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स्मार्ट पैरेंटिंग

मेरा 15 वर्षीय बेटा बोर्डिग स्कूल में पढ़ता है। वह जब भी छुट्टियों में घर आता है तो उसकी दिनचर्या बेहद अव्यवस्थित हो जाती है। वह सुबह बहुत देर से सोकर उठता है और पूरे दिन कोई भी काम सही समय पर नहीं करता। अगर मैं उसे समझाने की कोशिश करती हूं तो मेरे पति मुझे ही डांटने लगते हैं। इससे उसकी ऐसी आदतों को और भी बढ़ावा मिल जाता है। मैं उसे सही रास्ते पर कैसे लाऊं?

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST)
स्मार्ट पैरेंटिंग

मेरा 15 वर्षीय बेटा बोर्डिग स्कूल में पढता है। वह जब भी छुट्टियों में घर आता है तो उसकी दिनचर्या बेहद अव्यवस्थित हो जाती है। वह सुबह बहुत देर से सोकर उठता है और पूरे दिन कोई भी काम सही समय पर नहीं करता। अगर मैं उसे समझाने की कोशिश करती हूं तो मेरे पति मुझे ही डांटने लगते हैं। इससे उसकी ऐसी आदतों को और भी बढावा मिल जाता है। मैं उसे सही रास्ते पर कैसे लाऊं?

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मधुरिमा सिंह, इंदौर

बच्चे की सही परवरिश का सबसे पहला नियम यही है कि उसे अनुशासित करने के मामले में माता-पिता एकमत हों। आप दोनों मिलकर उसकी दिनचर्या निर्धारित करें और उसे हर काम उसी रुटीन के अनुसार करने के लिए प्रेरित करें। वैसे, बोर्डिग स्कूल में रहने वाले बच्चों के साथ अकसर ऐसी समस्या देखने को मिलती है, क्योंकि उन्हें हमेशा कडे अनुशासन के बंधन में रहना पडता है और छुट्टियों की आजादी को वे अपने ढंग से एंजॉय करना चाहते हैं। इसलिए अगर आपके बेटे के स्कूल से कोई शिकायत नहीं आती तो आप इस समस्या को लेकर ज्यादा चिंतित न हों।

दो महीने पहले फुटबॉल खेलते समय मेरे 10 वर्षीय बेटे के पैर में फ्रैक्चर हो गया था। अब उसका प्लास्टर कट गया है और उसकी फिजियोथेरेपी चल रही है। मुझे ऐसा महसूस होता है कि लगातार आराम और लाड-प्यार में रहने की वजह से वह आलसी और जिद्दी हो गया है। छोटी-छोटी बातों पर रोने लगता है। अब डॉक्टर ने उसे धीरे-धीरे चलने को कहा है, लेकिन वह हर काम के लिए मुझे ही आवाज लगाता रहता है। अगर यह आदत नहीं सुधरी तो उसे बहुत परेशानी होगी। मुझे उसके लिए क्या करना चाहिए?

शिखा गोयल, जयपुर

अभी से ही अपने बेटे से उसके स्कूल के बारे में अच्छी-अच्छी बातें करें। अगर वह किसी काम के लिए पुकारता है तो आप शांतिपूर्वक उसके पास जाएं और उससे कहें कि आओ हम साथ मिलकर चलते हैं। उसे समझाएं कि जल्दी ठीक होने के लिए उसका चलना-फिरना बहुत जरूरी है। आप उसके साथ जरूर रहें, पर उससे खुद उठकर अपना सामान लेने को कहें। यहां आपको सिर्फ मना करने का तरीका बदलना है। लंबी बीमारी या किसी दुर्घटना के बाद सहज दिनचर्या में लौटते हुए बच्चों के साथ पेरेंट्स को अकसर ऐसी परेशानियों का सामना करना पडता है। आप धैर्य के साथ कोशिश करें, जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा।

मेरी 9 वर्षीय बेटी बेहद भावुक और सीधे स्वभाव की है। वह दूसरों की हर बात मान लेती है। अभी तक उसमें स्व की भावना विकसित नहीं हुई है। लडना तो दूर, वह अपने हितों के लिए कुछ बोल भी नहीं पाती। इसलिए उसे अकसर नुकसान उठाना पडता है। उसके ऐसे व्यक्तित्व की वजह से मैं बहुत चिंतित हूं। उसके लिए मुझे क्या करना चाहिए?

शुभ्रा सिंह, लखनऊ

आजकल महानगरों के एकल परिवारों में ज्यादातर एक या दो बच्चे ही होते हैं और वहां उनकी हर मांग बहुत आसानी से पूरी हो जाती है। इसी वजह से वे अपने अधिकारों के लिए लडना नहीं सीख पाते। रोजमर्रा की व्यावहारिक कठिनाइयों से उनका वास्ता नहीं पडता। इसी वजह से उनमें समस्याओं का हल ढूंढने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती और उनके व्यक्तित्व में सीधापन आ जाता है। ऐसी समस्या के समाधान के लिए अपनी बेटी को दूसरे बच्चों से दोस्ती करने के लिए प्रेरित करें। उसे नियमित रूप से हॉबी क्लासेज के लिए भेजना शुरू करें, ताकि उसे नए दोस्त बनाने का मौका मिले। उसके साथ ज्यादा से ज्यादा क्वॉलिटी टाइम बिताएं, ताकि वह आपके साथ अपने अनुभव शेयर कर सके। आप उसका मार्गदर्शन करती रहें। एक-दो महीने बाद आपको खुद-ब-खुद उसके व्यवहार में फर्क महसूस होगा।

मेरा 10 वर्षीय बेटा पढाई में अच्छा है, पर वह शिष्टाचार का कोई भी सही व्यवहार सीखने को तैयार नहीं होता। उसकी इस आदत की वजह से अकसर हमें शर्मिदगी उठानी पडती है। मैं उसे कैसे अनुशासित करूं?

संजना गौड, दिल्ली

अधिकतर बच्चे माता-पिता का सामाजिक व्यवहार देखकर ही शिष्टाचार के तौर-तरीके सीखते हैं। सबसे पहले इस बात पर ध्यान दें कि क्या आपका बेटा परिवार में बडों को यथोचित मान-सम्मान देता है। अगर वह ऐसा नहीं करता आप उसे उसकी इस गलती का एहसास कराएं। इस कार्य में परिवार के सभी सदस्यों का एकजुट होना बहुत जरूरी है। आप उसकी कोई भी मांग तब तक पूरी न करें, जब तक कि वह सही ढंग से अपनी बात न कहे। जब घर में कोई मेहमान आने वाला हो तो उसे पहले से ही सही व्यवहार से जुडे कुछ टिप्स जरूर दें। यदि वह आपकी बातों पर अमल करता है तो बाद में उसकी प्रशंसा करें। अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसके प्रति अपनी नाराजगी दिखाएं। उसे समझाएं कि हर इंसान को दूसरों के साथ वैसा ही शिष्ट व्यवहार करना चाहिए, जो उसे अपने लिए भी पसंद हो।

मेरा 7 वर्षीय बेटा मेरी कोई बात नहीं मानता, लेकिन जब दूसरा व्यक्ति उसे वही सलाह देता है तो वह तुरंत उसकी बात मान लेता है। मैं खुद टीचर हूं। स्कूल में सारे बच्चे मेरी हर बात मानते हैं। फिर मैं अपने ही बेटे को क्यों नहीं संभाल पाती?

कणिका रावत, देहरादून

आप अपने बेटे की छोटी-छोटी गलतियों को थोडा इग्नोर करना शुरू करें। रोजाना उसके व्यवहार में कोई अच्छी बात ढूंढ कर सच्चे मन से उसकी प्रशंसा करें। उसे नसीहत देना छोड दें। करेक्शन कम करें और कनेक्शन बढाएं। दो महीने के लिए यह नियम अपनाएं। आपको जल्द ही इसका सकारात्मक परिणाम नजर आएगा।

टीनएजर को बचाएं विद्रोही व्यवहार से

-बच्चे की सारी बातें ध्यान से सुनें और उसके साथ सहज संवाद बनाए रखें।

-उसकी सुरक्षा और नैतिक मूल्यों का ध्यान रखते हुए उसके व्यवहार की कुछ सीमाएं निर्धारित करें। स्पष्ट रूप से समझा दें कि हर हाल में उसे इन नियमों का पालन करना ही होगा।

-उसके अच्छे गुणों की प्रशंसा करें। अगर उससे कोई गलती हो भी जाए तो दूसरों के सामने डांटने के बजाय अकेले में समझाएं।

डॉ. रीमा सहगल

चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट


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