गुडि़या
उर्दू लेखक व फिल्म निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास का जन्म 7 जून 1914 को पानीपत में हुआ। उन्होंने डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी, श्री चार सौ बीस, बॉबी और मेरा नाम जोकर जैसी फिल्मों की कहानियां, स्क्रीन प्ले और संवाद लिखे। सात हिंदुस्तानी, दो बूंद पानी और हवा महल को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली। उन्हें 1968 में पद्मश्री मिला। उनका निधन 1978 में हुआ। उन्हें कई अन्य अवॉर्ड्स भी मिले। प्रस्तुत है उनकी एक कहानी।
मिस्टर और मिसेज सुशील चंद्र.. सुशील ने दार्जिलिंग पहुंच कर होटल के रजिस्टर में यही नाम लिखे। मैनेजर ने मुस्कराकर उन्हें देखा और चाबी देते हुए कहा, हनीमून?
जी, सुशील ने बनारसी साडी में लिपटी बीवी को प्यार से देखते हुए कहा, हमारी शादी कल ही हुई है।
बधाई हो, मैनेजर ने कहा, हम आपको बेहतरीन सूइट दे रहे हैं जो हनीमून जोडों के लिए रिजर्व है। फिर उसने आवाज दी बैरा, साहब को कमरा दिखाओ। कमरे में पहुंच कर जैसे ही बैरा टिप लेकर बाहर निकला, मिसेज सुशील चंद्र बोलीं, मैं साडी पहन कर बोर हो गई हूं, बेलबॉटम पहन लूं?
सुशील ने प्यारी-सी गुडिया जैसी बीवी को देखा और बोला, जरूर पहन लो। फिर मुंह-हाथ धोकर सैर को निकलते हैं। सुना है, यहां से एवरेस्ट की चोटी दिखाई देती है।
नई दुलहन ने तुरंत सूटकेस से ऊनी पोशाक निकाली और बाथरूम जाते हुए पति से टकरा गई। सुशील ने मौके का फायदा उठाते हुए उसे बांहों में ले लिया।
अच्छा लग रहा है?
बहुत, दुलहन ने जवाब दिया।
मैं कैसा लगता हूं?
तुम तो बहुत स्वीट हो डार्लिग.., मिसेज चंद्र ने इतने भोलेपन से सुशील की ओर आंखें झपका कर देखा कि उससे न रहा गया। उसने झुक कर अपनी दुलहन को किस करना चाहा, मगर मिसेज चंद्र मचल कर उसकी बांहों से निकल गई। बच्चों की तरह हंसती हुई भागी और बाथरूम में पहुंच कर दरवाजा बंद कर लिया। सुशील, जिसने पहली बार बीवी को किस करने की कोशिश की थी और जो अमेरिका में कई लडकियों को किस कर चुका था, मायूस सा हो गया। दोनों नहा-धोकर सैर पर निकले।
मिसेज सुशील चंद्र ने लंबे-चौडे पति के कोट की आस्तीन से लिपटते हुए कहा, यहां तो बडी सर्दी है..।
बीवी के नर्म स्पर्श को महसूस करके सुशील ने अपनी बांह उसकी कमर में डाल दी।
वह देखो डार्लिग.., उसने दूर की बर्फीली चोटियों की ओर इशारा करते हुए कहा, वह है माउंट एवरेस्ट।
मिसेज चंद्र बच्चों की तरह ख्ाुश होकर तालियां बजाने लगीं। सुशील ने सोचा, कितनी भोली है मेरी बीवी। इसके साथ जिंदगी अच्छी कटेगी। वापसी में बाजार से गुजरे तो नई दुलहन ने लॉलीपॉप खरीदा। फिर दूसरी दुकान से कॉमिक्स खरीदीं और बोली, सुशील, अब होटल चलो, मुझे भूख लगी है।
हनीमून सूइट में एक छोटा सा डाइनिंग रूम था। बैरे ने खास अंदाज से उनकी ओर देखते हुए कहा, बर्तन छोड दीजिएगा। मैं सुबह बेड-टी लेकर आऊंगा तो ले जाऊंगा। गुड नाइट सर, गुड नाइट मैडम।
खाना खाते-खाते सुशील ने देखा कि उसकी दुलहन ऊंघने लगी है।
सुशील ने सोचा कि शायद हनीमून की रात हर दुलहन को जल्दी नींद आती होगी। बोला, मैं हीटर जला देता हूं, तुम सो जाओ।
बेडरूम की खिडकी खुली थी, जहां से बर्फीली हवा आ रही थी। उसे बंद कर के सुशील ने हीटर का स्विच दबाया। फिर वापस डाइनिंग रूम पहुंचा। यह देख कर वह हैरान रह गया कि उसकी दुलहन मेज पर ही सिर रख कर सो गई है।
विमला, उसने धीरे से आवाज दी।
बेबी, उसने फिर बोला और आहिस्ता से सोई हुई लडकी के गालों को छुआ।
वह बच्चों की तरह हाथों के तकिए पर सिर रखे ऐसे सो रही थी कि सुशील को जगाने का मन न हुआ। उसने बीवी को दोनों हाथों में उठा लिया और बेडरूम में लाकर धीरे से डबल बेड पर लिटा दिया।
सोती हुई गुडिया को एक बार फिर सुशील ने चूमने की कोशिश की। मगर नींद में ही लडकी का हाथ गालों पर चला गया और वह बडबडाई, मुझे बहुत नींद आ रही है..।
सुशील जागता रहा और नन्ही सी बीवी के बारे में सोचता रहा।
उसका नाम था बिमला बैनर्जी, मगर सब बेबी कहते थे। सोलह से कुछ ऊपर ही रही होगी। कॉन्वेंट स्कूल से सीनियर कैंब्रिज पास किया था, मगर थी बच्ची जैसी। शक्ल-सूरत से भी और दिल से भी। शरीर युवा हो रहा था मगर उसे लॉलीपॉप और कॉमिक्स भाते थे। अब तक गुडिया से खेलती थी। शादी की बात चलती तो उसके पापा जो एडवरटाइजिंग फर्म में अकाउंट-एग्जिक्यूटिव थे, कहते, अरे अभी तो विमला बच्ची है। मिसेज बैनर्जी कहतीं, सत्रह की हो जाएगी। लडकी घर में हो तो फिक्र करनी पडती है। ढंग का लडका मिले तो देर नहीं करनी चाहिए। अच्छे लडके मिलते कहां हैं?
मिस्टर और मिसेज बैनर्जी की आखिरी औलाद थी बिमला। उससे बडी दो बेटियां और थीं। एक बारह बरस बडी और दूसरी चौदह बरस। दोनों की शादियां हो चुकी थीं। एक का पति आसाम में चाय बागान का मैनेजर था, दूसरी बिजनेसमैन के घर ब्याही थी। दोनों के बच्चे भी थे। बेबी बुढापे की संतान थी, इसलिए माता-पिता को प्यारी भी थी। तीन बेटियों के बाद मिसेज बैनर्जी ने ऑपरेशन करा लिया था। मां-बाप की आंखों का तारा थी बेबी। बीमार होती तो रात-रात भर दोनों उसके पास बैठे उसे थपकते रहते। आया को हिदायत थी कि बेबी का ख्ायाल रखे। स्कूल भी आया के ही साथ जाती। लडकियों का स्कूल था, मगर उसे मेलजोल बढाने की इजाजत नहीं थी। दोस्त भी उसे बेबी ही बुलाते। वह अपनी गुडिया के साथ ही व्यस्त रहती या फिर बच्चों के साथ रिंगा-रिंगा रोजी गाकर घूमती, चक्कर लगाती। मुंह से बबलगम के बुलबुले निकालती। बैनर्जी, कितनी स्वीट है तुम्हारी बच्ची? बैनर्जी साहब के दोस्त कहते।
फिर एक दिन उनके घर सुशील सेन मिलने आया, जो बैनर्जी के दोस्त सुभाष चंद्र सेन का बेटा था। वह हाल ही में अमेरिका से बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री लेकर लौटा था और उसे मिस्टर बैनर्जी अपनी फर्म में नियुक्त करना चाहते थे। लंबा-चौडा, हंसमुख, ख्ाुले-दिल का नौजवान।
तुम्हारा क्या खयाल है? मिस्टर बैनर्जी ने मिसेज बैनर्जी से पूछा, मुझे सुशील अच्छा लगता है। उसे अपनी फर्म में पार्टनर बनाना चाहता हूं। बेबी की शादी इससे कर दें तो बेबी घर में ही रहेगी और हमें बिजनेस में देखभाल करने वाला दामाद भी मिल जाएगा। मैं भी कब तक काम करता रहूंगा?
लडका तो मुझे भी ठीक लगता है, पत्नी ने सहमति प्रकट की।
बेबी क्या कहेगी?
वह तो बच्ची है। जिसे हम पसंद करेंगे उससे शादी करेगी। मगर सुशील बेबी को पसंद करेगा या नहीं?
पति-पत्नी की बातचीत के बाद सुशील और बेबी को मिलने-जुलने के कई मौके दिए गए। सुशील आता तो चिल्ला कर कहता, हाय बेबी! बेबी तुरंत जवाब में उसे अपनी नई गुडिया दिखा देती। सुशील कहता, सिनेमा देखने चलोगी?
मम्मी-डैडी चलेंगे न? वह जिद सी करती। मम्मी-डैडी बहाना बना देते, नहीं भई, हमें कुछ काम है। तुम जाओ।
बेबी फिर कहती, एक शर्त पर जाऊंगी, मुझे लॉलीपॉप दिलाओगे?
एक नहीं, दो-दो, वह मुस्कराकर कहता।
बबलगम और आइसक्रीम भी..?
श्योर.., वह यकीन दिलाता।
बेबी तुरंत फ्रॉक बदलकर सुशील की उंगली पकड कर फिल्म देखने चली जाती। चार साल अमेरिका में गुजारने के बावजूद सुशील को यह भोली-भाली हिंदुस्तानी लडकी भा गई। पर्दे पर जब हीरो विलेन को मारता तो वह जोश से तालियां बजाने लगती, लेकिन रोमैंटिक दृश्यों में वह बोर हो जाती। हीरो ने हीरोइन की गर्दन में बांहें डालीं तो बेबी बोली, यह आदमी उसे क्यों मार रहा है?
चंद हफ्ते बाद सुशील के पिता की चिट्ठी आई, मेरा बेटा आपकी बेटी से शादी करना चाहता है, अगर आपको मंजूर हो तो? मां से पिता ने कहा, पूछो बेटी से..
मां ने बेटी को कमरे में बुला कर कहा, बेबी, अब तुम्हारी शादी की उम्र हो गई है.,
मम्मी.. सच?
तो क्या मैं झूठ बोलती हूं?
तब तो मेरे लिए लाल रंग की ड्रेस बनेगी, गहने बनेंगे, घर में गाना-बजाना होगा..
मगर मम्मी.., बेबी एकाएक उदास होकर बोली, मुझसे कौन शादी करेगा?
सुशील चंद्र, मम्मी धीरे से बोलीं।
वह मुझे मारेगा तो नहीं?
क्यों.., वह तो तुम्हें बडे प्यार से रखेगा।
मम्मी मैंने सुना है, लोग बीवी को पीटते हैं।
अगले महीने ही बेबी दुलहन बन गई और अब वह दार्जिलिंग में हनीमून मना रही थी।
सुबह उठी तो सुशील ने पूछा, बेबी, चाय पियोगी या कॉफी?
दूध..।
नाश्ता करके दोनों घोडे पर चढ कर सैर को निकले। बेबी घुडसवारी अच्छी करती थी। हर बार सुशील से आगे निकल जाती और फिर उसे चिढाती, बडे घुडसवार बनते थे मिस्टर सुशील, देखो मैंने हरा दिया। फिर जोर से तालियां बजाती। सुशील मुस्कराकर रह जाता। सनोबर के पेडों के साये में घास पर बैठ कर लंच किया गया। धूप में बेबी स्कार्फ मुंह पर डाले हुए सो गई। सुशील भी देर रात तक जागा हुआ था। वह भी सो गया। कुछ देर बाद नींद खुली तो बेबी गायब थी। निगाह दौडाई तो देखा, तितलियां पकडने में जुटी है।
बेबी, शाम हो रही है। वापस होटल चलें।
सुशील ने आवाज दी।
चलती हूं, बेबी की आवाज आई, एक तितली तो पकड लूं।
होटल आकर दोनों ने चाय पी। कपडे बदले। फिर कमरे में अंगीठी जला कालीन पर ही बैठ गए। सुशील अखबार के पन्ने उलटने लगा। बेबी कॉमिक्स में व्यस्त हो गई।
बैरा खाना लाया तो बेबी ने सुशील से कहा, यहीं आग के पास बैठ कर खाएंगे।
सुशील ने कहा, अच्छा आइडिया है।
खाना खाते-खाते बेबी की आंखें मुंदने लगीं।
तुम्हारे घुटने पर सिर रख कर सो जाऊं? बेबी ने बडी-बडी आंखें करके पूछा।
हां-हां, सुशील ने खुश होकर जवाब दिया।
बेबी ने सुशील के घुटनों पर सिर रख दिया और आंखें बंद कर लीं।
सुशील ने एक नजर दुलहन पर डाली और पैग बनाने लगा। थोडी देर में वह दुलहन की ओर मुखातिब हुआ, बिमला! जवाब न मिला, तो बोला, बेबी, खाना तो खा लो।
जवाब में बेबी के खर्राटे सुनाई देने लगे।
सुशील की उंगलियां बेबी के बॉयकट बालों में कंघी करती रहीं। फिर उसने बेबी के गाल थपथपाए। दाएं हाथ की उंगली बेबी के अधखुले होंठों पर फेरी, मगर इस कोशिश में बेबी जाग गई और बडबडाने लगी। सुशील ने किसी तरह खाना ख्ात्म किया। उसे महसूस हुआ कि उसका घुटना और टांगें सुन्न हो रहे हैं। बमुश्किल उसने सोती हुई बेबी को जगाया और उसे ले जाकर पलंग पर गिरा दिया। बेबी सोती रही। उस रात व्हिस्की के दो पैग पीकर भी सुशील को नींद नहीं आई।
सुशील का इरादा था कि सप्ताह भर दार्जिलिंग में हनीमून मनाएगा, मगर तीसरे दिन ही बेबी को गुडिया की याद ने इतना सताया कि वह जिद पर अड गई सुशील घर चलो, मेरी गुडिया अकेली होगी।
सुशील ने एक बार तो कह दिया, तुम्हें गुडियों की चिंता है, पति की नहीं?
बेबी ने आंखें बडी-बडी करके जवाब दिया, तुम तो नाराज हो गए। देखो, उनसे तो मेरी बचपन की दोस्ती है। तुम तो अभी-अभी मिले हो। फिर तुम तो आदमी हो, वे बेचारी तो नन्ही सी हैं..।
अगले दिन ही वे लोग दार्जिलिंग से वापस कोलकाता पहुंचे। वहां सुशील ने अपने लिए सजाया हुआ कमरा बेबी को दिखाया। सारा फर्नीचर नया था। दीवारों पर नया रंग-रोगन हुआ था। डबल बेड से लेकर पलंगपोश, कारपेट तक नीले रंग में सजे थे। बेबी को सब कुछ बहुत पसंद आया, मगर एक चीज की कमी थी। मेरी इतनी सारी गुडिया कहां रहेंगी? उसने पूछा।
सुशील ने घबराकर पूछा, वे भी यहां रहेंगी?
तो क्या मैं उन्हें अकेला छोड दूंगी? मैं अभी घर जाकर उन्हें लेकर आती हूं। कमरे के कोने में ही मैं उनका घर सजाऊंगी।
घर जाते ही बेबी ने मां से कहा, मां, मैं अपनी गुडियाएं लेने आई हूं।
मां ने कहा, बेटा, तुम्हारी शादी हो गई तो हमने तुम्हारी गुडियों को भी ब्याह दिया। अब वे भी अपने-अपने घर चली गई हैं।
एक गुडिया का ब्याह उसकी आया की बेटी शब्बो के गुड्डे से हुआ था। शब्बो गुड्डे-गुडिया लेकर आई और बोली, देखो बेबी तुम्हारी गुडिया कितनी खुश है मेरे गुड्डे के साथ!
सचमुच बेबी को गुडिया के चेहरे पर एक मुस्कराहट दिखाई दी।
मगर मैं गुडिया का घर जरूर ले जाऊंगी? बेबी ने कहा, यहां तो बेकार ही है।
बेकार नहीं है, मां ने उसे यकीन दिलाया, जाओ, देख लो। वहां अब बिल्ली रहती है।
मम्मी, तुम भी कमाल करती हो, मेरी गुडियों का घर उस गंदी बिल्ली को दे दिया। मैं निकालती हूं अभी तुम्हारी बिल्ली को।
बेबी जल्दी-जल्दी कदम उठाती अपने कमरे में पहुंची तो देखा कि गुडिया के घर से म्याऊं-म्याऊं की आवाजें आ रही हैं। झांका तो चार छोटे-छोटे बच्चे नजर आए।
मां, यह क्या हुआ? हमारी बिल्ली तो एक ही थी, फिर इतने सारे बच्चे कहां से आए?
बेटी, लोग मानते हैं कि भगवान के घर से आए हैं, मगर तुम पढी-लिखी हो। ये सारे बच्चे बिल्ली की कोख से निकले हैं।
कितने स्वीट हैं ये? उसके मुंह से निकला। यह कह कर बेबी ने नरमी से एक-एक बच्चे को उठाया। वे कुलबुला रहे थे, मगर बेबी को उनका कुलबुलाना अच्छा लग रहा था। उनके नन्हे-नन्हे दिलों की धडकन उसके अपने सीने के अंदर घुल-मिल जाती और उसे महसूस होता कि यह नन्ही धडकन उसके दिल से कुछ कह रही है। कहां तो वह बिल्ली को अपनी गुडियों के घर से निकालने के इरादे से आई थी और कहां वह ख्ाुद ही बिल्ली के बच्चों से खेलने लगी। शाम को बेबी सुशील के घर पहुंची तो उसने पूछा, ले आई गुडिया का घर?
नहीं, गुडिया अपने घर चली गई। अभी तो उनके घर में बिल्ली ने बहुत प्यारे-प्यारे बच्चे दिए हैं। सुशील हम भी बिल्ली पाल लें? उसके बच्चे होंगे तो कितना मजा आएगा!
सुशील ने प्यार से बीवी के कटे हुए बालों में हाथ फेरते हुए कहा, हमारे पास हैन एक प्यारी सी बिल्ली!
सच? बेबी ने जोश से कहा, दिखाओ.. यह रही हमारी बिल्ली? सुशील ने आईने में बेबी की ओर इशारा करते हुए कहा।
बेबी ने देखा, सुशील झुक कर उसे किस कर रहा है। बेबी ने धीरे से आंखें बंद कर लीं। अचानक उसे महसूस हुआ कि दो मजबूत हाथों ने उसे उठा रखा है और उसके पहलू में बिल्ली के नन्हे-नन्हे गुलाबी बच्चे कुलबुला रहे हैं..।
ख्वाजा अहमद अब्बास