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मेनीक्वींस के बहाने

दुनिया भर में छरहरेपन पर छिड़ी बहसों ने बड़े फैशन ब्रैंड्स पर भी असर डाला है। कई बडे़ ब्रैंड्स जीरो साइज वाली मेनीक्वींस को हटा कर नॉर्मल साइज वाली डमी मॉडल्स को प्राथमिकता देने लगे हैं। मेनीक्वींस के बहाने आदर्श फिगर को लेकर यंग ब्रिगेड से चर्चा।

By Edited By: Published: Tue, 01 Jul 2014 07:14 PM (IST)Updated: Tue, 01 Jul 2014 07:14 PM (IST)
मेनीक्वींस के बहाने

काश हमारा फिगर मेनीक्वींस जैसा होता..! शोरूम में घुसते ही नजर सबसे पहले मेनीक्वींस पर ठहरती है और जी में आता है कि वही ड्रेस खरीद लें जो इस डमी मॉडल ने पहनी है। मगर क्या करें, ठीक इसी वक्त आईना चुपके से कह उठता है, अभी नहीं.., अभी वक्त लगेगा इसमें।

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परफेक्ट फिगर लडकियों ही नहीं, लडकों का भी ड्रीम है। कई बार यह बिना प्रयास के नसीब होता है तो कई बार कई प्रयास के बावजूद आईना वह नहीं दिखाता, जो हम देखना चाहते हैं। लेकिन अब जमाना बदल चुका है। माना कि आम लडकियां मेनीक्वींस जैसी परफेक्ट फिगर वाली नहीं बन सकतीं, मगर मेनीक्वींस तो आम लडकियों जैसी हो सकती हैं।

यूएस के एक लॉंजरी ब्रैंड ला पेर्ला ने अपनी अतिशय दुबली मेनीक्वींस को थोडा न्यूट्रिशन देने की कोशिश की है। ब्रैंड इन्हें रीडिजाइन कर रहा है। शायद उसे लगने लगा है कि मेनीक्वींस इसी दुनिया की दिखें, आसमान की परियों जैसी नहीं।

मेनीक्वींस और मनोविज्ञान

यूएस ही नहीं, दुनिया के तमाम बडे ब्रैंड्स ने जीरो साइज के बजाय नॉर्मल साइजको प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है। भारत की अधिकतर मेनीक्वींस नॉर्मल साइज वाली हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आम लडकियों के मन पर दुबली मेनीक्वींस का नकारात्मक प्रभाव पडता है। स्किनी मॉडल्स आम लडकियों के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाती हैं।

इससे पहले स्वीडन के एक डिपार्टमेंट ल स्टोर ने नॉर्मल साइजवाली मेनीक्वींस को लेकर बहस भी खडी की। इसने वर्ष 2010 में अपने स्टोर्स पर मेनीक्वींस को नए लुक में पेश किया। पिछले दो-तीन वर्षो में एकाएक पिक्चर परफेक्ट के बजाय रीअल साइज की मेनीक्वींस केंद्र में आ गई हैं। कुछ ब्रैंड्स ने 8 से 10 साइज वाली मेनीक्वींस को चुना तो कुछ ने अलग-अलग शेप और साइजवाली मेनीक्वींस को प्रमुखता दी। पुरुष मॉडल्स के फिगर को लेकर भी भ्रम दूर हो रहे हैं और आम लोगों को ही ध्यान में रखते हुए मेल डमीज को डिजाइन किया जा रहा है।

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को परफेक्ट फिगर की चाह ज्यादा होती है। इसलिए कई बार बहुत छरहरी व दुबली मेनीक्वींस उनके मन में हीन-भावना पैदा करती हैं। स्वीडन के कुछ ब्रैंड्स का मानना है कि बॉडी इमेज में यह बदलाव उनके शोरूम्स या स्टोर्स के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। स्त्रियां बेहिचक शो विंडो में मेनीक्वीन द्वारा पहनी गई पोशाक की मांग करती हैं। नई मेनीक्वींस उनके आत्मविश्वास को बढा रही हैं। जाहिर है, ब्रैंड्स के बिजनेस पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड रहा है।

आदर्श फिगर का भ्रम

सेल्फी ऑब्सेस और पिक्चर परफेक्ट वाली इस पीढी में छरहरा होने की चाह भले ही हो, मगर ज्यादातर युवा साइज जीरो को एक भ्रम ही मानते हैं। भारत में करीना कपूर एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं, जिन्होंने इस लक्ष्य को हासिल किया। भारतीय मेनीक्वींस कभी भी इतनी दुबली नहीं रहीं। दुनिया भर में ज्यादातर मेनीक्वींस का औसत कद लगभग 5 फीट 10 इंच और साइज 10 होता आया है, जबकि वास्तविक दुनिया में यह आदर्श फिगर संभव नहीं है। एक औसत भारतीय स्त्री का कद लगभग 5 फीट और साइज 15-18 होता है। यहां उम्र के 30 पायदान पार करते-करते आम स्त्रियों का बीएमआइ 25 पार करने लगता है। इसी तरह ब्रिटिश स्त्री का साइजलगभग 16 और ्रकद 5 फीट 4-5 इंच तक होता है, जबकि यहां की ज्यादातर मेनीक्वींस साइज 10 वाली हैं और ये आम ब्रिटिश स्त्री की तुलना में काफी लंबी हैं। हाइ हील्स इनके कद को और बढा देती है। स्वीडिश स्त्री का औसत कद पांच फीट सात इंच और साइज लगभग 12 होता है। यूएस में कद 5 फीट 5-8 इंच और साइज 14-16 तक हो सकता है। दुनिया भर में खानपान, जलवायु, रहन-सहन के आधार पर लोगों का शारीरिक ढांचा तय होता है।

बहस सेहत और सौंदर्य की

डमी मॉडल्स ने दुनिया में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। महिला संगठनों व कार्यकर्ताओं ने इन कमजोर डमीज को मानसिक-शारीरिक सेहत के लिए नुकसानदायक बताते हुए मुहिम चला रखी है। संगठनों का मानना है कि मेनीक्वींस की यह इमेज आम स्त्रियों के लिए सही नहीं है। ुफिट व स्मार्ट अभिनेत्रियों को देख कर अकसर लडकियां उन्हीं की तरह फिगर बनाने की कोशिशों में जुट जाती हैं, इस चक्कर में कई बार सेहत प्रभावित होती है। शो-बिजनेस और ग्लैमर की दुनिया के लोगों के लिए शरीर एक प्रोडक्ट है, जिसे हर कीमत पर अच्छा दिखना जरूरी है, जबकि आम लडकियों के लिए पढाई, करियर एवं पारिवारिक-सामाजिक मसले ज्यादा अहम हैं।

इसके बावजूद भारत सहित दुनिया भर की स्त्रियां शारीरिक सौंदर्य को लेकर दबाव में रहती हैं। टीवी, फिल्मों, विज्ञापनों से लेकर रैंप शोज तक लडकियों के जिस आदर्श फिगर को रोज दिखाया जाता है, उसे हासिल करने की कवायद में जुटी रहती हैं लडकियां। कई बार यह भी कहा जाता है कि सफलता के लिए सुंदरता और स्मार्टनेस जरूरी है। इससे आम लडकियों के मन पर विपरीत प्रभाव पडता है।

जरूरत इस बात की है कि फिगर के बजाय सेहत और फिटनेस के बारे में सोचा जाए। सुंदर दिखना सबको अच्छा लगता है, मगर सेहत की कीमत पर सुंदरता पाना कोई सही विकल्प तो नहीं!

दुबला होना भी समस्या है

प्रियांशी सिंह, ग्रेजुएशन सेकंड ईयर, रामानुजन कॉलेज, दिल्ली

मैं जब भी शॉपिंग मॉल्स में जाती हूं, नजर सबसे पहले मेनीक्वींस पर पडती है। उनकी ड्रेस भी अच्छी लगती है। मुझे लगता है मेनीक्वींस तो मुझसे ज्यादा फिट हैं। दरअसल मैं बहुत दुबली हूं। कई बार कोई ड्रेस बहुत सुंदर लगने के बावजूद दुबलेपन के कारण उसे नहीं खरीद पाती तो दुख होता है। अकसर दोस्त-रिश्तेदार मुझे टोकते हैं कि थोडा वजन बढा लूं या इतनी दुबली क्यों होती जा रही हूं। मुझे अपने कद को लेकर भी थोडी उलझन है। सोचती हूं, काश थोडी लंबी होती और थोडा सा वजन बढ जाता तो अच्छा रहता। दुबली होने के कारण मुझे ज्यादातर जींस, ट्राउजर या सलवार-सूट पहनना पडता है।

शॉर्ट ड्रेसेज या स्किन फिट ड्रेसेज नहीं पहन पाती। ढीली कुर्तियां और श‌र्ट्स ही पहनती हूं।

परफेक्ट हूं मैं

प्रियल, ग्रेजुएशन सेकंड ईयर मिरांडा हाउस, दिल्ली

मैं अपने शरीर को लेकर सहज हूं। मेरा वेट हेल्दी है। थोडी दुबली होती तो अच्छा रहता। लेकिन जैसी हूं-ठीक हूं! दरअसल हम रोज टीवी-फिल्मों में इतने स्किन शोज देखते हैं कि दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि यही फिगर आदर्श है। कभी न कभी मन में खयाल आ ही जाता है कि काश हमारा फिगर भी वैसा ही होता। मैं मानती हूं कि मेरी उम्र में लडकियां फिगर को लेकर बहुत सोचती हैं। लेकिन मेरी पीढी अन्य कई चीजों को लेकर भी परेशान होती है। मेरी दिनचर्या संतुलित है। मैं वजन को संतुलित रखने के लिए नियमित एरोबिक्स, वॉक, योग करती हूं। जंक फूड नहीं खाती।

काश थोडी स्लिम हो जाती

वृंदा, बीसीए द्वितीय वर्ष, विवेकानंद कॉलेज

कई बार मेनीक्वींस को देखकर बडा रश्क होता है। सोचती हूं, काश थोडी दुबली होती! मुझे पता है कि हर ड्रेस मुझ पर सूट नहीं करेगी। फिर मन को समझाती हूं कि अगर ब्रैंड्स इतनी फिट मेनीक्वींस नहीं रखेंगे तो सामान कैसे बेचेंगे? इस तरह डिस्प्ले करेंगे तभी तो लोग आकर्षित होंगे! कॉलेज में पहली बार एडमिशन लिया था तो फिगर और वजन को लेकर बहुत कॉन्शस रहती थी मैं। कोई ड्रेस ट्राई करती तो फ्रेंड्स से बार-बार पूछती कि बुरी तो नहीं लग रही हूं। कई बार आत्मविश्वास भी कम होता था और ऐसा लगता था कि लोग मजाक बना रहे हैं। मगर अब उन भावनाओं से उबर गई हूं। हालांकि मैं सचमुच चाहती हूं कि दुबली हो जाऊं। बीच में जिम शुरू किया तो वजन घटा, मगर एग्जैम्स के दौरान फिर बढ गया। मैं अपनी डाइट का ध्यान रखती हूं। कोशिश करती हूं कि बाहर का खाना कम खाऊं। हालांकि कॉलेज में इतनी देर तक रहते हैं कि कई बार बाहर खाना हमारी मजबूरी भी होती है।

फिगर की चिंता नहीं

मानसी, ग्रेजुएशन तृतीय वर्ष, राजधानी कॉलेज

मैं नॉर्मल लडकियों जैसी हूं और अपने फिगर को लेकर मेरे मन में चिंता या हीन-भावना नहीं है। फिर भी मॉल्स में जाते ही मन में खयाल आता है कि मेनीक्वींस इतनी पिक्चर परफेक्ट कैसे हैं। कई बार शो विंडो में डिस्प्ले की गई ड्रेस खरीदने का मन करता है मगर खुद पर वह अच्छी नहीं लगती। वैसे अब इन सारी बातों से निराशा नहीं होती। मुझे लगता है कि मैं ठीक हूं। मेरा फ्रेंड सर्कल नॉर्मल फिजीक वाला है और हम फिगर को लेकर बहुत नहीं सोचते। पढाई का प्रेशर इतना है कि कुछ और सोचने की मोहलत नहीं मिलती। ऐसा खयाल आए भी तो जल्दी ही दिल से निकाल देती हूं।

इंदिरा राठौर


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