तीसरा बेटा
कई बार थोड़ी सी मदद भी किसी के सपने साकार कर सकती है। वह तब बच्चा था और उसकी मां दूसरों के घरों में काम करती थी, कभी-कभार मां का हाथ बंटाने वह आ जाता। पढ़ाई के प्रति उसकी लगन देख कर कुछ आर्थिक मदद कर दी तो बच्चे ने
कई बार थोडी सी मदद भी किसी के सपने साकार कर सकती है। वह तब बच्चा था और उसकी मां दूसरों के घरों में काम करती थी, कभी-कभार मां का हाथ बंटाने वह आ जाता। पढाई के प्रति उसकी लगन देख कर कुछ आर्थिक मदद कर दी तो बच्चे ने दसवीं, बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। ग्रेजुएशन में उसे छात्रवृत्ति मिली। आज वह एक अच्छी कंपनी में काम कर रहा है।
मुझे अपने तीसरे बेटे प्रदीप को देखकर बहुत अच्छा लगता है। अपनी मेहनत और लगन के बलबूते उसने तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी ग्रेजुएशन किया और आज वह एक कंपनी में सेल्स एग्िज्ाक्यूटिव के पद पर अच्छी तनख्वाह में काम कर रहा है।
मैं मानती हूं कि आज के समय में ग्रेजुएशन करना और 25-30 हज्ाार की नौकरी पा लेना बडी बात नहीं है, लेकिन जिस बच्चे ने सडक की रोशनी में पढ कर दूसरों के घरों में काम करके यह मुकाम हासिल किया हो, उसके लिए यह बहुत बडी सफलता है।
मैंने यहां 'तीसरा बेटा' शब्द इसलिए लिखा, क्योंकि मेरे दोनों बेटे बडे-बडे शहरों में नौकरी कर रहे हैं। मेरी ज्ारूरत पर मेरा यह तीसरा बेटा ही काम आता है, क्योंकि वह मेरे ही शहर में है। वह मेरी रोज्ामर्रा की समस्याओं का समाधान करता है। अतीत में जाती हूं तो 12-13 साल का बच्चा याद आता है मुझे, जो अपनी मां का हाथ बंटाने कई बार घर आ जाता था। सामान्य बाइयों की तरह एक दिन मेरी बाई भी किसी बात पर नाराज्ा हो गई और पैर पटक कर काम छोड कर चल दी। तब उसके बेटे प्रदीप ने मुझे आश्वस्त किया कि वह मेरा हाथ बंटाएगा। बाई के बेटे की बातों ने मुझे बहुत प्रभावित किया। सुखद आश्चर्य की बात यह थी कि मां के नाराज्ा होने के बावजूद वह मुझे तसल्ली दे रहा था। उसकी बातों से मैं इतनी ममता से भर गई कि उस दिन से उसके साथ एक नया रिश्ता कायम हो गया-मां-बेटे का। इस तीसरे बेटे को जब भी बुलाती, वह हाज्िार होता।
फिर धीरे-धीरे उसने मेरे घर की ज्िाम्मेदारियां संभाल लीं। वह रोज्ा बिना किसी छुट्टी के मेरे घर आता। उसके लिए होली, दिवाली भी छुट्टी नहीं होती थी। मैं ही उसे कहती थी छुट्टी करने को जबरन, तभी वह छुट्टी करता। पढाई की उसकी लगन और घर में बिजली न होने के कारण वह कई बार मेरे घर पढाई करने रुक जाता और मेरे बच्चों के ही साथ पढता रहता। वे दोनों भी पढाई में प्रदीप की मदद कर देते।
मुझे वह वाकया याद है कि लाइट जाने पर मेरे बेटे अंधेरे में क्रिकेट खेलने लगे थे, मगर प्रदीप मोमबत्ती जला कर अपना पाठ याद कर रहा था। बच्चों ने चिढाया, 'अरे तुम्हारी आंख ख्ाराब हो जाएगी। उत्तर मिला, 'भैया बस यह वाला पाठ याद कर लूं, इसके बाद नहीं पढूंगा। यानी वह अपना लक्ष्य पूरा करने के बाद ही उठता था। मुझे तभी लगने लगा था कि यह लडका एक दिन ज्ारूर सफल होगा। प्रदीप ने दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। बाई का बेटा फस्र्ट आया है, यह बात पूरी कॉलोनी में तेज्ाी से फैल गई और लोग रास्ता रोक-रोक कर उससे उसकी सफलता का राज पूछते और कई लोग उसे इनाम भी देते ख्ाुश होकर।
आगे उसका मन साइंस से बारहवीं कक्षा में एडमिशन लेने का था। मगर घर में आर्थिक तंगी उसके सपनों के आडे आ रही थी। मुझे यह बात मालूम थी और मैं लगातार सोच रही थी कि एक होनहार व मेहनती बच्चे को आगे बढऩा ही चाहिए। मैंने एडमिशन, फीस और किताबें लेने में उसकी ज्ारा सी मदद कर दी। एक बार फिर बारहवीं उसने प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। यूनिवर्सिटी में भी उसे छात्रवृत्ति मिली और उसने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया। अपनी योग्यता के बल पर एक छोटी सी नौकरी से शुरुआत करके 25-26 की उम्र में आज वह अच्छी पगार पर एक कंपनी में काम करने लगा है।
प्रदीप की मेहनत और पढाई के प्रति लगन उन बच्चों के लिए उदाहरण है, जिनके पास सारी सुविधाएं हैं, मगर वे नहीं पढते और माता-पिता उनके लिए चिंतित रहते है।
निशी मेहरोत्रा, लखनऊ (उप्र)
अच्छा लगता है....
ख्ाुशी वह एहसास है, जिसे पैसे से नहीं ख्ारीदा जा सकता। किसी की पीडा बांटने, किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने और किसी को प्रेरित करने का एहसास बहुत सुखद होता है। इसी तरह विपरीत स्थिति में कोई ज्ारा सा दुख बांट दे, थोडी सी मदद दे या आगे बढऩे का हौसला दे तो बहुत अच्छा लगता है। जीवन इसी तरह आगे बढता है। क्या कभी आपके प्रयासों से किसी की ज्िांदगी संवर सकी? या विपरीत स्थिति में किसी ने आपके कंधे पर हाथ रख कर कहा 'मैं हूं ना...? अगर हां तो अपने विचार हमें पूरे नाम, पते, फोन नंबर्स के साथ लगभग पांच सौ शब्दों में भेजें। हमारा पता है-
अच्छा लगता है....
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