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जिम्मेदारियों से बढ़ाएं अपना महत्व

वैसे तो अपने काम से पहचान बनती ही है पर कभी-कभी भीड़ में अलग साबित होने के लिए खुद की ब्रैंडिंग करना भी ज़रूरी होता है। पढ़ें यह लेख और जानें कि कैसे बढ़ा सकते हैं अपना महत्व।

By Edited By: Published: Fri, 14 Oct 2016 10:50 AM (IST)Updated: Fri, 14 Oct 2016 10:50 AM (IST)
जिम्मेदारियों से बढ़ाएं अपना महत्व
माना जाता है कि आपकी पर्सनैलिटी और पहचान आपके काम से बनती है। यह सही भी है पर कई बार ऑफिस में होने वाली समस्याओं के बारे में एंप्लॉइज खुल कर अपना पक्ष नहीं रख पाते हैं और अंदर ही अंदर घुटने लगते हैं जिसका सीधा असर उनके काम पर पडऩे लगता है। ऐसे में मैनेजमेंट को अपने एंप्लॉइज के काम की अहमियत को समझना चाहिए और एंप्लॉइज को भी कंपनी के प्रति ईमानदार रहते हुए अपनी जिम्मेदारियों को समय पर पूरा करते रहना चाहिए। ऐसे बना सकते हैं आप अपनी पहचान : अपने काम व उसकी महत्ता के बारे में बॉस व एच.आर. से जानकारी लेते रहें। शिफ्ट जॉब होने पर साप्ताहिक ड्यूटी चार्ट चेक करते रहें। ऐसा न हो कि ईवनिंग शिफ्ट के लिए आप सुबह से पहुंच जाएं या मॉर्निंग शिफ्ट पर शाम तक पहुंचें। एक-दो बार तो ऐसी भूल को माना जा सकता है पर बार-बार उसे दोहराने पर गलत इंप्रेशन पडता है। अगर ऑफिस से आने-जाने के लिए कैब की सुविधा मिलती हो तो तय समय पर तैयार रहें। अपनी वजह से दूसरों को इंतजार न करवाएं। अगर किसी दिन आप छुट्टी पर हों या घर का पता बदला हो तो कैब ड्राइवर को पहले ही सूचित कर दें। कंपनी को उसके लक्ष्य पूरे करने में मदद करें। अपने लक्ष्यों को यूं निश्चित करें कि वे कंपनी को भी कुछ फायदा पहुंचाएं। इसके लिए अपने समय, कौशल व साधनों का सही उपयोग करें। छोटे-छोटे लक्ष्य बनाते हुए बडे लक्ष्य तक पहुंचें। समय प्रबंधन सही तरीके से करना आना चाहिए। मैनेजमेंट को काम से मतलब होता है न कि इस बात से कि किसी काम को पूरा करने में आपने कितना समय लगाया। डेडलाइन पर काम न मिलने पर उसके प्रेजेंटेशन में लगाई गई आपकी मेहनत और समय का भी खास मोल नहीं रह जाएगा। कई बार ऐसा हो जाता है कि लोग आपकी मेहनत को नहीं समझ पाते हैं। ऐसे में ध्यान रखें कि आपको खुद ही सीनियर्स तक अपनी तारीफ पहुंचानी होगी पर वह किसी भी मायने में बहुत ओवर नहीं लगनी चाहिए। सीनियर्स के साथ पर्सनल रिलेशंस मेंटेन करके चलें। 'डील और नो डील' स्थितियों को पहचानना सीखें। बात चाहे प्रमोशन की हो, कॉन्ट्रैक्ट की या पार्टनरशिप की, जरूरत पडे तो न कहना भी सीखें। खुद को काम के बोझ तले दबाने से बेहतर है कि जितना काम करें, उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ दें। अपने डिपार्टमेंट के रिपोर्टिंग स्ट्रक्चर को समझें। किसी से भी कुछ पूछने या सीखने में संकोच न करें। इसी तरह जब कोई आपसे कुछ सीखने या समझने आए तो उसकी भी मदद करें। सीनियर्स के सामने अपने आइडियाज तथ्यों के साथ रखें और उनके रिजेक्ट होने के लिए भी तैयार रहें। जरूरी नहीं है कि हमेशा हर आइडिया स्वीकार ही हो जाए। अगर आप सही हैं और उसके लिए तर्क देना पडे तो निसंकोच अपनी बात कहें। सभी आवश्यक मेल्स को अपने पास सेव करके रखें। हर जरूरी बात को मेल द्वारा ही कहें व मंगवाएं ताकि कभी कोई बात होने पर आप उसे दूसरों को दिखा सकें। कंपनी में अपनी जॉइनिंग, सैलरी, ड्यूटी में अदला-बदली होने जैसी जरूरी बातों को अपने मेल बॉक्स में जरूर रखें। अपने काम की एक लिमिट तय करें। उससे ज्यादा तभी करें जब बेहद जरूरी हो। उस ऊर्जा को अपने दूसरे कामों में लगाया जा सकता है। अगर किसी और का कोई महत्वपूर्ण काम कर रहे हों तो मैनेजमेंट को उसकी जानकारी देना न भूलें। अपनी क्षमताओं को पहचानते हुए अपना कौशल बढाएं व नई तकनीकें सीखते रहें। इससे काम सहजता से कर सकेंगे। इसके लिए अपने कलीग्स, इंटरनेट या कोचिंग इंस्टीट्यूट की मदद लें। किसी मीटिंग में कभी कोई ऐसी बात चल रही हो जिसकी ज्यादा जानकारी आपके पास न हो तो उस समय शांत रहना ही बेहतर होता है। गलत तर्क देकर दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश न करें, इसका सीनियर पर नकारात्मक प्रभाव तो पडेगा ही, टीम के बाकी सदस्य भी डायवर्ट हो सकते हैं। सहकर्मियों व मेंटर के हालचाल लेते रहें। रीअल कम्युनिकेशन ई-कम्युनिकेशन से हमेशा बेहतर होता है। बातचीत ऐसी नहीं होनी चाहिए कि वह बिना वजह की लगे, सामने वाले का मूड भी परखना सीखें। जबर्दस्ती ध्यान आकर्षित करने के लिए कोई काम न करें। अगर किसी प्रोजेक्ट या कार्यप्रणाली में बदलाव चाहते हैं तो उसका विकल्प तलाश लेने के बाद ही प्रपोजल टीम के सामने रखें। कंपनी के साथ ही अपने लिए भी जिएं। ऐसा न हो कि आठ घंटे काम करने के बाद घर पर भी काम के बारे में ही सोचते रहें। अपने लिए समय निकालना भी बहुत जरूरी होता है वर्ना काम के अतिरिक्त बोझ के चलते आप ऑफिस में भी बुझे-बुझे रहेंगे। कई कंपनियां अपने एंप्लॉइज को वर्किंग वेकेशन देती हैं। जब तक बहुत आवश्यक न हो, ऐसी छुट्टियों के लिए हां न कहें। छुट्टी के दौरान भी काम का प्रेशर होने पर न तो आप रिलैक्स कर पाएंगे और न ही काम। काम और बाकी ऐक्टिविटीज के बीच संतुलन बनाना सीखें। अगर वर्कप्लेस पर कोई ऐसी समस्या हो जिसका समाधान आपको न मिल रहा हो तो उसे बेहिचक अपने वरिष्ठों के सामने रखें। द्य रखे ध्यान मैनेजमेंट भी कई बार सीनियर्स अपने काम में इतने व्यस्त होते हैं कि वे जूनियर्स की समस्याओं को नजरअंदाज कर बैठते हैं। अनजाने में ऐसा करने के कारण उन्हें अंदाजा नहीं होता है कि इसका असर काम पर भी पड रहा होता है। अपने एंप्लॉइज से निजी स्तर पर रिश्ते कायम करें। समय-समय पर उनकी समस्याओं के बारे में उनसे पूछते रहें। कई बार संकोची स्वभाव का होने के कारण वे खुद से पहल नहीं करते। वर्कप्लेस का माहौल बेहतर रखने के लिए अपने एंप्लॉइज को बीच-बीच में ट्रीट देते रहें। आउटिंग, लंच/डिनर या पार्टी करने से काम का प्रेशर कुछ कम हो जाएगा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होगा। ऑफिस की प्रॉपर्टी या स्टेशनरी बैंक की जांच करवाते रहें। कोई भी कमी लगने पर संबंधित डिपार्टमेंट को उसे तुरंत ठीक करवाने के आदेश दें। कुर्सियों, कंप्यूटर्स, प्रिंटर, वॉटर कूलर आदि चेक करवाते रहें। सुविधाजनक न होने पर एंप्लॉइज का काम से मन भटक सकता है। यह सुनिश्चित करें कि आपके सभी एंप्लॉइज का आई कार्ड, जॉइनिंग लेटर, ऑफिशियल ईमेल आईडी व अन्य जरूरी दस्तावेज अप टु डेट हो। दीपाली पोरवाल कॉरपोरेट ग्रूमिंग एक्सपर्ट सुनीता सोढी कांगा से बातचीत पर आधारित

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