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कुछ तो लोग कहेंगे

मेरे पास-पड़ोस में रहने वाली स्त्रियां अकसर मुझसे कहतीं हैं, 'तुम भी हमारी तरह किटी पार्टी क्यों नहीं जॉइन कर लेतीं?

By Edited By: Published: Fri, 14 Oct 2016 10:32 AM (IST)Updated: Fri, 14 Oct 2016 10:32 AM (IST)
कुछ तो लोग कहेंगे
कुछतोलोगकहेंग नापसंद है दिखावा निधि अग्रवाल, फिरोजाबाद मेरे पास-पडोस में रहने वाली स्त्रियां अकसर मुझसे कहतीं हैं, 'तुम भी हमारी तरह किटी पार्टी क्यों नहीं जॉइन कर लेतीं? जब देखो तब घर के कामकाज में व्यस्त रहती हो, तुम्हें अपनी खुशियों के लिए भी समय निकालना चाहिए।' मैं अकसर उनकी बातों को हंसकर टाल देती हूं क्योंकि उन्हें यह समझा पाना बहुत मुश्किल है कि हर इंसान की खुशियां दूसरे से अलग होती हैं। यह जरूरी नहीं है कि उन्हें जिन बातों से खुशी मिलती है, मुझे भी वही पसंद हों। शुरू से ही मुझे सादगीपूर्ण जीवनशैली पसंद है। ज्यूलरी, महंगी ब्रैंडेड ड्रेसेज और गैजेट्स जैसी चीजें मुझे जरा भी आकर्षित नहीं करतीं। मेरा एक ही बेटा है, जो अभी आठवीं कक्षा में पढता है। मैं उसे खुद ही पढाती हूं। इसके अलावा अपने बुजुर्ग सास-ससुर के प्रति भी मेरी कुछ जिम्मेदारियां हैं और उनके निर्वाह के लिए मैं हमेशा तत्पर रहती हूं। परिवार की खुशियां ही मेरी पहली प्राथमिकता हैं। जीती हूं अपने ढंग से रीता सिंह, रुडकी मैं अवकाश प्राप्त शिक्षिका हूं। रिटायरमेंट के बाद खालीपन की वजह से मुझे ऐसा लगने लगा कि कही मैं डिप्रेशन की मरीज न बन जाऊं। मेरी ऐसी हालत देखकर मेरे बेटे-बहू ने मुझसे कहा कि मां आप वही कीजिए, जिसमें आपको सच्ची खुशी मिले। इसके बाद मैं घूमने के लिए चीन गई। वहां यात्रा के दौरान एक ऐसे व्यक्ति से मेरी मुलाकात हुई, जो सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर थे। उन्हें देखकर मेरे मन में नए उत्साह का संचार हुआ। फिर जब मैंने अपने ढंग से जीने का निर्णय लिया तो मेरे परिवार ने भी खुले दिल से इसका स्वागत किया। पिछले एक साल से मैं बुजुर्गों के लिए बनी एक कम्युनिटी सोसाइटी में रह रही हूं। यहां मैं नियमित एक्सरसाइज, मॉर्निंग वॉक और साइक्लिंग करती हूं। संगीत में मेरी गहरी अभिरुचि रही है लेकिन पहले इसके लिए समय नहीं मिल पाता था। अब मैं रोजाना रियाज करती हूं। हालांकि, यहां कुछ लोग मुझसे अकसर यही कहते कि इस उम्र में साइकल चलाने की क्या जरूरत है? मेरी जीवनशैली को लेकर लोग कई तरह की बातें करते हैं पर ऐसी टीका-टिप्पणी की परवाह किए बगैर मैं अपनी रुचि से जुडे सभी कार्य करती हूं। इससे धीरे-धीरे लोगों के नजरिये में बदलाव आने लगा है। अब तो मुझे देख कर दूसरे बुजुर्ग भी साइक्लिंग के लिए प्रेरित हो रहे हैं। मेरा मानना है कि अगर निरर्थक बातों की परवाह किए बगैर हम सकारात्मक सोच के साथ आगे बढें तो हमारी जिंदगी बेहद खूबसूरत हो जाएगी । मन से जुडे मुहावरे जब जागो तभी सवेरा लौट आया आत्मविश्वास कुलदीप मक्कड, लुधियाना स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही साहित्य के अध्ययन और लेखन में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है लेकिन विवाह के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से मेरा लिखना-पढऩा छूट सा गया। जब बच्चे उच्च शिक्षा के लिए घर से दूर चले गए तो मुझे बहुत खालीपन महसूस होने लगा। तब मैं अपनी भावनाओं को कविताओं और कहानियों के रूप में कागज पर उतारने लगी पर उन्हें कहीं भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। यह सिलसिला वर्षों तक चलता रहा। जब मेरे पास कविताओं का अच्छा-खासा संग्रह तैयार हो गया तो एक बार मैंने उन्हें एक प्रकाशक को दिखाया। वे उसे छापने के लिए सहर्ष तैयार हो गए और अब जल्द ही मेरी कहानियों का भी संग्रह प्रकाशित होने वाला है। देर से ही सही, पर दोबारा मेरे लेखन की शुरुआत तो हो गई। शायद बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है, जब जागो तभी सवेरा।

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