नए दौर का नाच विमर्श
नृत्यकला की लोकप्रियता तो युगों से चली आ रही है, पर इन दिनों आलम यह है कि जहां देखिए वहीं लोग थिरके जा रहे हैं। महत्ता और उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए इसके लिए कुछ गाइडलाइन तय कर देना अब जरूरी हो गया है।
शेक्सपीयर की मानें तो पूरी दुनिया ही रंगमंच है और सभी स्त्री-पुरुष नट-नटिनी। बकौल तुलसीदास सबहिं नचावत राम गोसाई। सूरदास ने भगवान को याद दिलाया कि अब हौं नाच्यो बहुत गुपाल और मीरा का घुंघरू बांधना तो नाचद्रोहियों को अखर ही गया। सार यह कि नाच विद्या बहुत पुरानी है तथा मजे की बात यह कि इसकी डिमांड अभी भी बढती जा रही है। विश्वास न हो तो टीवी चलाकर देख लें। भांति-भांति की नृत्य प्रतियोगिताएं सरपट दौडी जा रही हैं। इतनी प्रतियोगिताओं के बावजूद आज भी नृत्य की सर्वाधिक मांग विवाह के अवसर पर ही है। इस अवसर पर हर किसी को किसी भी प्रकार के डांस का पूरा मौका दिया जाता है। नृत्य की जितनी भी शैलियां और कलाएं होती हैं, इसके लिए मान्यता प्राप्त हैं, सिवाय शास्त्रीय नृत्यों को छोडकर। पारंपरिक विवाह नृत्य से लेकर अत्याधुनिक नृत्य तक इस मौके पर प्रदर्शित किए जा सकते हैं। पारंपरिक नृत्य का तात्पर्य ऐसे नृत्य से है जो विवाह के दिन ही सीखा है और वहीं प्रस्तुत भी किया जाता है। दुनिया भर में शायद यही एक अवसर है जब किसी का विद्यारंभ और दीक्षांत समारोह एक ही कालखंड में हो रहा हो। जब से शादियों में नर्तकों के अलावा संभ्रांत लोगों द्वारा डांस की सभ्यता का विकास हुआ तथा इसमें सिनेमा जगत को प्रवेश मिला, तबसे एक ही डांस ऐसा है जिसने अपनी पकड बना रखी है, वह है- नागिन डांस। इसे आप शादी का सदाबहार डांस कह सकते हैं। ज्यों ही कोई नागिन डांस के पोज में आता है, बाकी सभी बंद हो जाते हैं। इस नृत्य में झूमने, घूमने और लोटने के लिए ज्यादा जगह चाहिए जो नागमुद्रा आने से सहज ही उपलब्ध हो जाती है। अन्य सभी पारंपरिक, फ्री स्टाइल एवं रैप डांसर आत्मसमर्पण करते हुए नागिन डांसर के लिए मैदान छोड जाते हैं। नागिन का क्या भरोसा, किसे धरे और किसे डंसे? यह मानव जाति पर वैसे भी खूब फबता है क्योंकि आदमी का स्वभाव नाग से काफी मिलता-जुलता है।
इसके कुछ गुर आपको बताता चलूं। पहली नजर में नर्तक को पिया हुआ दिखना चाहिए। यदि पी चुका है तब तो कोई समस्या ही नहीं, नहीं पी तो पी लेना बेहतर और यदि पीता ही नहीं तो पीने का स्वांग जरूरी है। इसके दो लाभ हैं, पहला तो यह कि हाथ-पांव घुमाने के लिए बडा एरिया मिल जाएगा। लोग पंगे से बचने के लिए एहतियातन दूर हट ही जाते हैं। इसके अलावा हर दर्शक के फोकस पर आप अकेले होंगे।
नागिन डांस के पहले पोज में दोनों हथेलियों को आधी अंजुली की तरह जोडकर सिर पर रखें। इससे नाग देवता के फन का बिंब बनता है। दरअसल, नागिन डांस का पहला परिचय यही पोज है। इसमें जुडी हुई हथेलियों को लगातार फन स्टाइल में हिलाते रहना होता है। इस नृत्य में दूसरी सर्वाधिक हिलने वाली चीज कमर होती है। कमर को गोला बनाते हुए चलाना नाग के झूमने का प्रतीक होता है। हां, कमर और हस्त संचालन में एक रिदम होना आवश्यक माना गया है। झूमने की गति थोडी अधिक हो तो सोने पर सुहागा। ध्यान रखें कि झूमने का कार्य एक स्थान पर खडे होकर नहीं करना है। आप उस पूरे गोले का सदुपयोग करें जो आपके नृत्य के प्रभाव से बाकी कलाकारों ने अभी खाली किया था। जब आप पूरी तरह घूमने तथा झूमने लग जाएंगे तो बैंड पार्टी नागिन धुन बजाने लग जाएगी। वही जो नागिन डांस में इकलौती मान्यताप्राप्त धुन है- तन डोले मेरा मन डोले..। ऐसा हो जाए तो समझें कि सब कुछ ठीक चल रहा है। अब आपको इसे पीक पर ले जाकर खत्म करना है। पीक हैंकी डांस यानी रूमाली नृत्य है। जब डांस पूरे शबाब पर हो तो रूमाल का एक सिरा अपने दांतों में दबाना तथा दूसरा खींचकर हाथों से पकडे रहना है और इसे गोल-गोल घुमाना है। अब अंतिम दृश्य। रूमाल को उसी पोज में घुमाते हुए जमीन पर लेट जाएं। कपडे गंदे होने की चिंता न करें, प्रतिष्ठा का प्रश्न है। पीठ के बल लेटना है और पीठ के सहारे ही जमीन पर घूम-घूमकर गोला बनाना है। कुछ यों दिखाना है कि बीन बजी जा रही है और नागिन बेचारी बेचैन है। वर्तुलाकार घूम लेने से लोग आपसे काफी प्रभावित हो चुके होंगे। अगर आपको दिखता है कि कुछ मनभावन युवतियां मुख पर हाथ रखकर हंस रही हैं या कदाचित आश्चर्य का भाव उनके मुखमंडल पर आ चुका है तो आप अपने नृत्य को विराम दे सकते हैं।
इस प्रकार का डांस यहीं निपटा लें। डीजे पर नागिन डांस का स्कोप समाप्त हो चुका है। यद्यपि पारंपरिक नृत्य हल्के-फुल्के सुधार के साथ डीजे पर भी स्वीकृत हैं, किंतु वहां की शैली कुछ जुदा है। यहां नृत्य करने वाले को बहुत तेज होना चाहिए। मेडिकल भाषा में कहें तो हाइपरएक्टिव। कारण यह है कि अति लोकप्रिय गीत भी डीजे पर किस सेकंड बदल जाएगा, कोई नहीं बता सकता। डीजे नियमावली के अनुसार किसी भी गीत को पूरा बजा देना अपराध है, एक तरह का पाप है और डीजे अवधारणा के पूरी तरह खिलाफ है। अत: नर्तक को अत्यंत सावधान रहना पडता है कि न जाने कौन से क्षण ताऊ वाले गाने के लिए उठा हुआ कदम चमेली, फोटो या मुन्नी के माफिक बदलना पड जाए।
हालांकि डीजे पर गानों के टुकडे ही बजाए जा सकते हैं, फिर भी यह नृत्य का एक संजीदा प्लैटफॉर्म माना गया है। डीजे पर आप उनकी नृत्यकला या नृत्यकाया से ही धन्य नहीं महसूस कर सकते, अपितु अपना भविष्य भी निर्धारित कर सकते हैं। इतिहास गवाह है कि कई युवा दिलों में संपर्कइस डीजे ने ही करवाया है। अत: यहां थोडा संजीदा होकर नाचें। इसके बाद आपको संजीदा होने का अवसर नहीं मिलेगा। एक बात जरूर माननी पडेगी कि डीजे का रिश्ता दिल से होता है। जब डीजे बजता है तो हर व्यक्ति का दिल बजता है। यह बजना मस्ती में हो, यह कोई जरूरी नहीं है। डीजे के स्पीकरों की सफलता ही इस बात पर है कि वे अपनी फ्रीक्वेंसी से आपके दिल की फ्रीक्वेंसी को मिलाकर और हिलाकर रख दें। जब आपका दिल झनझनाने लगे तो डीजे का जीवन सफल हो गया।
अगर आपको शादी डांस से कुछ पाना है तो शांत न बैठें। नाचना बंद किया तो आपको कोई नोटिस नहीं करेगा। कोशिश यह करें कि आप स्टेज खाली ही न करें। चाहे डांस के नाम पर कुछ भी करते रहें। यहां तक कि जैक्सन स्टाइल का नितांत अकेलेपन वाला डांस भी यहां चलेगा, जिसका मौका बारात के साथ तो दूल्हे के जीजा को भी नहीं मिलता। हां, ध्यान रहे कि शास्त्रीय वाला यहां भी नहीं चलेगा। यह भी एक अलग बात है कि शास्त्रीय नृत्य आपको आता तो बिना सौ बार सिफारिश करवाए आप स्टेज पर आते ही कहां? ऊपर से शास्त्रीय नृत्य के लिए कॉस्ट्यूम भी तो चाहिए।
डांस शादियों के अलावा अन्य अवसरों पर भी होते हैं- जैसे जन्मदिन, सगाई, मैरिज एनीवर्सरी तथा जागरण आदि। लेकिन उनमें सबसे बडी कमी यह है कि अभिव्यक्ति का पूरा अवसर नहीं मिल पाता। जन्मदिन को बच्चों का मामला मानकर हल्के में लिया जाता है। इसमें तो आते भी हैं बच्चे, खाते भी हैं बच्चे और नाचते भी बच्चे ही हैं। बडे आ भी गए तो बचपन छोडकर आते हैं। सगाई एवं मैरिज एनिवर्सरी ज्यादातर व्यक्तिगत समस्याएं हैं, इसमें आम जनता की कोई विशेष भागीदारी नहीं होती। अब ले-देकर जागरण रह गया तो भक्ति कोई कितनी देर कर पाएगा कि नाचता ही रह जाए। जिनमें भक्ति घुस चुकी होती है, उम्र के कारण उनकी काया ही बागी हो चुकी होती है और जिनकी काया मन की समर्थक होती है, उनकी आत्मा बागी होती है। यह अलग बात है कि जागरण गायक भी अपनी पूरी सृजनशक्ति का उपयोग करते हुए युवावर्ग को मुन्नी, शीला और फोटो के भजनों के माध्यम से जोडे रखना चाहते हैं लेकिन वे इस अप्राकृतिक कार्य में सफल नहीं हो पाते।
लिहाजा, सभी नृत्यप्रेमियों को ध्यान रखना चाहिए कि नाच का बंपर अवसर विवाह ही है और सारी सफलता उसी में होने वाले नृत्य पर टिकी है। जैसे भी हो सके, शादियों में नृत्य करें और समाज को कला से समृद्ध करें। जब बंदर की तरह जीवन भर नाचना ही है तो आदमी की तरह क्यों न नाच लें? आखिर कुछ तो कर जाएं!
हरिशंकर राढी