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इस मंदिर को तैयार करने में करीब 150 वर्ष लगे 7000 मजदूरों ने इस पर काम किया

एलोरा का कैलाश मन्दिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा की गुफाओं में स्थित है। यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 21 Jul 2016 04:57 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jul 2016 05:11 PM (IST)
इस मंदिर को तैयार करने में करीब 150 वर्ष लगे 7000 मजदूरों ने इस पर काम किया

एलोरा का कैलाश मन्दिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं में स्थित है। यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर को तैयार करने में करीब 150 वर्ष लगे और लगभग 7000 मजदूरों ने लगातार इस पर काम किया। कैलाश मन्दिर महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में में से एक है, जो एलोरा की गुफओं में स्थित है। कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का रूप देने में एलोरा के वास्तुकारों ने कुछ कमी नहीं की। शिव का यह दोमंजिला मंदिर पर्वत की ठोस चट्टान को काटकर बनाया गया है।

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कैलाश मन्दिर अद्भुत है। मंदिर एलोरा की गुफा संख्या 16 में स्थित है। इस मन्दिर में कैलास पर्वत की अनुकृति निर्मित की गई है। 200 साल तक 20 पिढियों ने पहाड को उपर से नीचे की तरफ तराशकर बनाया गया यह कैलाश मंदिर भारतीय शिल्प कला का अद्भुत नमूना है । संपूर्ण हिन्दू पौराणिक कथाओं के शिल्प है । विष्णु अवतार , महादेव से लेकर रामायण महाभारत की मुर्ती के रूप में दर्शाया है ।

एलोरा में तीन प्रकार की गुफाएँ हैं- 1. महायानी बौद्ध गुफाएँ, 2.पौराणिक हिंदू गुफाएँ , 3. दिगंबर जैन गुफाएँ । इन गुफाओं में केवल एक गुफा 12 मंजिली है, जिसे कैलाश मंदिर कहा जाता है। मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ने करवया था। इसी गाँव के नाम पर ये एलोरा गुफाएँ कहलाती हैं।

एलोरा की गुफा सबसे बड़ी गुफा है, जिसमें सबसे ज्यादा खुदाई कार्य किया गया है। यहाँ के कैलाश मंदिर में विशाल और भव्या नक्काशी है, जो कि कैलाश के स्वायमी भगवान शिव को समर्पित है। कैलाश मंदिर विरुपाक्ष मन्दिर से प्रेरित होकर राष्ट्रकूट वंश के शासन के दौरान बनाया गया था। अन्य गुफाओं की तरह इसमें भी प्रवेश द्धार, मंडप तथा मूर्तियाँ हैं। अनुपम वास्तुशिल्प - कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का रूप देने में एलोरा के वास्तुकारों ने कुछ कमी नहीं की। शिव का यह दोमंजिला मंदिर पर्वत की ठोस चट्टान को काटकर बनाया गया है और अनुमान है कि प्राय 30 लाख हाथ पत्थर इसमें से काटकर निकाल लिया गया है।

इसके निर्माण के लिये पहले खंड अलग किया गया और फिर इस पर्वत खंड को भीतर बाहर से काट-काट कर 90 फुट ऊँचा मंदिर गढ़ा गया है। मंदिर भीतर बाहर चारों ओर मूर्ति-अलंकरणों से भरा हुआ है। इस मंदिर के आँगन के तीन ओर कोठरियों की पाँत थी जो एक सेतु द्वारा मंदिर के ऊपरी खंड से संयुक्त थी। अब यह सेतु गिर गया है। सामने खुले मंडप में नंदी है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी तथा स्तंभ बने हैं। यह कृति भारतीय वास्तु-शिल्पियों के कौशल का अद्भुत नमूना है।


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