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दस्तूर

अकसर सोचा जाता है कि बड़े पद या अधिकार का फायदा व्यक्ति के बच्चों या रिश्तेदारों को मिलता है। कुछ मामलों में ऐसा होता भी है, मगर दुनिया में सभी स्वार्थी नहीं होते। कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए सिद्धांत ही सब कुछ होते हैं। दो सहेलियों के बीच पैदा हुई प्रतिस्पर्धा और संदेह की खाई कई साल बाद पटी तो कुछ ऐसा ही नजारा दिखा।

By Edited By: Published: Tue, 01 Jul 2014 07:14 PM (IST)Updated: Tue, 01 Jul 2014 07:14 PM (IST)
दस्तूर

कहिए- रजिस्टर में आंकडे दर्ज करती स्त्री ने बिना उसकी ओर देखे हुए कहा।

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लॉकर ऑपरेट करना है। प्रयोजन बताने के साथ ही सबा उस स्त्री को गौर से देखने लगी। शक्ल जानी-पहचानी सी लगी। वह सोचने लगी, यदि इसकी त्वचा का रंग कुछ सांवला हो जाए, देह का भराव कम हो जाए, आसमानी साडी की जगह सलवार-कुर्ता आ जाए, चोटी की जगह पोनी बांधी जाए तो यह स्त्री सागर विश्वविद्यालय में कई साल पहले विज्ञान स्नातक द्वितीय वर्ष की छात्रा संध्या नागराज जैसी ही दिखेगी।

सबा तुम..! एकाएक स्त्री ने दृष्टि उठाई और चिहुंक पडी।

अरे.. संध्या तुम!

सबा तुम कभी मिलोगी, मैं सोच भी नहीं सकती थी, संध्या ने हर्षातिरेक में सबा के हाथ थाम लिए।

सच्ची! आज तो लग रहा है दुनिया सिमट कर तुम्हारे इस बैंक की इमारत में समा गई है। संध्या के हाथ थपथपाती सबा को इस समय खुशी से ज्यादा विस्मय हो रहा है।

संध्या नागराज यहां क्यों? इसे तो रामाकृष्णा की पत्नी होना चाहिए था और फिर किसी महाविद्यालय में लेक्चर देना चाहिए था। कुलपति कन्या के लिए प्राध्यापक पद कठिन तो नहीं होता।

सबा ने पूछ ही लिया, संध्या तुम व्याख्याता नहीं बनी?

तुम जानती हो सबा, मुझे टीचिंग कभी पसंद नहीं रहा। आधी जिंदगी पढो, आधी जिंदगी पढाओ, फिर राम-नाम..।

सबा यह प्रश्न संध्या से तब भी किया करती थी, संध्या तुम तो लेक्चरर या प्रोफेसर बन जाओगी..!

तुम्हें क्या लगता है? संध्या मानो उसका कौतूहल बढाना चाहती थी।

यही कि तुम व्याख्याता ही बनोगी। तुम्हारी दोनों बडी बहनें पढाती हैं और शायद दोनों जीजा जी भी।

और बस इसीलिए मैं यह लाइन नहीं चुनूंगी। पूरा कुटुंब मास्टर बनेगा क्या?

तुम्हारे अप्पा कुलपति हैं। उनके पद का इतना लाभ तो तुम्हें मिलना चाहिए।

सबा, तो तुम भी दूसरी लडकियों की तरह यही सोचती हो। जब मेरी दोनों बहनें व्याख्याता बनीं, अप्पा कुलपति नहीं थे। कुलपति तो वह पिछले वर्ष बने हैं। प्राध्यापक दामाद भी अप्पा ने नहीं ढूंढे थे। मेरी दोनों बहनों ने प्रेम विवाह किया है।

संध्या बहुत बार यह स्पष्टीकरण दे चुकी थी। और सुनाओ सबा, अम्मी-अब्बू कहां हैं? संध्या कुर्सी से पीठ टिका कर बैठी है।

रिटायर्मेट के बाद अंबाला में रहने लगे हैं। तुम्हारे अप्पा तो साउथ में सैटिल होंगे?

अप्पा तो अब नहीं रहे, मां हैं। अप्पा ने बहुत कुछ सिखाया- अनुशासन, योग्यता, सिद्धांत..। स्टूडेंट्स कहते थे, मेरे अप्पा जैसा फिजिक्स कोई नहीं पढा सकता।

वर्ष 1990-91 का समय था वह..। सबा और संध्या ने द्वितीय वर्ष में प्रवेश लिया था। सबा दुर्ग से आई थी तो संध्या रीवा से। दोनों में मित्रता हो गई।

फ‌र्स्ट ईयर में कितना पर्सेट आया?

सिक्सटी फाइव और तुम्हारा?

60.., सबा 47 प्रतिशत छिपा गई।

फादर क्या करते हैं?

डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज हैं और तुम्हारे?

इसी विश्वविद्यालय में कुलपति हैं। रा.च. नागराज, फिजिक्स पढाते हैं।

औपचारिक परिचय मित्रता में बदल गया। संध्या पढने में होशियार थी तो सबा डायग्राम बहुत सुंदर बनाती थी। वह बॉटनी प्रेक्टिकल में सेक्शन कटिंग बहुत महीन करती थी।

संध्या कहती, सबा तुम्हारी लिखावट जरूर बंदर छाप है, मगर तुम प्रेक्टिकल रिकॉर्ड में डायग्राम बहुत सुंदर बनाती हो।

मगर सबा ने कभी नहीं बताया कि अब्बू का स्टेनो डिक्टेशन के लिए बंगले पर आता तो उसके डायग्राम भी बनाता था। हां स्टेम और रूट की सेक्शन कटिंग उसका कमाल था।

बॉटनी प्रेक्टिकल का टेस्ट चल रहा था। संध्या परेशान थी। उससे पतले पीस कट नहीं रहे थे। एक हाथ में स्टेम का टुकडा और दूसरे हाथ में ब्लेड थामे उसने सबा की ओर ताका। सबा ने कुछ रिजेक्टेड पीस उसकी ओर सरका दिए। दूसरे दिन सर संध्या की स्लाइड क्लास में दिखा रहे थे, देखो, तुम लोग। संध्या की स्लाइड बिल्कुल परफेक्ट है। इंटर्नल पार्ट क्लियर दिखाई देते हैं। इसे तो पर्मानेंट स्लाइड बना देना चाहिए। सूक्ष्मदर्शी में स्लाइड देखते हुए सबा निराश थी। सर कुलपति की बेटी की चाटुकारी कर रहे हैं या मैंने अज्ञानतावश सबसे अच्छा पीस उसे थमा दिया है। बाद में संध्या ने सबा को धन्यवाद दिया, सबा दोस्ती हो तो ऐसी।

विद्यार्थियों की आम राय बन गई थी- संध्या को सर्वाधिक अंक मिलने वाले हैं। कुलपति की बेटी जो है। उसी वर्ष दीक्षांत समारोह हुआ था।

मुख्यमंत्री, राज्यपाल, शिक्षामंत्री पधारे थे। विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान की जा रही थी। संध्या उत्साहित थी, गोल्ड मेडल लेते हुए स्टूडेंट कितने इंप्रेसिव लग रहे हैं। मुझे तो कभी मेडल नहीं मिलेगा।

तभी लतिका कह बैठी, नहीं मिलेगा? अरे जरूर मिलेगा! जिस रत्ना रघुवंशी को अभी मिला है, इसके पिता कुलपति रह चुके हैं।

संध्या ने विरोध किया, तुम लडकियां ऐसे क्यों सोचती हो? मेरे अप्पा ऐसे नहीं हैं।

बगल में बैठी सबा ईष्र्या में आकर बोल गई, फिर भी पद का प्रभाव पडता है संध्या। तुम्हें अच्छे अंक मिलेंगे, यह पक्की बात हैं।

सबा तुम तो ऐसा न कहो, उलझन होती है। सबा को याद है, परीक्षा के तपते-झुलसते लंबे दिन। सबा का पढने में चित्त न लगता। अब्बू सुबह की सैर से लौटते तो सबा को सोता पाते। वह डांटते, सबा, सभी बच्चे सुबह उठ कर पढते हैं। मैं संध्या के घर की ओर से निकला तो देखा, वह लॉन में पढ रही थी और एक तुम हो..।

सबा चिंतित हो जाती। अम्मी सलाह देतीं, संध्या से इंपॉर्टेट क्यों नहीं पूछती?

अम्मी वह बहुत होशियार बनती है, कहती है उसे कुछ नहीं मालूम।

उसके घर जाकर देखो कि वह क्या पढती है। वह जरूर इंपॉर्टेट पढ रही होगी।

सबा ने चिलचिलाती धूप में संध्या के घर धावा बोला, संध्या कुछ पता चला?

नहीं।

ओह.. मैंने सोचा, तुम्हें पता होगा। सर तो कुछ बताते नहीं। बस जूलॉजी के आर्य सर ने पर्चा लिखा दिया है।

तुम उस पेपर के भरोसे हो? अप्पा कहते हैं, कई प्राध्यापक पेपर सेट करते हैं लेकिन किसी एक का पेपर ही चुना जाता है। आर्य सर का पर्चा आएगा, ऐसा जरूरी नहीं है।

तुम इस समय क्या पढ रही हो?

बॉटनी। सिलैजिनेला के जीवन चक्र का डायग्राम बनाकर देख रही थी, मगर सबा तुम यह न समझ लेना कि यही पेपर में आएगा।

सबा, संध्या से महत्वपूर्ण उगलवाने में सफल नहीं हुई। उसके सभी पर्चे औसत हुए। जिस सिलैजिनेला के जीवन चक्र के चित्र बना कर उसने पन्ने काले किए, वह पर्चे में नहीं आया। आर्य सर ने जो बताया था, उसमें केवल एक शॉर्ट नोट आया, जबकि सबा ने वह पर्चा घोट डाला था।

परीक्षा परिणाम चौंकाने वाला था। सबा के 46 प्रतिशत और संध्या के 59 प्रतिशत। विद्यार्थियों का तब भी मानना था, संध्या फाइनल में ऊंची छलांग लगाएगी।

फाइनल आम तौर पर ठीक बीता। सबा की इंपॉर्टेट जानने की चाह कायम रही। वह संध्या को खींच कर रसायनशास्त्र के भार्गव सर के घर ले गई थी। भार्गव सर उस समय शेविंग में बिजी थे। सर कुछ बताइए न! संध्या संकोच में थी। पूरा कोर्स इंपॉर्टेट है। नहीं होता तो सिलेबस में क्यों रखा जाता! हर चैप्टर दोहराओ। पढने की कोई सीमा नहीं है। जितना पढो-उतना कम है। समय नष्ट न करती फिरो तुम लोग।

साइकिल पर तेज पेडल मारते हुए संध्या भभूका थी, मिल गया महत्वपूर्ण? सबा तुम भी। अप्पा को पता चलेगा तो..?

थोडी दूरी पर ही रामाकृष्णा मिल गया था, कहां गई थी संध्या?

कुछ डाउट क्लियर करना था, संध्या झूठ बोलते हुए हडबडा गई।

जाओ घर। परीक्षा के समय धूप में घूमोगी तो बीमार पडोगी।

अप्पा से न कहिएगा।

भौतिक शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा रामाकृष्णा विश्वविद्यालय में एक ब्लॉक से दूसरे ब्लॉक में आती-जाती संध्या से अपनी मातृभाषा में बात कर लिया करता था। सबा समझ न पाती। संध्या कहती, अरे पढाई की बातें ही करता है, इसके अलावा यह कोई बात कर ही नहीं सकता। अप्पा से मिलने आता है। आइएएस में बैठना चाहता है।

रामाकृष्णा- दक्षिण भारतीय महत्वाकांक्षी और मेधावी छात्र और कुलपति का प्रिय पात्र। छात्र फुसफुसाते, विश्वविद्यालय में ही संध्या नागराज के लिए सुपात्र मिल गया है।

सबा चिढाती, संध्या, अप्पा रामाकृष्णा में रुचि लेते हैं। मामला संगीन दिखता है।

सबा, तुम बेवकूफ हो। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हां, कहो तो तुम्हारी अम्मी से कहूं कि बन्नो की पढाई बंद करें और हाथ पीले करने की सोचें। इसके और कुछ बनने की तो आशा नहीं, शायद आदर्श गृहिणी बन सके। संध्या ने बात खारिज कर दी थी।

फाइनल के बाद सबा का विवाह हो गया। संध्या उत्साहित थी, तो तुम्हारे प्राणनाथ जज हैं। लगता है, तुम ज्यूडिशियरी वाले समान फील्ड को ही पसंद करते हो..। यार रिजल्ट कितना खराब रहा। तुम्हारा 50 और मेरा 58 प्रतिशत। सोचती थी, फ‌र्स्ट आ जाऊंगी। खैर तुम लोगों की धारणा तो टूटी कि मुझे अप्पा के पद का लाभ मिलेगा..।

..यादों से बाहर निकली सबा। लॉकर से सामान निकाल कर स्ट्रांग रूम से बाहर आई और कुर्सी खिसका कर बैठ गई। संध्या उसकी प्रतीक्षा ही कर रही थी, सबा, फिर तुम पीजी नहीं कर पाई न?

नहीं। तुमने तो रसायन शास्त्र में पीजी किया था न? संध्या तुम्हें याद है, घुंघराले बालों वाला वह जीनियस लडका रामाकृष्णा?

कलेक्टर है साउथ में। अप्पा से मिलने आता था। उनकी डेथ पर भी आया।

मैं सोचती थी तुम्हारी उससे..

शादी हो गई होगी, है न! संध्या ने बात लपक ली। सबा, वह अच्छा विद्यार्थी था, अप्पा इसीलिए उसे पसंद करते थे। यह तो हमें बाद में पता चला कि अप्पा उसकी आर्थिक मदद भी करते थे क्योंकि वह गरीब छात्र था। मुस्कराती संध्या यकायक गंभीर हो गई, सबा, लोग ऐसा क्यों सोचते हैं कि हर व्यक्ति अपने पद और प्रभाव का लाभ उठाएगा। सच कहूं तो मुझे अप्पा के सिद्धांत, आदर्श और दर्शन पसंद नहीं रहे। लोग संदेह करते ही हैं तो कम से कम पद का लाभ ले लें, मगर अप्पा अपनी ईमानदारी और सिद्धांत नहीं छोड पाए।

सबा उदास हो गई। उसे वर्षो बाद यह अप्रासंगिक बात नहीं उठानी चाहिए थी। संध्या ने उसकी ग्लानि को समझा। बोली, सबा, पढाई पूरी न कर पाने का तुम्हें अफसोस नहीं होता?

अब होता है। तब तो पढाई छूटने की बडी खुशी हुई थी। अब सोचती हूं वह समय लौट आए तो मन लगा कर पढूं।

समय तो दोबारा नहीं लौटता। मुझे तो छात्र जीवन स्वर्ण काल लगता था। तब हम कितने बेफिक्र, अल्हड हुआ करते थे। अब कभी बच्चों की पढाई का तनाव, कभी पति की सेहत की चिंता, कभी गृहस्थी के झंझट।

पति क्या करते हैं?

मेडिकल डॉक्टर हैं। दो बेटियां हैं। साधारण जीवन है हमारा। अप्पा जैसा प्रभामंडल नहीं है। तुम्हारे मजिस्ट्रेट साहब के क्या हाल हैं? जनसंख्या वृद्धि कितनी हुई?

कमाल अपनी कचहरी में व्यस्त हैं। एक बेटा-एक बेटी।

आदर्श परिवार। सबा, मैं तो विवाह संबंध को विशुद्ध संयोग का मामला मानती हूं पर लोगों को क्या कहें? चर्चा थी कि तुम्हारे अब्बू ने पद का लाभ उठाते हुए कमाल पर दबाव बनाया था शादी के लिए। लोग बातें बनाने और बिना वजह शक करने से चूकते नहीें। दुनिया का दस्तूर ही कुछ ऐसा है।

सबा ने बहुत चौंक कर संध्या नागराज को निहारा। उसके सामने वि‌र्स्तीण लॉन और ऊंची छत वाले विशाल बंगले का सज्जित कलाकक्ष घूम गया। कमाल प्रथम नियुक्ति पर आए थे और अब्बू उन्हें जब-तब घर बुला लेते थे। अम्मी, बावर्ची के साथ मिलकर खाना बनाती थीं। अब्बू ने कुछ इस तरह कमाल को प्रभावित किया कि वह शादी के लिए तैयार हो गए और आनन-फानन निकाह भी हो गया।

अपने गिरेबान में झांकते हुए सबा के लिए उस इमारत में बैठना कठिन हो गया।

चलती हूं संध्या। कभी घर आओ। ई-9, सिविल लाइंस.., भरा हुआ स्वर था।

जरूर..। उसे विदा देने के लिए संध्या कुर्सी खिसका कर खडी हो गई।

सबा बैंक से बाहर आ गई। संध्या का स्वर अब भी उसका पीछा कर रहा था, लोग बातें बनाने और बिना वजह शक करने से चूकते नहीं सबा, दुनिया का दस्तूर ही कुछ ऐसा है..।

सुषमा मुनींद्र


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