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आओ मिल कर खेलें

मेरी 7 वर्षीय बेटी परिवार की इकलौती संतान है। वह बेहद शर्मीली और आत्मकेंद्रित है। वह अपनी चीज़ें दूसरों के साथ शेयर नहीं करना चाहती। इस समस्या का क्या समाधान है?

By Edited By: Published: Sun, 13 Nov 2016 01:14 PM (IST)Updated: Sun, 13 Nov 2016 01:14 PM (IST)
आओ मिल कर खेलें
पेरेंटिंग टिप्स -बच्चों को हमेशा मिल-जुल कर खेलने के लिए प्रेरित करें। - उन्हे रोजाना शाम को पार्क में ले जाएं और किसी भी राइड के इस्तेमाल के दौरान आप उन्हें बारी का इंतजार करना सिखाएं। -आप भी खुद आगे बढ कर दूसरों को सहयोग दें और उनके साथ अपनी चीजें शेयर करें। -बच्चे के हर अच्छे कार्य और व्यवहार की प्रशंसा करें। मेरी 7 वर्षीय बेटी परिवार की इकलौती संतान है। वह बेहद शर्मीली और आत्मकेंद्रित है। वह अपनी चीजें दूसरों के साथ शेयर नहीं करना चाहती। इस समस्या का क्या समाधान है? ऋचा सक्सेना, दिल्ली सबसे पहले आपको अपनी सोच बदलनी चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि हर इकलौते बच्चे के साथ ऐसी समस्या हो। इस उम्र के बच्चों में शर्मीलेपन की कई और वजहें भी हो सकती हैं। अब तक हुए कई अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि प्रेग्नेंसी के दौरान अगर मां के मन में किसी तरह की असुरक्षा, भय या तनाव हो तो जन्म के बाद बच्चे में भी अकसर ऐसी समस्या देखने को मिलती है। जहां तक शेयरिंग का सवाल है तो यह बात कुछ हद तक ठीक है कि जिन परिवारों में दो बच्चे होते हैं, वे मिल-जुलकर खेलते हैं और इससे उनमें शेयरिंग की भावना सहज ढंग से विकसित होती है। फिर भी यह जरूरी नहीं है कि दो या उससे अधिक भाई-बहनों वाले परिवारों के सभी बच्चों में शेयरिंग की भावना समान रूप से मौजूद हो। दरअसल आधुनिक जीवनशैली में बच्चों की परवरिश का तरीका भी तेजी से बदल रहा है। आजकल ज्य़ादातर परिवारों में पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते हैं। उनके पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है पर उनके पास इतना भी समय नहीं होता कि वे अपने बच्चों की बातें ध्यान से सुनें और उनके बीच होने वाले छोटे-छोटे झगडों को सुलझाएं। इसी परेशानी से बचने के लिए वे अपने घर में हमेशा एक ही जैसे दो टॉयज या चॉकलेट लेकर आते हैं। यहां तक कि आजकल ज्य़ादातर घरों में बच्चों के खेलने के लिए भी दो लैपटॉप होते हैं। केवल बच्चों में ही नहीं बल्कि बडों में भी शेयरिंग की भावना घटती जा रही है। इसीलिए ज्य़ादातर परिवारों में लोग एक से ज्य़ादा टीवी सेट और गाडिय़ां रखते हैं। अब लोगों में जरा भी धैर्य नहीं है। कोई भी व्यक्ति दूसरे की जरूरतों का ध्यान रखते हुए अपनी बारी का इंतजार करने को तैयार नहीं है। बच्चे भी बडों से ही सीखते हैं। इसीलिए आजकल छह-सात साल की उम्र से ही बच्चे अपने लिए अलग कमरे की मांग करने लगते हैं। अगर आप अपनी बेटी को ऐसी समस्याओं से बचाना चाहती हैं तो सबसे पहले अपने घर में शेयरिंग का माहौल बनाएं। रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातों का भी बच्चे के व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पडता है। कोशिश यही होनी चाहिए कि परिवार के सभी सदस्य रोजाना कम से कम एक वक्त का खाना साथ बैठकर खाएं। घर पर जब भी उसके दोस्त आएं तो आप उन्हें सीमित संख्या में खिलौने दें और अपनी बेटी से कहें कि वह भी उनके साथ मिल कर खेले। सभी बच्चों को चॉकलेट, बिस्किट या वेफर्स के अलग-अलग पैकेट देने के बजाय उनके बीच केवल एक ही बडा पैकेट रख दें और उनसे कहें कि वे आपस में बांटकर खाएं। कभी-कभी जानबूझकर आप भी उसकी प्लेट में से कोई चीज उठाकर खा लें। अगर वह मना करे तो उसे प्यार से समझाएं कि तुम भी मेरी प्लेट से खाना ले सकती हो और शेयरिंग करना अच्छी बात है। सुबह जब अखबार आए तो आप भी अपने पति से उसके कुछ पन्ने शेयर करके पढें। घर के छोटे-छोटे कामकाज में बच्चों को भी शामिल करें। मसलन, पौधों को पानी देना, टेबल पर प्लेटें लगाना, खिलौनों को समेट कर रखना आदि। अगर ऐसी आदतों का नियमित पालन किया जाए तो आपको महीने भर में ही अपनी बेटी के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव नजर आएगा।

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