव में कुछ समय बिताते हैं। मूसवा के बैद्यनाथ सहनी ने कहा कि वषरें से वे मां की महिमा को देख रहे हैं। लोग पूरी आस्था के साथ मां के दरबार में आते हैं। शर्मिला देवी ने कहा कि यहां मां हर लोगों की मुराद पूरी करती हैं। उनकी भी मांगी गई मुराद पूरी हुई है, इसलिए वे दोबारा मां के दर्शन को आई हैं।
कब हुआ निर्माण-
करीब 25 वर्ष पूर्व इस स्थल पर आपसी सहयोग से मंदिर का विकास शुरू किया गया। सबसे पहले मां का मंदिर बना, फिर कैंपस में भोलेनाथ व अन्य देवी-देवताओं को स्थापित किया गया।
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