गंगा माता की पूजन विधि
श्री गंगा सभा के अनुसार शास्त्रों में वर्णित पूजन विधि के तहत सबसे पहले श्री गंगा माया का ध्यान कर संकल्प करना चाहिए।
श्री गंगा सभा के अनुसार शास्त्रों में वर्णित पूजन विधि के तहत सबसे पहले श्री गंगा माया का ध्यान कर संकल्प करना चाहिए। संकल्प करके यथाविधि दस बार गंगा स्नान करके घी से मिले दस अंजलि काले तिलों को अंजलि गंगा जी में शुद्ध मन से प्रवाहित करें। गुड़ मिले दस सत्तुओं के पिंडों भी दें। फिर गंगा तट पर स्थापित किए तांबे या मिट्टी के कलश में सुवर्ण आदि की प्रतिमा में गंगा का आह्वान करें।
इस मंत्र से करें आह्वान
नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:
(यानि भगवती दशपाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिवा, दक्षा, अमृता, विश्वरुपिणी, नंदनी को नमस्कार।)।
द्विजमात्रों को बीस अक्षरों का निम्न मंत्र जाप करना चाहिए।
ओम नम: शिवाये नारायण्ये दशहराये गंगाये स्वाहेति
(यानि जो मनुष्य सौयोजन के अंतर पर भी गंगा-गंगा का जाप करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में जाता है।)
स्नान-दान का है विशेष महत्व
मान्यता है कि गंगा मैया के पावन जल के छीटे मात्र काया पर पडऩे से जन्म-जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं। हिन्दू धर्मशास्त्र और पुराण इसकी पुष्टि करते हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि गंगा पूजन व स्नान करने से लौकिक व पारलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है।
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