कहानी- कांटे
यह जरूरी नहीं है कि सागर की हर लहर को किनारा मिल ही जाए...। कुछ लहरें बीच सागर में भी खुश रह लेती हैं।
उसने तुम्हें धोखा दिया, फिर भी तुम उसे याद करती हो। जब उसे रिश्ते का सम्मान करना नहीं आया तो तुम्हीं क्यों रिश्ते को निभा रही हो। अपनी जिंदगी को खुलकर जिओ और भविष्य के बारे में सोचो...। समझ लो कि तुम्हारी शादी एक बुरा ख्वाब देखा था, जो टूट गया।
कंचन का मन फिर टूटने लगा..., 'विक्रम, वह ख्वाब नहीं, यथार्थ था। अमित ने शादी की थी मुझसे। तुम नहीं समझ सकते विक्रम क्योंकि तुमने किसी से प्रेम नहीं किया है न। तुम कैसे मेरा दर्द समझ सकते हो? कंचन की बात को बीच में ही काटते हुए विक्रम बोला, 'कंचन, कुछ घाव किसी को दिखते नहीं, इसका मतलब यह नहीं है कि उस शख्स ने चोट नहीं खाई होगी। मैंने भी प्रेम का दर्द झेला है। कंचन ने विक्रम की ओर देखा तो उसकी आंखें नम थीं। वह फिर बोला, 'कंचन, मैं पहले ही अमित से तुम्हें आगाह करना चाहता था मगर तुम मुझे शायद न समझ पातीं क्योंकि तुम प्रेम में थीं। मैं नहीं चाहता था कि अपने स्वार्थ की वजह से तुम्हारा दिल दुखाऊं...इसलिए तुमसे कभी दिल की बात नहीं कह पाया...। वि
क्रम रुक-रुक कर बोल रहा था, 'मैंने कभी कोई अपेक्षा नहीं रखी तुमसे, क्योंकि आस की डोर टूटती है तो ज्यादा दुख होता है। मैं तुम्हें पसंद करता रहा हूं मगर इसलिए तुमसे कह नहीं पाया क्योंकि जानता था तुम्हारे दिल में अमित के सिवा कोई और नहीं है। कंचन, अब जब वह रिश्ता खत्म हो गया है, तुम्हारे पापा चाहते हैं कि हमारी शादी हो मगर मैं तुमसे जानना चाहता हूं कि क्या तुम शादी के लिए तैयार हो? तुम्हारा इंकार भी मुझे स्वीकार होगा क्योंकि मैं रिजेक्शन से जूझना जानता हूं। यह जरूरी नहीं है कि सागर की हर लहर को किनारा मिल ही जाए...। कुछ लहरें बीच सागर में भी खुश रह लेती हैं। विक्रम चला गया तो कंचन उसकी बातों के बारे में सोचने लगी। अतीत रह-रह कर उसकी आंखों के आगे घूम रहा था। वह अमित के प्रेम में इतनी पागल थी कि विक्रम की आंखों में छिपा प्रेम उसे कभी नजर ही नहीं आया। जब वह जिंदगी के पन्ने पलटने लगी तो उसे विक्रम की आंखों में बसा प्यार और स्नेह याद आने लगा, जिससे वह कई बार जानबूझकर अनजान रह जाती थी।
विक्रम चला गया....। अगली सुबह वह जागी तो मन एक निर्णायक मोड पर पहुंच गया था। विक्रम आया तो कंचन का चेहरा नई आभा से दमक रहा था। उस चेहरे में न जाने ऐसा क्या था कि विक्रम का चेहरा खिल उठा। वह तुरंत कंचन के पापा के पास गया। नाश्ते के दौरान पापा ने कंचन को समझाया, 'देखो बेटा, निराश होकर जीना जिंदगी नहीं है। जो कुछ हुआ-उसमें तुम्हारी गलती नहीं थी। तुमने भी अच्छी जिंदगी चाही थी। अमित तुम्हें नहीं समझ पाया, यह उसका दोष है। विक्रम तुम्हें पसंद करता था, मगर हम तुम पर दबाव नहीं डालना चाहते थे। तुम्हारी पसंद में हमारी पसंद थी, इसलिए अमित के साथ तुम्हारे रिश्ते को मंजूरी दी। अब तुम्हारे सामने नई जिंदगी है, मन से उसका स्वागत करो...।
कंचन बेहद खुश थी। उसने न जाने कितने अरसे बाद आईना देखा, जिसमें उसे हमेशा खुश रहने वाली पुरानी कंचन की छवि नजर आ रही थी। घर में दो-ढाई साल बाद फिर रौनक थी। आपसी रिश्ते सहज होने लगे थे। कंचन समझ गई थी कि वह प्यार नहीं, शायद अमित का वैभव था, जो पूरे परिवार पर हावी हो गया था। पापा-मम्मी शुरू से विक्रम को दामाद के रूप में देखना चाहते थे लेकिन अमित की हैसियत विक्रम की सरलता पर हावी हो गई। खैर, अब सब ठीक होने जा रहा था। कंचन ने खुद को शादी के लिए तैयार कर लिया था। ....कुछ ही दिनों में कंचन और विक्रम की शादी की तारीख तय हो गई। निमंत्रण-पत्र छप रहे थे। एक महीने के भीतर ही कंचन और विक्रम परिणय-सूत्र में बंधने जा रहे थे। कंचन ने अमित से जुडी हर याद को खुद से अलग कर लिया और अपने मन के दरवाजे उसकी यादों के लिए भी बंद कर लिए। वह उसे लगभग भूल ही चुकी थी कि एक दिन अचानक फोन की घंटी बजी और अमित की आवाज सुनकर वह आश्चर्यचकित रह गई। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था...।
'कंचन मैं भटक गया था, मैंने तुम्हें बहुत पीडा पहुंचाई। मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारे प्रेम का निरादर किया, जिसकी मुझे सजा भी खूब मिली। मेरे बिजनेस में घाटा हो गया और आर्थिक तंगहाली में उसने भी मुझे छोड दिया, जिसकी खातिर मैंने तुम्हें तलाक दिया था।
अब तक चुप बैठी कंचन बोल पडी, 'बस करो अमित, मैं अधिक नहीं सुनना चाहती। अब हम एक-दूसरे के लिए अजनबी हैं। फिर भी मैं तुम्हें शुक्रिया कहना चाहती हूं कि तुमने मुझे जमाने का दस्तूर समझा दिया। अगर तुम ऐसा न करते तो मैं दुनिया कैसे देख पाती। यह भी अच्छा हुआ कि यह सब शुरू में ही हो गया, वरना मैं तो हमेशा तुम्हारे प्रेम-जाल में ही फंसी रहती। सच्चाई तुम निभा नहीं पाते और झूठ की बुनियाद पर दांपत्य नरक बन जाता। मुझे तुमसे न तो कोई शिकायत है और न अब कोई अपेक्षा। हां, एक खुशखबरी भी है...मेरी शादी हो रही है। तुम्हें कार्ड भेजूंगी..., कहते हुए कंचन ने फोन काट दिया।
अमित को कंचन से ऐसे जवाब की आशा नहीं थी। वह तो सोचता था कि उसे देख कर कंचन सब भूल कर उसे माफ कर देगी। वह रोएगी और खुद को भाग्यशाली समझेगी कि उसका पति अंत में वापस लौट आया। अमित ने एक बार फिर उसे फोन करना चाहा लेकिन इस बार कंचन ने उसे कडी चेतावनी देते हुए फिर फोन काट दिया। अमित ने सोचा था कि वह कंचन से माफी मांगेगा और उसे अपने प्यार की कसम दिलाएगा। कंचन थोडा गुस्सा दिखाएगी और फिर उसे माफ कर देगी मगर यहां तो पासा ही उलटा पड गया था...।