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शिशु को दें स्नेह भरा स्पर्श

मां का स्नेह भरा स्पर्श शिशु को सुरक्षा का एहसास दिलाता है, इसीलिए उसे मां की गोद में रहना अच्छा लगता है। उसे गोद में उठाना क्यों फायदेमंद है और इस दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, आइए जानते हैं सखी के साथ।

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 03:31 PM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 03:31 PM (IST)
शिशु को दें स्नेह भरा स्पर्श

अरे! क्या हुआ, रो रहा है? गोद में उठा लो। नवजात शिशु के रोते ही परिवार की बुजुर्ग स्त्रियों की पहली प्रतिक्रिया यही होती है। भारतीय परिवारों में शिशु को गोद में उठाकर उसे प्यार करना हर मां की दिनचर्या में सहज रूप से शामिल है। इससे शिशु मां के साथ अपना जुडाव महसूस करता है, लेकिन समय के साथ हमारी जीवनशैली काफी बदल चुकी है। आजकल महानगरों में रहने वाली ज्यादातर स्त्रियां कामकाजी होती हैं। उनके पास इतना वक्त नहीं होता कि वे जब चाहें तब शिशु को गोद में उठा सकें। इसलिए उन्हें बच्चे की देखभाल के लिए घरेलू सहायिका पर निर्भर रहना पडता है। इसी वजह से पिछले कुछ वर्षो से नवजात शिशु की देखभाल के संबंध में यह धारणा विकसित होने लगी है कि शिशु को गोद में उठाने से उसकी आदत बिगड जाएगी और वह हमेशा मां के ही साथ रहना चाहेगा। इसीलिए मांएं शिशु को गोद में उठाने के बजाय उसे पालने या प्रैम में लिटा कर रखने लगीं, लेकिन हाल ही में ब्रिटेन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध से यह तथ्य सामने आया है कि नवजात शिशु के अच्छे शारीरिक और भावनात्मक विकास के लिए मां का स्पर्श बहुत जरूरी है। शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि शैशवकाल में बच्चे को गोद लेकर पुचकारने, उसे टहलाने, उससे बातें करने और उसके साथ खेलने से उसमें भाषा एवं शारीरिक गतिविधियों का विकास तेजी से होता है। मां और परिवार के करीबी सदस्यों के साथ उसका भावनात्मक बंधन मजबूत होता है। शोध में यह भी पाया गया कि जिन बच्चों के साथ माता-पिता ज्यादा वक्त बिताते हैं, वे ज्यादा निर्भीक, तार्किक और सहयोगी प्रवृत्ति के होते हैं। इतना ही नहीं बडे होने के बाद ऐसे बच्चे आत्मविश्वास से पूर्ण और सामाजिक रूप से व्यवहार कुशल होते हैं। अब तो हमारी प्रचलित मान्यता पर विज्ञान ने भी अपनी सहमति की मुहर लगा दी है। इसलिए अगर आप नवजात शिशु की मां हैं तो उसके साथ ज्यादा से ज्यादा क्वॉलिटी टाइम बिताने की कोशिश करें। ऐसा करना केवल उसके लिए ही नहीं, बल्कि आपके लिए भी फायदेमंद साबित होगा।

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संतुलित विकास के लिए

जब आप अपने शिशु को गोद में उठाती हैं तो यह उसके शारीरिक विकास की दृष्टि से बहुत फायदेमंद साबित होता है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से यह बात सामने आई है कि अगर प्री-मेच्योर शिशु को निरंतर मां का प्यार भरा स्पर्श और गोद की सुरक्षा मिले तो उसका शारीरिक विकास ज्यादा तेजी से होता है। नवजात शिशु को कुछ घंटों के अंतराल पर थोडी देर के लिए गोद में उठाना इसलिए भी जरूरी होता है, क्योंकि जन्म के बाद भी वह मां के शरीर को अपना ही हिस्सा समझता है और उसके लिए अचानक खुद को मां से अलग कर पाना बहुत मुश्किल होता है।

जब शिशु का सिर अपने कंधे पर टिकाकर मां उसे गोद में उठाती है तो अपने साथ वह मां के दिल की धडकनों और सांसों की गति को भी महसूस करता है। यह उसके लिए सबसे आरामदायक अवस्था होती है। शोध में यह पाया गया कि ममता भरे स्पर्श से दूर रहने वाले बच्चे बात-बात पर रोते हैं और उनके व्यवहार में चिडचिडापन आ जाता है। इसके अलावा ज्यादा रोने पर शिशु की अंत:स्रावी ग्रंथियों से स्ट्रेस हॉर्मोन का स्राव अधिक मात्रा में होता है, जो उसके अविकसित मस्तिष्क के लिए नुकसानदेह साबित होता है। ज्यादा रोने से शिशु की एनर्जी बेवजह नष्ट होती है। अगर वह शांत और खुश रहेगा तो इसी एनर्जी का इस्तेमाल आसपास के माहौल को देखते हुए नई क्रियाओं और गतिविधियों को सीखने-समझने में कर पाएगा। इसीलिए शिशु को बहुत देर तक रोने न दें। उसे जल्द से जल्द बहलाकर चुप कराने की कोशिश करें। खासतौर से जब शिशु कोलिक पेन की वजह से रोता है तो गोद में लेकर उसकी पीठ थपथपाते हुए टहलाना दर्द से जल्द राहत दिलाता है। सर्दी के मौसम में मां की गोद की गर्माहट उसे बहुत सुकून देती है और इससे उसे जल्द ही बहुत अच्छी नींद आ जाती है।

खेल-खेल में सीखें

जब आप अपने शिशु के साथ ज्यादा वक्त बिताती हैं तो उसे आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। मिसाल के तौर पर जब आप उसे गोद में लेकर घर के छोटे-छोटे काम निबटा रही होती हैं तो वह आपकी सभी गतिविधियों को बहुत करीब से देखते हुए उन्हें समझने की कोशिश करता है। जब वह आपके साथ होता है और आप मोबाइल पर किसी दूसरे से भी बातचीत कर रही होती हैं तो वह आपकी बातों पर खुश होकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। रोजमर्रा की ऐसी छोटी-छोटी बातें शिशु के भावनात्मक विकास में काफी मददगार साबित होती हैं।

शिशु के संतुलित विकास के लिए उसके साथ बच्चों की तरह खेलना भी जरूरी होता है। जन्म के तुरंत बाद भी अगर आप उसके हाथों में अपना हाथ दें तो वह आपकी उंगली पकड लेता है। यह उसकी ओर से पहला संदेश है, जो हमें यह बताता है कि शिशु का मस्तिष्क सही ढंग से काम कर रहा है। उसकी श्रवण क्षमता को जांचने के लिए उसे कई तरह की रोचक ध्वनियों वाले खिलौने दिए जाते हैं। जब शिशु बैठने लायक हो जाए तो उसे अपने पंजों पर बिठाकर झूला झुलाएं। बारी-बारी से अपना चेहरा छिपाने-ढंकने की क्रिया दुहराएं। इससे उसमें अनुमान लगाने की क्षमता विकसित होने लगती है। अपनी मुट्ठी में कोई चीज छिपाकर उसे वापस दिखाएं। इससे उसमें चीजों को पहचानने और ढूंढने की क्षमता विकसित होगी।

आपके लिए भी फायदेमंद

शिशु को गोद में उठाकर उसे शाम को थोडी देर के लिए घर से बाहर ले जाना, उसके साथ बातें करना और खेलना मां की सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद साबित होता है। हाल ही में हुए एक रिसर्च के अनुसार ऐसी क्रियाएं स्त्री को डिलीवरी के बाद होने वाले पोस्ट नैटल डिप्रेशन से बचाती हैं। रोजाना शाम को शिशु को घुमाने की वजह से मां की भी अच्छी एक्सरसाइज हो जाती है। शिशु की वजह से ही आसपास रहने वाली हमउम्र स्त्रियों से उसकी दोस्ती हो पाती है। उनसे बातें करके नई मां को शिशु के खानपान, शारीरिक विकास और सेहत की देखभाल से जुडी कई जानकारियां मिलती हैं। आप चाहें तो उसे बेबी कैरी स्लिंग (कंगारू की थैली के आकार का बैग) में रखकर शॉपिंग के लिए भी जा सकती हैं। इससे आपके दोनों हाथ फ्री होते हैं और शिशु भी आपकी गोद में पूरी तरह सुरक्षित रहता है। जब इन छोटी-छोटी बातें के इतने फायदे हैं तो फिर उसे जी भरकर प्यार करने में कंजूसी कैसी?

इन बातों का रखें ध्यान

- शिशु को गोद में उठाते समय हमेशा उसके लिए आरामदायक पोस्चर का ध्यान रखें।

-उसे गोद में उठाकर बेवजह न हिलाएं, इससे वह असहज महसूस करेगा।

-अगर आपके घर में नवजात शिशु है तो अपने पहनावे पर विशेष ध्यान दें। आपके कपडों में कोई भी चुभने वाली कढाई, लेस और गोटा आदि नहीं होना चाहिए। अपनी एक्सेसरीज के साथ भी इन्हीं बातों का रखें।

-शिशु को फीड करानेतुरंत बाद उसे गोद में उठाकर उसकी पीठ थपथपाते हुए डकार दिलवाना न भूलें। ऐसा नहीं करने पर गैस की वजह शिशु के पेट में बहुत तेज दर्द होता है, जिसे कोलिक पेन कहा जाता है।

-शिशु को गोद में उठाकर चलते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतें कि रास्ते में आपको कोई ठोकर न लगे।

-कुछ लोग की आदत होती है कि वे शिशु को दोनों हाथों से उछालते हुए उसके साथ खेलते हैं। ऐसा करने पर वह जोरों से हंसता है, पर सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा करना ठीक नहीं है।

-यह सही है कि शिशु को गोद में उठाना उसके शारीरिक और भावनात्मक विकास के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप हमेशा उसे गोद में ही लिए रहें। चौबीस घंटों के बीच जरूरत के अनुसार उसे थोडी-थोडी देर के लिए गोद में उठाना काफी होता है। उसे लेटकर हाथ-पैर फेंकते हुए खेलने का भी मौका मिलना चाहिए, ताकि उसकी अच्छी एक्सरसाइज हो सके।

(इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल, दिल्ली के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. पी.एन.दुबे से बातचीत पर आधारित)

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