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सखी झरोखा

विवाह जीवन का सबसे यादगार पल होता है। समय के साथ इस संस्था में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। आजकल शादियां भी हाइटेक हो गई हैं।

By Edited By: Published: Tue, 27 Dec 2016 06:19 PM (IST)Updated: Tue, 27 Dec 2016 06:19 PM (IST)
सखी झरोखा
इस अंक में खास दिसंबर 2016 विवाह के बदलते अंदाज विवाह जीवन का सबसे यादगार पल होता है। समय के साथ इस संस्था में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। आजकल शादियां भी हाइटेक हो गई हैं। निमंत्रण-पत्रों, विडियो शूट्स, प्री वेडिंग फोटो शूट्स, प्रेजेंटेशन से लेकर वर-वधू के मेकअप और स्टाइलिंग अंदाज तक बदल गए हैं। तमाम बदलावों सहित शादी से जुडे अनगिनत सवालों के जवाब लेकर आ रही है सखी। इस विशेष अंक में होंगी शादी-ब्याह से संबंधित ढेरों जानकारियां। इसके साथ ही होंगे जानकारीपूर्ण लेख, रोचक कहानियां, सभी स्थाई स्तंभ और भी बहुत कुछ...। अगले अंक के आकर्षण जनवरी 2017 वेलनेस स्पेशल नया साल अपने साथ नई उम्मीदें लेकर आता है। हम सब यही चाहते हैं कि आने वाले वर्ष में हमारा परिवार स्वस्थ और खुशहाल रहे और हम कामयाबी के पथ पर निरंतर आगे बढें। सखी आपकी इन भावनाओं को बखूबी समझती है। इसलिए आगामी अंक में लेकर आ रही है 'बॉडी, माइंड एंड सोल' यानी संपूर्ण कल्याण के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण से भरपूर कई बेहतरीन रचनाएं, जो आपके जीवन के हर पहलू को संवारने में मददगार होंगी। इसके साथ ही आप पढ सकेेंगी विविधतापूर्ण लेख, कहानियां और सभी रोचक स्तंभ। दूर हुई मुश्किल हमारी जिंदगी से मुश्किलों का बेहद करीबी रिश्ता है और ये हर कदम पर हमारे साथ चल रही होती हैं। सच तो यह है कि हम सभी को खुद ही उनका हल ढूंढना पडता है। चाहे रिश्तों से जुडे तनाव और बच्चों की परवरिश से जुडी परेशानियां हों या रोजमर्रा के जीवन से जुडी कोई भी छोटी-बडी समस्या, ऐसी दिक्कतें हमें बहुत कुछ सीखने का भी मौका देती हैं। जब कभी आपके सामने कोई परेशानी आई तो आपने उसका हल ढूंढने के लिए क्या तरीका अपनाया? आप हमें अपना कोई ऐसा ही अनुभव, पासपोर्ट साइज फोटो, पूरे पते और मोबाइल नंबर के साथ यहां दिए गए पते पर लगभग 500 शब्दों में यथाशीघ्र लिख भेजें। आप चाहें तो अपने अनुभव ई-मेल या फेसबुक के माध्यम से भी भेज सकते हैं। सखी स्टार ऑफ दि मंथ : मेजर डी. पी. सिंह 1999 में कारगिल में हुई जंग में मोर्टार लगने के बाद मेजर डी.पी. सिंह बुरी तरह घायल हो गए। अस्पताल लाए जाने पर डॉक्टरों ने पहले तो उन्हें मृत घोषित कर दिया लेकिन बाद में पता चला कि उन्होंने दायां पैर खो दिया है। जब वह जिंदगी की कडिय़ों को दोबारा जोडऩे लगे तो उन्हें दौडऩे की इच्छा हुई। उन्होंने तीन मैराथॉन में हिस्सा लिया। फिर उन्हें साउथ अफ्रीका के ब्लेड रनर ऑस्कर पिस्टोरियस से फाइबर ब्लेड से बने कृत्रिम पैर की जानकारी मिली। सेना ने मेजर डी.पी. सिंह को यह ब्लेड मुहैया कराया। इस ब्लेड से हाफ मैराथॉन दौडऩे वाले वह पहले भारतीय बने। अपने हौसले की बदौलत उन्हें भारत का ब्लेड रनर कहा गया। अब वह 27 नवंबर से 3 दिसंबर के दौरान दिल्ली से चंडीगढ के बीच 7 शहरों में दिव्यांगों के लिए दौड के 7 इवेंट्स करा रहे हैं। दिव्यांग दौड खत्म करने के बाद स्वच्छता अभियान में भी भाग लेंगे।

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