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नकल की पर्ची

शिक्षक पर छात्रों को पढ़ाने की ही नहीं, उन्हें बेहतर इंसान बनाने की ज़्िाम्मेदारी भी होती है। कई मौके ऐसे आते हैं, जब छात्र-हित में फैसला लेना जरूरी होता है। नकल से न सिर्फ एक छात्र, बल्कि पूरे छात्र समुदाय को नुकसान होता है। ऐसे में छात्रों के भविष्य को

By Edited By: Published: Thu, 24 Sep 2015 02:20 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2015 02:20 PM (IST)
नकल की पर्ची

शिक्षक पर छात्रों को पढाने की ही नहीं, उन्हें बेहतर इंसान बनाने की ज्िाम्मेदारी भी होती है। कई मौके ऐसे आते हैं, जब छात्र-हित में फैसला लेना जरूरी होता है। नकल से न सिर्फ एक छात्र, बल्कि पूरे छात्र समुदाय को नुकसान होता है। ऐसे में छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए कडे फैसले लेने पडते हैं, फिर परिणाम चाहे जो हो।

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सुनंदा ने कलाई पर घडी बांधी। पर्स उठाया और आदमकद शीशे में खुद को निहार कर मुस्कराई। लाइबे्ररी की किताबें लौटाने की आज अंतिम तारीख्ा थी। कल रात उन्हें छांटकर रख दिया था। ऊंची एडी की सैंडिल खटखटाते हुए अम्मा के कमरे में झांकती बोली, 'मम्मी जी कॉलेज जा रही हंू, लौटने में शायद देर हो।'

ऑटो कॉलेज के गेट पर रुका।

'यहां नहीं भैया! ज्ारा गेट के अंदर ले लो।'

जैसे ही सुनंदा ऑटो से उतरी, छात्राओं ने 'गुड मॉर्निंग मैडम' कह कर अभिवादन किया। पल भर को सुनंदा यह सोच कर गर्व से भर गई कि उसकी भी अहमियत है। छात्राएं उसे पसंद करती हैं। छात्राओं की फुसफुसाहट सुनंदा सुन पा रही थी।

'हाय! मैडम कितनी सुंदर लग रही हैं। ब्लू कलर इन पर जंचता है....'

'ये तो मेरी फेवरिट हैं।

वह मुस्कुराते-मुस्कुराते स्टाफ रूम की तरफ बढी। वहां बहस चल रही थी। टुकडों-टुकडों में जो शब्द सुनाई दिए, उससे महसूस हुआ कि बहस का विषय एक नहीं-कई हैं। सुनंदा धडधडाती स्टाफ रूम में घुसी तो सभी हाय-हेलो करने लगे। सुनंदा टीचर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष जो है।

'बडी बहस हो रही है, माज्ारा क्या है? सुनंदा ने पूछ लिया।

रश्मि बोली, 'यहां तो कई मुद्दे हैं। एक तो अनुपमा के बच्चों को लेकर है। दूसरा है रिटायरमेंट की उम्र। इसे घटा कर ठीक नहीं किया सरकार ने, इसे फिर बढाना चाहिए।

'विषय तो गंभीर है, इस पर फिर बात करते हैं। अभी मैं क्लास लेकर आती हंू, सुनंदा ने कहा। आजकल सुनंदा पर डिपार्टमेंट के बहुत काम आ पडे थे। प्रैक्टिकल एग्ज्ौम्स सिर पर थे, एक्सटर्नल एग्ज्ौमिनर्स की लिस्ट यूनिवर्सिटी को भेजनी थी, यूजीसी बुक्स की ग्रांट..., लाइब्रेरियन किताबों की लिस्ट मांग रहे थे..., सबसे बडी बात थी कि कोर्स अभी तक पूरा नहीं हुआ था। होता कैसे, जब एडमिशन ही सितंबर-अक्टूबर तक चलते हैं। शिक्षिकाएं क्लास में समय पर पहुंचती हैं, लेकिन एक-एक क्लास में छात्राओं की इतनी संख्या को पढाना...?

परीक्षा से पहले टेस्ट लेने का नियम था, जो सुनंदा ने लिया और फिर कॉपियां जांचने बैठ गई। मगर मूड बिगड गया। जो भी कॉपी उठाती, बकवास लिखी होती। जब क्लास में पढाया जाता है, इन लडकियों का मन कहीं और घूम रहा होता है। किसका सूट किस डिज्ााइन का है, किसका हेयर कट अच्छा है, लेटेस्ट फैशन क्या है...। अब लिखने का नंबर आया तो सब निल हैं। क्या करें, आजकल टीचर्स की छवि बुरी हो गई है। छात्रों को भ्रम है कि कॉपियों को बिना पढे नंबर दिए जाते हैं। कुछ को लगता है कि पन्ने गिन कर नंबर दिए जाते हैं। इसके कारण कॉपी भर जाती है, मगर जवाब एक भी सही नहीं होता। अब क्या ख्ााक नंबर दें? सुनंदा बता रही थी कि कुछ छात्र बहुत चालाक हैं। वे प्रश्नों के उत्तर के पॉइंट बडे सुंदर लेख में काले पेन से लिखते हैं। हेडिंग अंडरलाइन करते हैं और सुंदर राइटिंग में उत्तर लिखते हैं। पूरा पन्ना ख्ाूबसूरत लगता है। इससे कई बार टीचर्स प्रेशर में आ जाते हैं। अब सुलेख का कुछ तो देना ही होगा। पढऩे बैठें तो पता चलता है कि एक ही लाइन लगातार रिपीट है। सुनंदा बता रही थी कि एक बार ऐसी ही कॉपी को उसने फस्र्ट क्लास नंबर दे दिए। फिर 2-3 कॉपियां जांचने के बाद दोबारा ऐसी ही कॉपी मिली तो उसे महसूस हुआ कि ठीक ऐसी ही कॉपी पहले भी चेक की थी। एकाएक उसे ग्ालती का एहसास हुआ तो उसने उस कॉपी को ढूंढा। फिर एक-एक लाइन पढी, तब पता चला कि छात्र ने किस तरह बेवकूफ बनाया था। आख्िारकार उसे फेल ही करना पडा। सुनंदा सिर पकड कर बैठ गई कि कहीं ऐसे छात्र को पास कर दिया होता तो क्या होता!

अभी तक इस सत्र की कॉपियां जांची नहीं हंै, रिजल्ट का कोई आसार नहीं है। कब नया सत्र शुरू होगा, कब पढाई होगी और कब परीक्षाएं। नवंबर तक एडमिशन चलते हैं। दिसंबर में दस दिन की छुट्टियां और क्रिसमस हॉली डे...।

'हमारी ही यूनिवर्सिटी है, जहां कभी कोर्स पूरा नहीं हो पाता, परेशान मिसेज बनर्जी ने गीता मैडम से कहा।

'अरे भई तुम क्यों परेशान हो रही हो, और भी टीचर्स हैं, वे तो नहीं बोल रहे, गीता मैडम ने सहजता से कहा।

जबसे मिस शर्मा ने दूसरी यूनिवर्सिटी जॉइन की है, उनकी जगह ख्ााली है। इन रिक्त स्थानों के लिए दस तो कानून बन जाते हैं। मसलन छात्रों की संख्या इतनी होगी, इतने पीरियड पढाने होंगे...। स्टूडेंट की संख्या के हिसाब से ही टीचर्स रखे जाते हैं।

'अब आप ही बताएं कि कौन टीचर अपने वर्कलोड को बढाना चाहेगा। घंटा बजता है तो सब चल देती हैं, सब कुछ तो मुझ पर आ गया है। इतने काम के बाद क्या स्टैंडर्ड बचेगा और क्या रिजल्ट मिलेगा...। कह कर मिसेज बनर्जी ने माथा पकड लिया। गीता मैडम ने समझाने की कोशिश की, 'देखो बनर्जी, तुम्हें अपना ख्ाून जला कर क्या मिलेगा। टेंशन मत लो। जैसे अब तक चल रहा था, आगे भी चलेगा।

'वो तो ठीक है! दरअसल मेरे पति फेलोशिप पर अमेरिका जा रहे हैं। उसी समय अपने यहां प्रैक्टिकल्स होंगे। परीक्षकों को ठहराना, खाने-पीने का इंतज्ााम, पी.जी. क्लासेज्ा के एक्ज्ौम्स तो तीन-तीन दिन चलते हैं। इसी बीच अचानक कोई टेलीग्राम आ जाता है कि अमुक व्यक्ति परीक्षा लेने नहीं आ रहा है या नहीं आ रही है। फिर यूनिवर्सिटी की भागदौड। अभी तक मेरे पति सब देखते रहे हैं, अब ये नहीं होंगे तो अकेले संभालना होगा सब कुछ। यही सोचकर परेशान हंू...,

मैडम बनर्जी बोलती गईं। गीता मैडम को बात समझ आई, मगर क्या किया जा सकता था। बनर्जी का कंधा थपथपा कर बोलीं, 'मैडम सब ठीक हो जाएगा, परेशान मत हो। कलाई पर बंधी घडी पर नज्ार डाली और पर्स उठा कर बोलीं, 'अरे मेरी क्लास, और तेज्ाी से क्लासरूम की ओर भागीं। अभी मिसेज बनर्जी सहज भी न हो पाई थीं कि कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन की मंत्री मिस बत्रा ने घोषणा की कि अब इवनिंग क्लासेज्ा भी लगेंगी।

चिंतित बनर्जी ने दूसरे हाथ से भी सिर पकड लिया, 'ओफ! अब ये क्या बला आ गई? स्टाफ रूम में बैठे सभी लोगों को हंसी आ गई। सबको हंसता देख बनर्जी मैडम के होंठ भी एक इंच तक खिंच गए।

कुछ दिनों बाद मीटिंग में तय हुआ कि प्रायोगिक परीक्षा लिखित के बाद कराई जाए। प्रिंसिपल मैडम से बनर्जी ने कहा, 'मैडम, बी.ए. में बहुत स्टूडेंट्स हैं, उन्हें बाद में जुटाना मुश्किल होगा। सुझाव देना चाहती हूं कि उनके प्रैक्टिकल्स पहले करा लें और पीजी के बाद में। जो टीचर्स प्रिंसिपल के सामने बोलने का साहस नहीं जुटा पाती थीं, वे भी सुझाव का समर्थन करने लगीं।

समय अपनी गति से भागता है। कोर्स समाप्त भी नहीं हुआ कि परीक्षा की घोषणा सुनते ही सबने एक्स्ट्रा क्लासेज पढानी शुरू कर दीं। दूसरे सप्ताह में परीक्षा प्रारंभ होनी थी। टीचर्स के ड्यूटी चार्ट बन गए। सुनंदा की ड्यूटी रूम नंबर बीस में पडी थी। पौने सात का घंटा बजते ही छात्रों को कॉपी दे दी जाती। सात बजे, यानी पंद्रह मिनट बाद पेपर। इसी बीच कॉपी पर रोल नंबर, डेट पेपर्स की एंट्री कर ली जाती। सुनंदा अटेंडेंस शीट पर छात्राओं के दस्तख्ात कराने लगी। रूम में दो निरीक्षक होने चाहिए, फिर मैं अकेली क्यों? सोच रही थी कि मिस बरखा को घबराए हुए आते देखा। झटपट हाथ से सिग्नेचर स्लिप लेकर साइन करवाने लगी। 'रिलैक्स मिस बरखा, प्राइवेट छात्र अधिक होने के कारण दूसरे कॉलेज के टीचर्स की भी ड्यूटी लग रही थी। थोडी देर बाद मैसेज आया कि मिस बरखा को दूसरे कमरे में भेजें। उनकी जगह चंदानी मैडम आईं।

'पता नहीं, ठीक से काम करेंगी या नहीं, सुनंदा बुदबुदाई। मगर चंदानी मैडम सही काम कर रही थीं। काम निपटाए ही थे कि फ्लाइंग स्क्वॉड टीम आ गई। वे राउंड लेकर गए। सुकून से बैठी ही थी कि छात्राओं की फुसफुसाहट शुरू हो गई। नकल आख्िार के एक घंटे में ज्य़ादा होती है, जबकि फ्लाइंग स्क्वॉड तो शुरू में ही चेकिंग करके चला जाता है। मेन गेट पर छात्रों की चेकिंग हो जाती है। मगर लडकियां नई-नई तरकीबें ढूंढ निकालती हैं। सुनंदा ने दो-तीन लडकियों को पकड लिया। डांट-डपट कर छोड दिया। थोडी बहुत जो नकल थी, उसे उत्तर पुस्तिका में काट दिया। 'अब नकल करोगी तो कॉपी छीनी जाएगी, समझीं, वह राउंड लेने लगी। फिर ऐसी छात्रा पर नज्ार गई, जिसने अपने कुर्ते में, पूरी लंबाई में लगी अपारदर्शी लेस के कुछ भाग की सिलाई खोल कर उसमें पुर्जियां रखी थीं।

'क्या दिमाग्ा पाया है? इतनी बुद्धि पढऩे-लिखने में लगा लेती....। सुनंदा फौरन उसके पास गई, मगर लडकी ने पर्ची को मुंह में रख लिया और उसे खा गई।

'कितनी देर से चल रहा है यह सब? कॉपी दिखाओ...., वह ग्ाुस्से से बोली।

प्रश्न-पत्र के तीन प्रश्नों के उत्तर सही-सही थे। फिर तो जो तलाशी ली, पूछो मत। 'बाप रे बाप! इतनी पर्चियां। हे भगवान! प्रश्नों के उत्तर मिलाए तो पता चला कि बिलकुल सही थे। तुरंत फ्लाइंग स्क्वॉड को सूचना भेजी। लडकी को यूएफएम (अनफेयर मींस) के तहत बुक कर दिया गया। नई कॉपी दी गई। चंदानी मैडम का मुंह खुला रह गया। हाथ मुंह तक लाकर बोलीं, 'अब क्या लिखेगी ये? टाइम तो बचा ही नहीं है।

'तो क्या छोड दें ऐसी लडकी को?

पेपर ख्ात्म हुआ। कॉपियां कंट्रोल रूम में गिनकर जमा कर दीं। सभी केस के बारे में जानने को उत्सुक थे। एक मैडम बोलीं, 'सुनंदा मानेगी नहीं, जब देखो किसी न किसी को पकडवा देती है।

'क्या करें यार। हद होती है। पढती-लिखती हैं नहीं। बाद में नकल करती हैं। कइयों को इसलिए छोडा, क्योंकि उन्होंने नकल की पर्ची से कुछ नहीं लिखा था, मगर इस लडकी ने तो हद पार कर दी थी।

सुनंदा दौड कर स्कूटर तक आई। स्कूटर स्टार्ट करने लगी। चाभी घुमा भी न पाई थी कि सामने एक महोदय आ खडे हुए। धमकी देकर बोले, 'ऐसा है मैडम कि आपने जो किया, वह ठीक नहीं किया। आप शिकायत वापस ले लें, वर्ना नुकसान हो सकता है। शायद आप मुझे जानती नहीं हैं....

'अरे आप हैं कौन? पहले रास्ता छोडें। बात करनी है तो प्रिंसिपल से करें, झल्ला कर वह बोली और स्कूटर स्टार्ट करके चल पडी। रास्ते में बुदबुदाई, 'बेटा सुनंदा, अब तेरी ख्ौर नहीं। सास के साथ अकेले रहना और वह भी कॉलेज के नज्ादीक। पता लगवा ही लेगा यह, डर से उसकी हालत ख्ाराब थी।

रात चिंता में कटी। जाने कौन था। गुंडा हुआ तो? बेकार पंगा ले लिया। करने देती नकल...वही क्यों बोलती है.....।

दूसरे दिन भी सुबह की पाली में निरीक्षक की ड्यूटी लगी थी। आत्मविश्वास दिखाने की पूरी कोशिश की कि कोई दब्बू न समझे। कॉलेज पहुंचते ही एक सीनियर टीचर बोली, 'सुनंदा आज तुम्हारी ड्यूटी फ्लाइंग में लगाई गई है। सुनंदा समझ गई कि टीचर्स कल की घटना से चटकारे ले रही है।

उन्होंने फिर कहा, 'सुनो। आज पांच लोगों की ड्यूटी है फ्लाइंग में। तुम्हें बता दूं, जिस लडकी को तुमने पकडा था, उसका भाई भी यूनिवर्सिटी में है। तुम तो घर चली गईं, पर वह देर तक प्रिंसिपल से बात करता रहा।

मिसेज बनर्जी तिरछी नज्ारों से देख कर बोलीं, 'कुछ भी कहो, सुनंदा है हिम्मत वाली, मेरे जैसी।

डरना बेकार ही गया। ऐसा कुछ नहीं हुआ। कुछ समय बाद सुनंदा सब भूल गई। लेकिन आज कई साल बाद यूनिवर्सिटी में कॉपियां जांचने गई। सेंट्रल इवैल्युएशन था। वहां उन्हीं महोदय को देखा, जो उस दिन धमकी दे रहे थे। वे कॉपियां जांच रहे थे।

उन्हें देखते ही बीती घटना का एक-एक पल आंखों के सामने तैरने लगा। वह महोदय चोर निगाहों से उसे देखते हुए चुपचाप अपनी कॉपी में धंस गए...।

डॉ. रेखा कक्कड


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