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बराबरी

प्रसिद्ध उर्दू लेखिका नीलोफर इकबाल की कहानियां अपने समय की कहानी बयान करती हैं। इस्लामाबाद (पाकिस्तान) की नीलोफर के 'घंटी' और 'सुख्ऱ्ा ढाबे' जैसे कहानी संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। समसामयिक शहरी पृष्ठभूमि पर आधारित हैं इनकी कहानियां। सहज-दिलचस्प ढंग से लिखी गई इन कहानियों के क्लाइमेक्स अद्भुत होते हैं।

By Edited By: Published: Wed, 26 Aug 2015 02:54 PM (IST)Updated: Wed, 26 Aug 2015 02:54 PM (IST)
बराबरी
प्रसिद्ध उर्दू लेखिका नीलोफर इकबाल की कहानियां अपने समय की कहानी बयान करती हैं। इस्लामाबाद (पाकिस्तान) की नीलोफर के 'घंटी और 'सुख्र्ा ढाबे जैसे कहानी संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। समसामयिक शहरी पृष्ठभूमि पर आधारित हैं इनकी कहानियां। सहज-दिलचस्प ढंग से लिखी गई इन कहानियों के क्लाइमेक्स अद्भुत होते हैं।

डॉक्टर अब्दुल सत्तार ने दोबारा ख्ात खोला और पढऩे लगे। बोस्टन से उनकी लडकी मरियम ने इसे भेजा था, जो शोध कार्य के लिए दो साल से यूएस में थी। नौकर अभी चाय की प्याली रख कर गया था। उन्हें गर्म चाय पसंद थी, मगर अब तो यह ठंडी हो रही थी। ख्ात में सलाम दुआ के बाद सबकी ख्ौरियत पूछी गई थी। फिर वह बात थी, जिसने डॉक्टर सत्तार को हिला कर रख दिया था। लिखा था, 'पापा! मैं एक ज्ारूरी बात करना चाहती हंू। आपने मेरी हर बात मोहब्बत व धीरज से सुनी है, इसलिए हिम्मत कर रही हंू। उम्मीद है, आप नाराज्ा नहीं होंगे। मेरी मुलाकात यहां डॉक्टर एरिक जॉन्सन से हुई है। वह काबिल व शरीफ इंसान हैं। दो साल से मेरे इंस्ट्रक्टर हैं। उन्होंने मुझे शादी का पैग्ााम दिया है। वह ज्ाहीन हैं और इंशाअल्लाह तरक्की करेंगे। अभी वह पाकिस्तान नहीं आ सकते और चाहते हैं कि हम निकाह कर लें। प्लीज्ा मुझे इजाज्ात दें, मुझे यहां की नागरिकता भी मिल जाएगी।

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अंग्रेजी में लिखे गए इस ख्ात पर डॉक्टर सत्तार की फौरी प्रतिक्रिया तो यह थी कि तुरंत बोस्टन कॉल बुक कराएं और पागल लडकी का दिमाग दुरुस्त कर दें। मगर फिर उन्होंने धीरज से काम लिया और कुर्सी की मुश्त से सिर टिका कर सोचने लगे।

आहिस्ता-आहिस्ता ग्ाुस्से पर उनके ख्ायालात छाने लगे। वह इंसानी बराबरी को लेकर बडी शिद्दत से सोचते थे। वह मानते थे कि पूरी दुनिया में अशांति और फसाद की जड इंसान का आपसी अविश्वास और नस्ली रंगभेद था। उनकी ज्िांदगी पर मोहब्बत का जज्बा हावी था। उन्होंने कभी बेटा-बेटी में भेद न समझा था। मरियम छोटी थी, तभी उन्होंने फैसला सुना दिया कि वह बेटियों को भी जायदाद में हिस्सा देंगे। मरियम को बेहतरीन स्कूल में पढाया गया। फिर वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी बोस्टन पढऩे चली गई...।

डॉक्टर सत्तार सोचने लगे, आख्िार लडके में क्या बुराई है, सिवा इसके कि वह अमेरिकी है। उनकी बेगम कश्मीरी थीं, ख्ाूबसूरत और गोरी, लिहाज्ाा बच्चे भी मां पर ही गए थे। मरियम के ख्ात से ज्ााहिर होता था कि आदमी सही है, फिर शादी में क्या बुराई है?

बेगम कमरे में आईं तो उन्होंने ख्ाामोशी से बेटी का ख्ात पकडाया। ख्ात के आख्िारी हिस्से तक आते-आते उनकी त्यौरियां चढऩे लगीं और फिर उनका रंग सफेद पड गया। कुछ क्षण दोनों ने कुछ नहीं कहा। फिर बेगम की बदली सी आवाज्ा निकली, 'और भेजो बाहर! मैं तो पहले ही ख्िालाफ थी...। वह तेज्ाी से रोते हुए कमरे से बाहर निकल गईं।

सत्तार साहब कुछ मिनट बाद आहिस्ता से उठे और बेगम के कमरे में पहुंचे। दुपट्टे का एक कोना बेगम के हाथ में था, जिससे वह आंखें व नाक पोंछ रही थीं। सत्तार साहब ने उनके कंधे पर हाथ रखा, 'तुम जज्बाती हो रही हो। कंट्रोल करो और मेरी बात सुनो।

वह कुछ न बोलीं। उनका ग्ाुस्सा देख सत्तार साहब बाहर निकल गए। बीवी के शांत होने के बाद वह समझाना चाहते थे कि लडका नेकदिल है। लडकी अट्ठाइस साल की है। हमें बडा दिल रखना होगा। ये ख्ालिश रहेगी कि लडकी को अपने हाथ से नहीं ब्याह सके, मगर सोचो कि लडकी ने उसे चुना है और हमें उसकी ख्ाुशी मंजूर होनी चाहिए।

मरियम को जवाबी ख्ात लिखने के बाद सत्तार दंपती ने करीबी दोस्तों-रिश्तेदारों को सूचना दे दी, हालांकि रिश्तेदारों के लिए यह काफी धमाकाखेज्ा ख्ाबर थी। लडकियों को ईष्र्या हुई कि उनकी कज्ान को एक अमेरिकी ने पसंद कर लिया। कुछ का कहना था कि डॉक्टर सत्तार की लडकी हाथ से निकल गई।

मगर डॉक्टर सत्तार आश्वस्त थे। उन्होंने ख्ाूब सोच-समझकर फैसला किया था। वह इंसानी बराबरी में यकीन रखते हैं और इस मामले में दूसरों की राय की उन्हें परवाह नहीं थी।

मरियम की शादी हो गई। निकाह वाले दिन सत्तार फेमिली का फोन पर बोस्टन से संपर्क बना रहा। मां से बात करते हुए मरियम रोई तो मां भी फूट पडीं। ऐसी शादी के बारे में तो उन्होंने सोचा ही नहीं था। बैंक के लॉकर में मरियम के लिए ज्ोवरात के दो सेट रखे थे, मगर ज्ोवर तो लडकियां पहनती हैं और बाप ने तो लडकी को लडकी रहने ही न दिया। वह मर्दों सी ज्िांदगी जी रही थी। अपने फैसले ख्ाुद करती थी, अकेली रहती थी..। फिर भी फोन पर बात करते हुए वह जज्बात के हाथों बेकाबू हो गई।

मरियम ने फोन पर डॉक्टर साहब की एरिक से बात करवाई। डॉक्टर सत्तार ने मुबारकबाद दी और पाकिस्तान आने का न्यौता दिया। एरिक ने मदर इन लॉ से बात करने की ख्वाहिश जताई, मगर बेगम नर्वस हो गईं। वह खरे अमेरिकन के साथ इंग्लिश बोलते घबरा रही थीं। उन्होंने बस 'हेलो और कॉन्ग्रेट्स कह कर हडबडी में फोन रख दिया। मरियम के छोटे बहन-भाइयों ने एरिक से ख्ाूब बातें कीं और शादी की तसवीरें भेजने की फरमाइश कर डाली। छोटी बहन बीना ने कुरेद-कुरेद कर शादी का ब्यौरा पूछा। मरियम ने क्या पहना, मेहमानों को क्या खिलाया, तोहफे मिले? दूल्हे की शक्ल कैसी है? शादी की तसवीरें कब आएंगी?

डॉक्टर साहब की ख्वाहिश थी कि मरियम शादी के बाद छुट्टी लेकर शौहर के साथ पाकिस्तान आए, लेकिन उसे नई-नई जॉब मिली थी। इतनी जल्दी छुट्टी लेना मुनासिब नहीं था। डॉक्टर साहब को मायूसी हुई। उन्हें बेटी से मिले दो साल हो चुके थे। शादी की तसवीरें भेजने में मरियम ने सुस्ती दिखाई। इसरार इंतहाई बढ गया। महीना गुज्ार गया। तसवीरें न पहुंचनी थीं और न पहुंचीं। आख्िार समझा गया कि डाक विभाग की कोताही की भेंट चढ गईं। मरियम काम में इतनी मसरूफ थी कि उसे फुर्सत ही नहीं मिलती थी।

एक दिन यूं ही बैठे-ठाले डॉक्टर सत्तार का दिल घबराया। छाती में दर्द-सा महसूस हुआ और माथा पसीने-पसीने हो गया। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। हलका हार्ट-अटैक था। बेगम सत्तार बेचैनी और परेशानी से बुरा हाल किए थीं। रात-रात भर अस्पताल में शौहर की देखभाल करतीं। एक दिन मरियम का फोन आया। बेगम भरी बैठी थीं, फोन पर ही मरियम की ख्ाबर ले ली और बोलीं, 'अब तुम अपने मां-बाप के मरने पर ही आना। मरियम सफाई पेश करती रही, मगर मां ने कुछ नहीं सुना। एक हफ्ते बाद मरियम ने फोन पर अपने आने का प्रोग्राम बताया। वह दो हफ्ते बाद पाकिस्तान आने वाली थी, साथ में डॉक्टर एरिक भी आ रहा था, जिसे बमुश्किल दो हफ्ते की छुट्टी मिली थी।

डॉक्टर सत्तार अस्पताल से घर आ गए थे। मरियम के आने की ख्ाबर से ही उनका चेहरा सुख्र्ा हो गया थो। वह बेटी-दामाद के स्वागत की तैयारियों में तल्लीन थे। कितनी गाडिय़ां एयरपोर्ट जाएंगी। डिनर पर कौन-कौन आएगा? अपने पुराने कलीग्स को भी बुलाना चाहते थे, ताकि एरिक से मिलवा सकें। सारे रिश्तेदारों को बारी-बारी फोन पर बेटी-दामाद के आगमन की ख्ाुशख्ाबरी सुनाई जा चुकी थी और उन्हें आमंत्रित किया जा चुका था। घर में ईद का समां बंधने वाला था।

मिसेज सत्तार शॉपिंग में मसरूफ थीं। दिल में छुपे अरमान निकालने का वक्त आ गया था। मरियम के लिए दर्जन भर सूट और साडिय़ां ऑर्डर कर चुकी थीं। एरिक के लिए पठानी सूट और गर्म शॉल्स लिए जा रहे थे। बेटी के लिए ज्ोवरात का नया सेट ऑर्डर हो चुका था, जो वह अपने हाथों से पहली रात डिनर के वक्त पहनाएंगी। दामाद को उसकी पसंद से ही तोहफे दिए जाएंगे। मगर हीरे की अंगूठी तो उसकी मुंह दिखाई थी। सास अपने हाथ से पहली रात डिनर पर यह अंगूठी पहनाएंगी। शानदार हीरे की अंगूठी खरीदी गई।

दूसरा मसला यह था कि अमेरिकन दामाद आ रहा है। घर भी उसकी शान के मुताबिक होना चाहिए। बेडरूम की नए सिरे से सजावट की गई। दीवार बा दीवार कार्पेट लगाया गया। कमरे की नफीस सजावट की गई। ड्राइंग रूम में भी परिवर्तन किए गए। पूर्वी अंदाज्ा की सजावट की चीज्ाों में इजाफा किया गया, ताकि वह यहां के कल्चर से अवगत हो सके। सबसे बडा मसला बॉथरूम का था, जो पुराने हो चुके थे। इतनी जल्दी नया सेट लगाना तो मुमकिन न था। सिर्फ कमोड बदल दिया गया। वक्त मिल जाता तो टाइलें भी बदलवा देते। बावर्ची को मेहमान के रहने के दौरान किचन ख्ाूब चमकाकर रखने का सख्ती से ऑर्डर दिया गया। ग्ौर मुल्की नफासत पसंद होते हैं। सोचना बाकी था कि पकाया क्या जाएगा? वे लोग पंद्रह दिन के लिए आ रहे थे। छोटी बहन बीना ने पंद्रह दिन का मुकम्मल मेन्यू तैयार किया था। वह उम्दा इंटरनेशनल खानों की विधियां जमा कर रही थी। वैसे पंद्रह दिन तो दावतों ही में गुज्ार जाने थे। रिश्तेदार और दोस्त अभी से वक्त मांग रहे थे। बीना का इसरार था कि वह अमेरिकन दूल्हा भाई को तमाम खाने खिला कर छोडेगी। कार भी सर्विसिंग के बाद चमचमा रही थी। एक और कार का इंतज्ााम कर लिया गया।

मरियम के आने में एक दिन बाकी था। मुकम्मल तैयारियों के बावजूद लगता था कि कुछ रह गया है। बेगम बौखलाई-बौखलाई फिर रही थीं। उनकी सहेलियों के फोन आ रहे थे। सब फ्लाइट का वक्त पूछ रहे थे, लेकिन फ्लाइट इतनी सुबह थी कि बेगम सत्तार ने ख्ाुशदिली से सबको एयरपोर्ट जाने से मना कर दिया और शाम को घर आने को कह दिया, लेकिन करीबी रिश्तेदार आग्रह करने में थे कि वे सुबह ही आ जाएंगे और मरियम और उसके दूल्हे का स्वागत करेंगे।

बीना सहेलियों को फोन करके दूल्हे के बारे में बता रही थी। हालांकि उसने सबसे एक दिन छोड कर आने को कहा था। वजह यह थी कि पहले दिन रिश्तेदारों का जमावडा होगा, रात में डिनर होगा। दूल्हे मियां थके होंगे। एक सहेली ने पूछा कि वह मग्ारूर तो नहीं? बीना ने कहा, 'वह बहुत स्वीट हैं!

दो गाडिय़ां एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गईं। एक गाडी में बेटा और उसके साथ बीना थी। वह बज्िाद थी कि बहन और दूल्हे वाली गाडी में बैठेगी। दूसरी कार मंझला बेटा ड्राइव कर रहा था और डॉक्टर सत्तार और बेगम साथ थे। बेगम रास्ते भर दुआएं मांगती रही। उनके दिल में मीठी सी बेचैनी थी। बेटी को इतने अर्से बाद देखेंगी। डरती थीं कि वह उस अमेरिकन की भाषा कैसे समझेंगी। बाकी लोग अंग्रेजी बोल लेते थे, मगर वह अंग्रेजी में कच्ची थीं। ख्ौर कुछ न कुछ हो जाएगा।

एयरपोर्ट आ गया। गाडी पार्क कर सब लोग लाउंज में आ गए। फ्लाइट पहुंच चुकी थी। इंटरनेशनल फ्लाइट से लोग बाहर निकलने में वक्त लेते हैं। एक तो सामान ज्य़ादा होता है, फिर सामान की क्लियरिंग और पैकिंग में वक्त लगता है। थोडी-थोडी देर बाद सब लोग रेलिंग के पास आकर झांक लेते थे। बेगम सत्तार थक कर बैंच पर बैठ गईं और अपनी निगाहें वहां गडा दीं, जहां से मुसाफिर निकलने वाले थे। बीना भी उनके साथ थी और वहीं निगाहें जमाए बैठी थी।

तकरीबन आधे घंटे बाद न्यूयार्क की उडान से मुसाफिर बाहर आने शुरू हुए, सब लपक कर दरवाज्ो के सामने चारों तरफ लगी हुई रेलिंग के साथ चिपक गए और एक-एक को देखने लगे। बेगम सत्तार भी हुजूम के अंदर घुसी थीं और हर आने वाले को देख रही थीं। मरियम ने निकलने में देर लगा दी। 'बाजी...! बीना चीखी। बहुत से लोगों में उन्हें मरियम का चेहरा नज्ार आया। फिर वह चुप सी हो गई। दरवाज्ो से बाहर निकलने के बाद वह फिर उन्हें नजर आई। उसने लंबा कोट पहन रखा था और सिर पर स्कार्फ था। कंधे से पर्स लटक रहा था, हाथ में बैग था।

'इधर मरियम! उन्होंने ज्ाोर-ज्ाोर से हाथ हिलाए। मरियम ने उन्हें देख लिया और जल्दी से उनकी तरफ लपकी, लेकिन उसके साथ कोई अमेरिकन मर्द नहीं था।

'एरिक नहीं आया? डॉक्टर सत्तार ने पूछा।

'आया है। दिस वे। मरियम ने बाजू लहराकर सामान की गाडी ढकेलते हुए एक लंबे-तगडे अश्वेत मर्द की ओर इशारा किया। गोरे अमेरिकन की तलाश करती निगाहों ने मरियम के पीछे आते हुए उस व्यक्ति को नोटिस नहीं किया था। 'यह एरिक है पापा! एंड एरिक, दिस इज्ा पापा इंड हेयर इज्ा मॉम।

सब लोग भौचक्के होकर एरिक को देख रहे थे। गुफाओं जैसे नथुने और स्याह होंठों के अंदर लंबे-लंबे सफेद दांत...। एरिक की मुस्कराहट भी भयानक थी। वह आगे बढा और सबसे हाथ मिलाने लगा। वह गहरे रंग का स्मार्ट सूट पहने था।

वापसी पर बीना ज्ाबर्दस्ती मम्मी-पापा वाली गाडी में बैठी। बडा बेटा मरियम और उसका शौहर एक कार में थे, दूसरी कार मंझला बेटा ड्राइव कर रहा था। बराबर में छोटी बहन थी। पिछली सीट पर डॉक्टर सत्तार और बेगम सत्तार थे। कुछ देर तक कोई कुछ न बोला।

'सारे रिश्तेदार अब तक घर पहुंच चुके होंगे। डॉक्टर सत्तार ने खोए-खोए अंदाज्ा से कहा।

'शुक्र है, मेरी फ्रेंड्स आज नहीं आ रहीं, बीना ने बैठी हुई आवाज्ा में कहा।

'क्या हुआ? वह भी तो इंसान है। मंझले बेटे की आवाज्ा में व्यंग्य का पुट था।

'चुप करो कमबख्तों! बेगम सत्तार फट पडी, जलील कर दिया कमीनी लडकी ने, वह सिसक-सिसक कर रोने लगीं।

'वैसे है स्मार्ट...., मंझला बाज्ा नहीं आया।

'ख्ाामोश रह कमीने! बेगम सत्तार दहाडीं, 'तुम सब एक जैसे हो। यह सब इस आदमी की वजह से हुआ है। बराबरी... बराबरी... अब चाटो बराबरी को। तबाह करा दिया। वह पति को कोसते हुए सिसकने लगी।

'ऐसा न कहें अम्मी! हो सकता है, उसकी रूह बहुत ख्ाूबसूरत हो।

'अचार डालना है रूह का! अब तक ख्ाामोश बैठे डॉक्टर साहब तुनक कर बोले, 'घर पर रिश्तेदार दांत गाडे बैठे हैं। सच कह रही है तुम्हारी मां। नहीं भेजना चाहिए था लडकी को अकेले। नस्ल ख्ाराब कर दी बदबख्त ने! डॉक्टर साहब का गला रुंध गया और आवाज्ा कंठ में फंस गई।

नीलोफर इकबाल


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