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जरा ठहरें निवेश से पहले

समय बदल गया है, लिहाजा बचत के तरीके भी बदल गए हैं। आजकल लोग म्यूचुअल फंड में काफी इन्वेस्ट कर रहे हैं, क्योंकि इसमें निवेश दे सकता है आपको बेहतर रिटर्न। जानें, इसमें इन्वेस्टमेंट करने से पहले किन बातों का ध्यान रखें।

By Edited By: Published: Tue, 02 Feb 2016 12:32 PM (IST)Updated: Tue, 02 Feb 2016 12:32 PM (IST)
जरा ठहरें निवेश से पहले

समय बदल गया है, लिहाजा बचत के तरीके भी बदल गए हैं। आजकल लोग म्यूचुअल फंड में काफी इन्वेस्ट कर रहे हैं, क्योंकि इसमें निवेश दे सकता है आपको बेहतर रिटर्न। जानें, इसमें इन्वेस्टमेंट करने से पहले किन बातों का ध्यान रखें।

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अगर आप सेविंग के बारे में सोच रहे हैं तो म्यूचुअल फंड एक बेहतर विकल्प हो सकता है। मगर आप पहली बार म्यूचुअल फंड में निवेश के बारे में सोच रहे हैं तो इसके बारे में पहले पूरी जानकारी ले लें और जांच कर लें।

म्यूचुअल फंड में कई निवेशकों की निवेश राशि को शेयर, बॉण्ड, कम अवधि वाले निवेश इंस्ट्रूमेंट और कमोडिटी में निवेश किया जाता है। एसेट मैनेजर पूरी व्यावसायिक बुद्धि के साथ निवेश किए गए पैसे पर नजर रखते हैं। उन निवेशकों के लिए यह एक अच्छा विकल्प है जिन्हें निवेश की कम जानकारी है या फिर जिनके पास समय नहीं है कि वे अपने पैसे की सेविंग के विकल्प खोजते रहें। म्यूचुअल फंड क्लोज एंडेड या ओपन एंडेड होते हैं। क्लोज एंडेड फंड वैसे फंड्स हैं, जिन्हें न्यू फंड ऑफर के दौरान ख्ारीदा और मच्योरिटी के बाद बेचा जाता है जबकि ओपन एंडेड फंड में वैसी स्कीमें होती हैं, जिनमें कभी भी निवेश या निकासी की जा सकती है। निवेशक जरूरत के हिसाब से इसका लाभ उठा सकते हैं। म्यूचुअल फंड के शेयर की कीमत नेट एसेट वैल्यू कहलाती है। निवेशकों को निवेश से पहले फंड हाउस के एसेट वैल्यू और उसके प्रदर्शन का आकलन करना चाहिए।

पहले जांचें-परखें

जब तक आप पूरी जानकारी हासिल नहीं कर लेते हैं और तमाम योजनाओं की समझ विकसित नहीं कर लेते, तब तक आपको म्यूचुअल फंड वितरक या वित्तीय सलाहकार की जरूरत पडेगी। वह आपको सही योजना का चुनाव करने में मदद करेगा। आप वितरकों की मदद भी ले सकते हैं। यूं तो अमूमन ये नि:शुल्क सलाह देते हैं, लेकिन शुल्क लें भी तो यह न्यूनतम होता है। आपका फंड हाउस शुरुआती निवेश में से इसे घटा लेता है और वितरक को भुगतान करता है।

हालांकि अगर आप पूरी तरह से वित्तीय योजना बनाना चाहते हैं, जिसमें आपके अकाउंट में राशि के आने-बाहर जाने और योजनाओं का लक्ष्य आदि शामिल हों तो आपको वित्तीय सलाहकार या पंजीकृत निवेश सलाहकार की आवश्यकता होगी। इनकी सेवाओं के बदले शुल्क देना होता है। कई ऑनलाइन पोर्टल भी म्यूचुअल फंड में निवेश की सटीक जानकारी देते हैं।

केवाईसी की जरूरत

अगर आप म्यूचुअल फंड में पहली बार निवेश करने जा रहे हैं तो केवाईसी प्रक्रिया को पूरा करना होगा। इसमें पैन नंबर की जानकारी अनिवार्य है। आपको अपने फंड हाउस में ये प्रक्रिया पूरी करनी होती है। अगर आप किसी वितरक या वित्तीय सलाहकार के माध्यम से म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो आपकी केवाईसी प्रक्रिया फॉर्म भरवाने और जमा कराने का काम वही कराते हैं। निवेशक को ध्यान रखने की जरूरत है कि इसमें उसका वही नाम होना चाहिए, जो पैन कार्ड या बैंक संबंधी दस्तावेजों में है। इस तरह की समस्याएं ख्ाासकर महिला निवेशकों के साथ देखने को मिलती हैं, जब शादी के बाद उनके नाम के साथ पति का सरनेम जुड जाता है।

म्यूचुअल फंड में ऑनलाइन निवेश की भी सुविधा है, लेकिन यह सुविधा तब मिलती है, जब पहली बार निवेश मैनुअली किया गया हो, अन्यथा हर बार अपने फंड हाउस में ख्ाुद जाकर फॉर्म भरना होता है।

क्या हैं लाभ

इसका सबसे बडा फायदा यह है कि निवेशक को यह चिंता करने की जरूरत नहीं होती कि वे कब शेयर ख्ारीदें-बेचें। यह जिम्मेदारी पूरी तरह फंड मैनेजर की होती है। वही निवेश की देखभाल भी करता है। इसका एक लाभ यह है कि महज 100 रुपये महीने जैसी छोटी धनराशि से भी निवेश किया जा सकता है। इसके लिए म्यूचुअल फंड योजना के अंतर्गत सिस्टमेटिक इनवेस्टमेंट प्लैन लेना होता है, जिसमें बैंक से राशि सीधे फंड में ट्रांस्फर होती रहती है।

क्या है एफएमपी

यह म्यूचुअल फंड की ऐसी स्कीम है, जो डेट फंड (निश्चित रिटर्न वाले माध्यम) के तहत आती है। इसका अधिकांश हिस्सा म्यूचुअल फंड कंपनियां सरकारी बॉण्ड में निवेश करती हैं। इसीलिए इसे म्यूचुअल फंड की किसी अन्य स्कीम के मुकाबले अधिक सुरक्षित माना जाता है। इसमेें निवेश की अवधि एक से पांच साल तक होती है।

एफएमपी में दो तरह के प्लैन होते हैं :

डिविडेंड प्लैन : इसमें मिलने वाले ब्याज को ग्राहकों के बीच मच्योरिटी के पहले ही मुनाफे की तरह बांट दिया जाता है। इसके लिए म्युचुअल फंड कंपनी को डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स चुकाना पडता है। कंपनी टैक्स की यह रकम ग्राहकों के डिविडेंड से ही काट लेती है।

ग्रोथ प्लैन : इसमें ग्राहक अपना डिविडेंड बीच में लेने के बजाय कंपनी से आग्रह करता है कि वह डिविडेंड की रकम को कुल जमा राशि में जोडकर दोबारा इन्वेस्ट कर दे। प्लैन की मच्योरिटी के बाद ग्राहक को लाभ सहित पूरी रकम वापस मिल जाती है। इस रकम को कैपिटल गेन कहा जाता है। ग्राहकों को इस पर टैक्स देना पडता है, जिसकी राशि प्लैन की अवधि के आधार पर निर्धारित होती है। शॉर्ट टर्म प्लैन में कैपिटल गेन टैक्स कम होता है, लेकिन लंबी अवधि की योजना में ज्य़ादा टैक्स चुकाना पडता है।

यदि एक साल से ज्य़ादा अवधि की योजना में निवेश करते हैं तो उसकी मच्योरिटी पर लंबी अवधि का पूंजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन टैक्स) चुकाना होगा। इस दृष्टि से इनकम टैक्स की सीमा में आने वाले लोगों को एफएमपी के तहत अपनी बचत का छोटा हिस्सा निवेश करना चाहिए। ऐसे लोग जो अपनी आय का 20 से 30 प्रतिशत तक इनकम टैक्स चुकाते हैं, उनके लिए निवेश की यह योजना ज्य़ादा फायदेमंद होगी।

यह भी जानें

एफएमपी क्लोज एंडेड फंड है। इसके तहत जब कोई म्यूचुअल फंड कंपनी कुछ दिनों के लिए कोई योजना लेकर आती है तो लोगों को उस निश्चित अवधि में ही निवेश करना होता है और चूक जाने पर नई योजना का इंतजार करना पडता है।

यह लाभदायक निवेश है, लेकिन यह मार्केट लिंक्ड प्लैन है। इसलिए इसके फायदे का शत-प्रतिशत अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

एफएमपी में निवेश करने से पहले सुनिश्चित करना जरूरी है कि आने वाले कुछ वर्षों तक व्यक्ति के पास आकस्मिक जरूरतों के लिए अलग से फंड की व्यवस्था हो क्योंकि इसमें बीच में पैसे निकालने की अनुमति नहीं होती। अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो 1 से 3 प्रतिशत तक एग्जिट चार्ज देना पड सकता है। यह एक लाभकारी योजना है, लेकिन इसमें निवेश के लिए जागरूकता और इन्वेस्टमेंट की समझ जरूरी है।

इनपुट्स : बलवंत जैन, कंपनी सेक्रेटरी (सीए, सीएस, सीएफसी)

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