समझें मौके की नजाकत
बातचीत के दौरान हमें अवसर का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि गलत मौके पर कही गई सही बात भी दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती है।
अपने आसपास आपने कुछ ऐसे लोगों को जरूर देखा होगा, जो दिल के बुरे नहीं होते पर दूसरों के सामने कुछ न कुछ ऐसा बोल जाते हैं, जिससे सामने वाले व्यक्ति को दुख पहुंचता है। जहां तक संभव हो हमें ऐसी आदत से बचने की कोशिश करनी चाहिए।
हो जाती हैं गलतियां
बिना सोचे-समझे और ज्यादा बोलने वाले लोगों से अकसर ऐसी गलतियां हो जाती हैं। एक ऐसे ही अनुभव का जिक्र करते हुए इंटीरियर डिजाइनर संगीता (परिवर्तित नाम) कहती हैं, 'पिछले साल मेरे पति को हार्ट अटैक आया था और वह अस्पताल में भर्ती थे। वहां मेरी एक सहेली मुझसे मिलने आई और आते ही उसने धाराप्रवाह बोलना शुरू कर दिया- 'जीजाजी की बीमारी की ख्ाबर सुनकर बहुत दुख हुआ। मैं तो सुबह ही आ जाती, लेकिन क्या बताऊं हमारे पडोस में शर्मा जी को हार्ट अटैक आया और उनकी डेथ हो गई। बेचारे शर्मा जी, अभी बच्चे बहुत छोटे हैं और उनकी वाइफ भी ज्यादा पढी-लिखी नहीं है। मासूम बच्चों की जिंदगी तबाह हो गई, अब पडोसी होने के नाते वहां भी जाना जरूरी था। इसीलिए आने में जरा देर हो गई...। उस वक्त मेरे पति की हालत बेहद चिंताजनक थी। ऐसे मौके पर ऐसी नकारात्मक बातें सुनकर मेरे दिल पर क्या बीती होगी इसका अंदाजा आप भी लगा सकते हैं। यहां वह स्त्री संक्षिप्त शब्दों में अपनी संवेदना व्यक्त कर सकती थी। माना कि उसके पडोस में हादसा हुआ था, लेकिन ऐसे मौके पर उसका जिक्र करना कहां की समझदारी थी? उसे यह समझना चाहिए था कि ऐसी बातों से किसी की भावनाएं आहत हो सकती हैं।
सोचना है जरूरी
हमेशा आत्ममुग्ध रहने वाले लोग सिर्फ अपने ही बारे में सोचते हैं और उनसे भी अकसर ऐसी गलतियां हो जाती हैं। एक ऐसे ही वाकये का जिक्र करते हुए चार्टर्ड एकाउंटेट रंजना शर्मा (परिवर्तित नाम) कहती हैं, 'हमारी एक रिश्तेदार को हमेशा अपनी तारीफ करने की आदत है। मसलन, जब भी वह किसी सामाजिक समारोह में जाती हैं तो मेजबान के हाथों में गिफ्ट पकडाते ही शुरू हो जाती हैं- कई दुकानों में ढूंढने के बाद मुझे बडी मुश्किल से आपकी पसंद के लायक गिफ्ट नजर आया। गिफ्ट के नाम पर किसी को यूं ही कुछ भी दे देना मेरी आदत नहीं है। ऐसे मामलों में मैं पैसों की परवाह नहीं करती...। भले ही इसके पीछे उनकी गलत मंशा न रही हो, लेकिन हो सकता है कि दूसरों को यह बात अच्छी न लगे। इसी तरह कुछ लोग इस ओर जरा भी ध्यान नहीं देते कि वे किन लोगों के बीच बैठे हैं और अचानक किसी भी जाति, धर्म और समुदाय पर नकारात्मक टिप्पणियां करने लगते हैं। इससे न केवल दूसरों की भावनाएं आहत होती हैं, बल्कि ऐसा करने वालों को बाद में ख्ाुद भी शर्मिंदगी उठानी पडती है।
क्यों होता है ऐसा
किसी भी इंसान के व्यक्तित्व को बनाने में उसकी परवरिश का बहुत बडा योगदान होता है। जिन बच्चों के माता-पिता उन्हें बेवजह बोलने पर नहीं टोकते बडे होने के बाद भी उनमें यही आदत बनी रहती है और वे अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाते। इसके अलावा हाइपरटेंशन की समस्या से ग्रस्त और गुस्सैल लोग भी अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाते। विशेष परिस्थितियों में न्यूरोलॉजिकल समस्या से ग्रस्त लोगों में भी ऐसे ही लक्षण नजर आते हैं।
कैसे लाएं बदलाव
-जब भी आपके मन में कोई ख्ायाल आए तो बोलने से पहले ख्ाुद को रोकने की कोशिश करें और थोडी देर विचार करने के बाद ही बोलें।
-रोजाना थोडी देर तक अकेले बैठकर अपने व्यवहार का मूल्यांकन करें और उसमें सुधार लाने की कोशिश करें।
-अपने लिए एक बिहेवियर मैंनेजमेंट डायरी बनाएं। उसमें रोजाना रात को सोने से पहले अपने व्यवहार के बारे में लिखते रहें और समय-समय पर उसके पन्ने पलटकर यह जानने की कोशिश करें कि इन प्रयासों से आपके व्यवहार में कितना और कैसा बदलाव आया है?
-शांतिपूर्वक दूसरों की बातें सुनने के बाद ही कोई जवाब दें।
-अच्छे व्यवहार के लिए हमेशा ख्ाुद को प्रेरित करें।
-अंत में सबसे जरूरी बात, अगर आप सचमुच अपने भीतर बदलाव लाना चाहते हैं तो आपको निश्चित रूप से सफलता मिलेगी।
विनीता
(मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता से बातचीत पर आधारित)