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उर्वशी

बरसों साथ रहते हुए भी कई बार पति-पत्नी अपनी तकलीफें नहीं बांट पाते। जिंदगी जिम्मेदारियों की पटरी पर चलती रहती है। साथ रह कर भी अपनों का दुख-दर्द न महसूस कर सकें तो साथ का क्या अर्थ है।

By Edited By: Published: Thu, 28 Apr 2016 02:20 PM (IST)Updated: Thu, 28 Apr 2016 02:20 PM (IST)
उर्वशी

बरसों साथ रहते हुए भी कई बार पति-पत्नी अपनी तकलीफें नहीं बांट पाते। जिंदगी जिम्मेदारियों की पटरी पर चलती रहती है। साथ रह कर भी अपनों का दुख-दर्द न महसूस कर सकें तो साथ का क्या अर्थ है। आखिर सारी जद्दोजहद तो परिवार की खातिर ही है, फिर अपनों को दूर कर क्या हासिल कर लेते हैं लोग।

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सुबह का ताजा झोंका अचानक चेहरे से टकराया तो मैं आंखें मलते हुए हडबडा कर उठ बैठा। दरवाजे की तरफ देखा, जो वह खुला था और जहां से महकते फूलों की भीनी-भीनी सुगंध समेटे सुबह की ताजा हवा घर में प्रवेश कर रही थी। बाहर बच्चों का शोर कानों से टकराने लगा था। दरवाजा खुला था, लिहाजा ततैये भी कमरे में आकर चक्कर काटने लगे थे। रात को देर से सोने के कारण आंखों में जलन सी महसूस हो रही थी। कई दिनों से नींद पूरी नहीं हुई थी, जिस कारण आंखों की पुतलियां भारी लग रही थीं। सोचा, थोडा और सो लूं, लेकिन चाह कर भी ऐसा न कर सका। नजरें घुमाईं तो देखा, श्रुति बिस्तर पर गुमसुम सी बैठी थी। मैं समझ गया कि बैलकनी का दरवाजा उसी ने खोला होगा। सुबह उठ कर दरवाजा खोलने की उसकी पुरानी आदत है। रोज तडके चार बजे ही वह दरवाजा खोल देती है। फिर पांच-साढे पांच बजे तक बाहर सैर करने निकल जाती है। कई दिनों से उसका रूटीन बिगडा हुआ है। कभी यूं ही बिस्तर पर बैठी रहती है तो कभी बैलकनी में कुर्सी पर जाकर बैठ जाती है या छत में जाकर घूम लेती है। वह पहले की तुलना में कमजोर भी दिखने लगी है। कभी सिर दर्द, कभी पैरों में दर्द तो कभी थकान की शिकायत करती है। कई बार उसके चेहरे पर सूजन भी दिखाई देती है।

'तुमने दरवाजा क्यों खोला? मुझे उठा देतीं। छत में चलोगी? बाहर चलने का मन हो तो चलो, जल्दी से वॉक कर आएं, बाद में तो प्रदूषण होने लगेगा। उसका मन रखने के लिए मैंने उससे कहा, हालांकि मैं चाहता था कि यह दरवाजा बंद हो जाए तो मैं कुछ देर और सो लूं।

मेरी बातें सुन कर श्रुति के पतले होंठों पर मुस्कान की लकीर सी खिंच गई। उसने उत्तर नहीं दिया मगर टकटकी लगाए मेरा चेहरा देखने लगी थी। जब भी वह इस तरह से देखती है, पता नहीं क्यों मुझे उसकी आंखों में हमेशा एक सवाल सा तैरता दिखता है।

मैंने बिस्तर समेटा और फ्रेश होने चला गया। पडोसी के घर से कपडे धोने की आवाज्ों आ रही थीं और नीचे फ्लोर पर रहने वाले बच्चे के रोने की आवाज भी कानों से टकरा रही थी। वह जोर-जोर से रोता हुआ अपनी मां से मेथी के परांठे मांग रहा था। पता नहीं उसकी मम्मी ने उससे क्या कहा कि वह ग्ाुस्से में रोते हुए घर से सडक पर भागा। उसकी मां उसके पीछे-पीछे भागी।

'तुम्हारे लिए मेथी के परांठे बना दूं? मैंने श्रुति से कहा। उसने 'न में सिर हिला दिया था। पता नहीं क्यों? शायद उसकी इच्छा नहीं थी या फिर वह नहीं चाहती थी कि मैं उसके लिए कुछ बनाऊं। आज वह पहले से भी ज्यादा थकी दिख रही थी। मेरे पूछने पर भी उसने मुझे कुछ नहीं बताया। उसके गुमसुम रहने से मेरा मन उदास हो गया। मुझे पता है कि उसे मेथी के परांठे बहुत पसंद हैं। जब भी हम दोनों शाम को बाजार जाते हैं, वह मेथी जरूर ख्ारीदती है। उसे मेथी पसंद है तो मुझे सरसों का साग। हम दोनों की पसंद बहुत अलग है। मुझे दूध पसंद है, वह दूध नहीं पी सकती। उसे मूंगफली खाना पसंद है।

कई बार वह मुझसे कहती है, 'अरे मूंगफली क्यों ली, मेरा मन यह खाने का नहीं था। लेकिन जैसे ही मैं उसे पैकेट थमाता हूं, वह झट से मूंगफली खाना शुरू कर देती है। मुस्कुराते हुए उसका चेहरा गुलाब के फूल की तरह सुंदर दिखाई देता है।

मुझे याद आने लगा, पहले कई बार मैं सडक पर चलते-चलते उसके चेहरे को चूम लेता था। उसे ऐसी हरकतें बिलकुल पसंद नहीं। वह मुंह बनाती और घबरा कर इधर-उधर देखने लगती। कभी-कभी मुस्कुराते हुए वह कहती, 'ऐसा करोगे तो 100 नंबर पर फोन करके पुलिस को बुला लूंगी। फिर कैसे छेडोगे मुझे?

मैं उसकी बातें सुनकर मुस्कुरा देता। वह मेरी ऐसी हरकतों पर नाराजगी तो नहीं जाहिर करती, मगर यह जरूर कहती कि राह चलते ऐसा करना ठीक नहीं। 'तुम इतना क्यों डरती हो श्रुति? अरे...मेरी पत्नी हो तुम। प्यार करूं या झगडूं मेरी मर्जी। इससे किसी को क्या मतलब?

'रास्ते में इतने लोग चल रहे हैं। उन्हें क्या पता कि मैं तुम्हारी बीवी हूं। कोई यह भी तो सोच सकता है कि तुम मेरे साथ जबरन ऐसा कर रहे हो? संभल कर रहा करो। स्त्री की तरफ देखना भी जेल की हवा खिला सकता है। हमेशा नजरें सामने या नीचे रखा करो। कोई स्त्री बगल से गुजरे तो आसमान की ओर या दूसरी ओर देखो। समझे कि नहीं?

एक दिन मैं श्रुति को साथ लेकर अपने बडे भाई के घर जा रहा था। रविवार की छुट्टी थी। फरवरी का आख्िारी हफ्ता था। एक-दो दिन से बारिश हो रही थी। जाती हुई ठंड ने फिर जोर पकडा था। एकाएक बंद हो चुके ऊनी कपडे फिर निकल आए थे। दिल्ली में बसों में सफर करना आसान काम है क्या! भीड इतनी होती है कि न चाहते हुए भी एक-दूसरे से सांसें टकराने लगती हैं और पलक झपकते ही एक व्यक्ति की बीमारी दूसरे को संक्रमित कर देती है। इसके अलावा धूम्रपान की बदबू और धुआं तो जहर घोलता ही है। उस वक्त भले ही कितने महंगे ब्रैंड का परफ्यूम या डिओ लगाया हो, मगर बस में अलग-अलग तरह की दुर्गंध में डिओ का सारा असर खो जाता है।

मौसम ख्ाराब था तो बस में दो-चार लोग ही नजर आ रहे थे। मैंने दो टिकट लिए। कंडक्टर ड्राइवर के पास जाकर बातें करने लगा। हम भी कंडक्टर के पीछे वाली सीट पर बैठ गए। हमें कोई नहीं देख रहा था। मैंने चुपके से श्रुति के चेहरे को छुआ और उसका चुंबन ले लिया। वह सकपका गई और इशारे से मुझे चेताया कि चुपचाप बैठूं। मैंने भी इशारे में जवाब दिया कि कोई नहीं देख रहा, सब अपनी भागमभाग में हैं, किसी को फुर्सत कहां कि हमें देखे। शर्माया हुआ सा उसका चेहरा इतना ख्ाूबसूरत दिख रहा था कि स्वर्ग से उर्वशी भी मेरे सामने आती तो इस पल उसे भी न देखता।

पता नहीं क्यों, इस उदास और सुस्त श्रुति को देख कर आज बीती बातें याद आने लगीं।

'अब सुबह-सुबह क्या सोचने लगे तुम?

'अरे कुछ नहीं..., बैलकनी से आती हुई ठंडी-ठंडी हवा का मजा ले रहा था।

'अच्छा हवा भी मजा देती है क्या? कहते हुए वह हंसने लगी थी, 'कैसे आदमी हो तुम, हर चीज में मजा खोज लेते हो?

'बिना मजे के जिंदगी है भी क्या डार्लिंग? ख्ाुशी या मस्ती नहीं तो जिंदगी भी नहीं। क्यों, सच कह रहा हूं न? दरअसल अभी मुझे वह बस वाली घटना याद आ गई थी।

'हे भगवान, सुबह-सुबह तुम्हें कोई और काम नहीं? कुछ भी याद करने लगते हो तुम..., वह फिर से बिस्तर पर लेट गई थी।

'लगता है, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। बताओ न, क्या खाओगी तुम? मैं बनाता हूं। मैंने उसके पास जाकर उसके चेहरे पर आए बालों को हटाते हुए कहा।

'मैं बना लूंगी थोडी देर में, उसकी आवाज बेहद थकी हुई थी, हालांकि होंठों पर फीकी सी मुस्कान तैर रही थी। ऐसा लग रहा था, मानो मुस्कुराने के लिए उस पर किसी ने दबाव डाला हो और अगर वह न मुस्कुराई तो उसे मार दिया जाएगा। उसकी इस मुस्कान में न तो अपनापन था, न स्वाभाविकता। यह बेहद असहज मुस्कान थी। जिस मुस्कान के कारण मैं बाजार जाते हुए, बस में सफर करते हुए, किचन में खाना बनाते हुए उसे छेडा करता था, वह मुस्कान पिछले कई महीनों से जैसे ग्ाायब हो चुकी थी।

श्रुति किचन में आटा गूंधने लगी थी। मैं टकटकी लगाए उसे देख रहा था। वह बहुत थकने लगी थी। कई बार किचन में खाना बनाते हुए पसीने से तरबतर हो जाती तो ग्लूकोज का पानी पीने लगती। उसकी पतली गर्दन में हरी-हरी नसें उभर जातीं।

आटा गूंधते हुए उसे अचानक चक्कर आ गया। इससे पहले कि वह गिर पडती, मैंने उसे बांहों का सहारा देते हुए झकझोरा, 'श्रुति क्या हुआ? तुम ठीक तो हो न..? श्रुति की पलकें खुलने के बजाय बंद होती जा रही थीं। मैं उसे बिस्तर पर लिटाते हुए चेहरे पर पानी के छींटे मार रहा था और पानी पिलाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन न तो पानी के छींटों का असर हुआ, न उसने आंखें खोलीं। मैं उसे उसी वक्त पास के नर्सिंग होम में ले गया। डॉक्टर ने हालत देखते हुए उसे आइसीयू में भेजा। मेरा दिमाग्ा झन्ना रहा था। मैं सोचने लगा था कि उसकी यह स्थिति एक दिन में तो नहीं हुई है। वह पिछले काफी समय से सुस्त, थकी हुई और निस्तेज दिखाई दे रही थी और मैं इस बात को गृहस्थी की थकान समझ कर नजरअंदाज कर रहा था। आइसीयू के बाहर मैं अपना चेहरा हथेलियों में दबाए बैठ गया। आराम न आया तो मैं अपनी घबराहट से बचने के लिए गैलरी में चक्कर काटने लगा। करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर ने मुझे बुलाया। बोले, 'अच्छा हुआ, समय रहते तुम इसे ले आए। जरा सी देर और हो जाती तो बचना मुश्किल था। इनका ब्लड प्रेशर अत्यधिक बढ गया था। होश में आ जाएं तो कुछ दिन इनके बी.पी. पर नजर रखनी होगी। वैसे आप इन्हें बी.पी. के लिए कौन सी दवाएं दे रहे थे? इनका इलाज कहां से चल रहा था? मुझे अगर काग्ाज दिखाते तो मैं बेहतर ढंग से समझ पाता...। फिर उन्होंने पूछा, 'कब से है इन्हें ब्लड प्रेशर की समस्या?

मैंने चौंक कर डॉक्टर को देखा।

'यह एक दिन की समस्या नहीं है। इन्हें पहले से बी.पी. की समस्या रही होगी, तभी तो यह इतना बढा कि वह कोमा में चली गईं।

मैंने जैसे बुदबुदाते हुए डॉक्टर से नहीं ख्ाुद से ही कहा, 'मैं तो आज ही देख रहा हूं....पहले तो कभी इन्हें समस्या नहीं हुई...। मैं सुबह सात बजे ड्यूटी पर निकल जाता हूं तो रात के सात-आठ बजे तक घर लौटता हूं। श्रुति तो ठीक-ठाक थी, अचानक ही ऐसा हुआ है...।

'देखो, इन्हें काफी पहले से ब्लड प्रेशर की समस्या है। लगता है, तुम दोनों ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। अगर आज समय पर श्रुति को इलाज न मिलता तो इनकी जान भी जा सकती थी। ब्लड प्रेशर छोटी समस्या नहीं है कि उसे ट्रीट न किया जाए।

मैं डॉक्टर की बात सुन कर चौंका भी और लज्जित भी महसूस कर रहा था। मेरे पास जवाब नहीं था। डॉक्टर कह रहे थे, 'आजकल यह समस्या हर उम्र में होने लगी है। पहले कहा जाता था कि स्त्रियों को यह समस्या कम होती है मगर आजकल गलत खानपान और दिनचर्या के कारण स्त्रियों पर भी पुरुषों की तरह ही दबाव पड रहा है। इन्हें सिर दर्द और थकान की शिकायत रहती होगी। साथ ही हाथ-पैर में दर्द और चेहरे पर सूजन रहती होगी। ये सारे ब्लड प्रेशर के लक्षण हैं...। डॉक्टर की बातें सुन कर मैं कांपने लगा। बाहर आकर सोचने लगा कि मुझसे इतनी बडी भूल कैसे हो गई। मैं श्रुति इन लक्षणों पर ध्यान क्यों नहीं दे सका? ये लक्षण तो महीनों से न•ार आ रहे थे। उसकी घबराहट, चिडचिडाहट, पसीना आना, थकना....मैं क्यों नहीं समझ पा रहा था कि वह बीमार है। अगर मैंने तभी ध्यान दिया होता तो आज वह कोमा में न होती।

तीन बच्चों वाले इस घर में उसकी दिनचर्या सुबह चार बजे से शुरू होती तो रात के 11 बजे ही ख्ात्म होती। सुबह से सबका नाश्ता-खाना, कपडे और घर के कार्यों में जुट जाती और देर रात तक रसोई समेटती रहती। कई बार सोने से पहले वह सिरदर्द की शिकायत करती। मैं एक पेनकिलर देकर उसे सोने को कह देता।

वैसे मैंने कई बार उससे कहा कि घर के कामों के लिए मेड रख लेते हैं, इससे उसे आराम हो जाएगा, मगर वह हर बार यह कह कर मना कर देती कि फिजूल में इतना पैसा क्यों ख्ार्च करना। मुझे समझाने लगती, 'अभी तो शरीर चल रहा है। मेड रख लेंगे तो शरीर भी बैठ जाएगा, फिर न जाने कितनी बीमारियां लग जाएंगी। तुम्हारे और बच्चों के जाने के बाद मैं दिन भर काम में उलझी रहती हूं तो मन भी लगा रहता है। मोटी हो गई तो फिर तुम ही मुझे टोकना शुरू कर दोगे। नहीं, मैं अभी से फूलना नहीं चाहती। फिर तुम उर्वशी-मेनका किसे पुकारोगे? उसकी बातें सुनकर बच्चे भी हंसने लगते।

मैं तमाम बातों को सोच-सोच कर परेशान हो रहा था कि नर्स आई और मुझे दवाओं की लिस्ट पकडा दी।

करीब एक हफ्ते बाद श्रुति को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। डॉक्टर ने दवाओं का पैकेट थमाते हुए कहा कि ये एक हफ्ते की दवाएं हैं। अब बी.पी. की दवा तो इन्हें हमेशा खानी होगी। बीच-बीच में जांच कराएं और बिना डॉक्टर की सलाह के न तो दवा बंद करें और न ही उसे बदलें। इसके अलावा भी कई हिदायतें दी गईं, जैसे नमक कम करें, सुबह-शाम वॉक करें, चाय या कैफीन बंद करें। फैट और ऑयली चीज्ों कम खाएं। तली-भुनी चीजें बिलकुल बंद कर दें....। देखिए, ब्लड प्रेशर सुनने में बेहद छोटी बीमारी लगती है। आजकल तो यह हर दूसरे-तीसरे व्यक्ति को हो रही है, लेकिन समय पर इलाज न हो तो इससे किडनी ख्ाराब हो सकती है, स्ट्रोक पड सकता है और मरीज कोमा में जा सकता है, यहां तक कि कई बार अटैक से मौत तक हो सकती है...।

मैं श्रुति को घर ले आया था। तीनों बच्चे उसे घेर कर बैठ गए। इतने दिन अस्पताल में रह कर वह भी ऊब गई थी। घर और बच्चों की हालत देख कर उसकी आंखों में हलका सा गीलापन नजर आ रहा था। उसके गाल सहलाते हुए मैं सोच रहा था कि मैंने कितनी बडी भूल कर दी जो उसकी शिकायतें नजरअंदाज करता रहा, उसे सब्र की देवी और सुपरवुमन समझता रहा। कभी सोचा भी नहीं कि हंसती-खिलखिलाती श्रुति अचानक ऐसी क्यों हो गई, उसे इतनी समस्याएं कैसे हो गईं या उसे डॉक्टर को दिखाना चाहिए। अब पछताने से क्या फायदा, जो होना था-वह तो हो चुका।

....मगर अब ऐसा नहीं होगा। मैंने सोच लिया था, अब उसका पूरा ध्यान रखूंगा। मैंने उसके गालों पर उतर आए आंसुओं को हथेलियों से पोंछ दिया और धीरे से अपना मुंह उसके कानों के पास ले जाकर बोला, 'मेरी उर्वशी, मुझे माफ कर दो...। स्नेह से भर कर मैंने उसके गाल चूम लिए, बिना यह सोचे कि बच्चे पास बैठे हमें देख रहे हैं। वह ग्ाुस्सा दिखाती, इससे पहले ही उसे मेरी आंखों के आंसू दिखाई दिए और इशारों-इशारों में वह मुझे रोने से मना करने लगी...।

रणीराम गढवाली


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