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खरीदारी के शौक ने जब दिया शॉक

स्त्रियों के लिए शॉपिंग ज़्ारूरत और मनोरंजन ही नहीं, स्ट्रेस बस्टर भी है। मूड बिगड़ा हो तो शॉपिंग से अच्छा कोई विकल्प नहीं। लेकिन कई बार ज़्ारा सी लापरवाही से नुकसान हो जाता है और मन से की गई ख़्ारीदारी गले पड़ जाती है। शॉपिंग करें तो आंख-कान खुले रखें,

By Edited By: Published: Mon, 28 Sep 2015 04:20 PM (IST)Updated: Mon, 28 Sep 2015 04:20 PM (IST)
खरीदारी  के शौक ने जब दिया शॉक

स्त्रियों के लिए शॉपिंग ज्ारूरत और मनोरंजन ही नहीं, स्ट्रेस बस्टर भी है। मूड बिगडा हो तो शॉपिंग से अच्छा कोई विकल्प नहीं। लेकिन कई बार ज्ारा सी लापरवाही से नुकसान हो जाता है और मन से की गई ख्ारीदारी गले पड जाती है। शॉपिंग करें तो आंख-कान खुले रखें, यही सिखाते हैं ये अनुभव।

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शॉपिंग स्त्रियों के लिए बडा स्ट्रेस बस्टर है, सर्वे और शोध इस बात को प्रमाणित करते हैं। शॉपिंग मन में ख्ाुशी जगाती है, मगर कई बार लालच और शौक ग्ौर-ज्ारूरी सामान ख्ारीदने को मजबूर कर देते हैं तो कभी लापरवाही के कारण नुकसान भी झेलना पड जाता है। ठगे जाने का यह एहसास कभी न कभी सबको होता है। सखी की रीडर्स से हमने जब ऐसे ही कुछ िकस्से सुनने चाहे तो अनगिनत अनुभव मिल गए। उनमें से कुछ अनुभव यहां प्रस्तुत हैं, ताकि अगली बार शॉपिंग करें तो इस बात का ध्यान रखें कि कहीं शौक से शॉक न लग जाए।

नियम 1 : लालच बुरी बला

कॉम्बो ऑफर के चक्कर में

मैं ज्य़ादातर ऑनलाइन शॉपिंग करती हूं। इससे समय बचता है और कई बार बजट भी संतुलित रहता है। लेकिन लालच ने मुझे कई बार बुरा फंसाया है। एक बार ऐसे ही एक कॉम्बो ऑफर पर नज्ार पडी। मुझे एक एग बॉयलर लेना था। एक शॉपिंग साइट पर मुझे केकमेकर और एग बॉयलर का कॉम्बो ऑफर दिखा। मार्केट में जितने पैसे में एग बॉयलर मिल रहा था, लगभग उतनी ही कीमत पर मुझे कॉम्बो ऑफर दिखा तो मैंने झट से ऑर्डर कर दिया। ख्ौर लगभग एक हफ्ते बाद मेरे हाथ में पैकेट आया तो ख्ाुशी-ख्ाुशी मैंने उसे खोला। खोलते ही मेरे ग्ाुस्से का ठिकाना न रहा। पैकिंग में सिर्फ केकमेकर था, दूसरा प्रोडक्ट था ही नहीं, जो मुझे चाहिए था और जिसके लिए ही मैंने ऑर्डर किया था। इसके बाद शुरू हुआ फोन और मेल्स का सिलसिला। तीन-चार दिन बाद मेरे पास एक मेल और फोन आया, 'सॉरी, आपको हुई असुविधा के लिए हमें खेद है। यह ऑफर स्टॉक रहने तक ही सीमित था। प्रोडक्ट की अनुपलब्धता के कारण हम उसे नहीं भेज पा रहे हैं। बकाया धनराशि आपके वॉलेट में डाल दी जाएगी। इसके एक हफ्ते बाद पैसा मेरे वॉलेट में आया और फिर मुझे कुछ ग्ौर-ज्ारूरी चीज्ा ख्ारीदनी पडी। ज्ारा से लालच ने मुझे बुरा फंसा दिया।

इरा सक्सेना, दिल्ली

नियम 2 : स्ट्रीट शॉपिंग सोच-समझकर

किताबों के पन्ने ग्ाायब मिले

मैं ख्ाुद को समझदार शॉपर मानती हूं। मैं स्टूडेंट हूं और हॉस्टल में रहने के कारण मुझे बहुत सोच-समझ कर ख्ार्च करने की आदत है। मैं ज्ारूरत भर की शॉपिंग के अलावा सिर्फ किताबें और म्यूज्िाक सीडीज्ा ख्ारीदती हूं। कई बार दोस्तों के बीच मुझे कंजूस का ख्िाताब मिल चुका है, लेकिन मैं इसकी परवाह नहीं करती। मुझे पढऩे का शौक है, इसलिए हर महीने फिक्स पॉकेटमनी लेती हूं घर से। चस्का इतना है कि वह कम पड जाती है। लिहाज्ाा कई बार स्ट्रीट शॉपिंग करती हूं। एक बार ऐसे ही एक साप्ताहिक बाज्ाार में घूम रही थी कि किताबों के बडे से स्टॉल पर नज्ार गई। मुझे तो जैसे पंख लग गए। आधे घंटे के भीतर मैंने दस किताबें छांट लीं, जिनका मूल्य लगभग चार हज्ाार रुपये था, लेकिन यहां मुझे पंद्रह सौ में हासिल हो गईं। ख्ाूब चाव से किताबें ले आई, मगर घर आकर देखा तो कई किताबों में बीच-बीच में पन्ने ही ग्ाायब थे। दो-तीन किताबों में आख्िार के पन्ने फटे हुए थे, जिन्हें छिपाने के लिए ख्ाूबसूरत सी बाइंडिंग कर दी गई थी। यह देख कर मैंने अपना सिर पीट लिया। तब से बहुत सजग रहती हूं। किताबें ख्ारीदती हूं तो चार-पांच बार उसके पन्ने ज्ारूर पलट लेती हूं कि कहीं ग्ाायब तो नहीं हैं।

आरती अवस्थी, दिल्ली

नियम 3 : अति समझदारी भी भारी

मल्टी-पर्पज के चक्कर में फंसे

कई बार अति समझदारी भी फंसा देती है। मैं नौकरीपेशा हूं और मेरे पास वक्त की किल्लत रहती है। तीन-चार साल पहले मैंने धनतेरस पर फूड प्रोसेसर ख्ारीदा। दुकानदार ने एक घंटे तक मुझे उसके फायदे बताए और डेमो दिया... 'इससे आप एक साथ कई काम कर सकती हैं। इस ब्लेड से प्याज को महीन पीसा जा सकता है तो इससे बारीक किया जा सकता है, जूस के लिए यह जार इस्तेमाल करें, इस ब्लेड से मसाले पीसे जा सकते हैं, अटैच्मेंट लगा दें आटा गूंधा जा सकता है...। मुझे लगा, यह अच्छा आइडिया है। एक चीज्ा से इतने काम बन जाएं, कौन गृहिणी नहीं चाहेगी! मगर जब उसका इस्तेमाल शुरू किया तो महसूस किया कि सीधे तरीके से जो काम मैं आधे घंटे में निपटाती थी, वही मशीन से एक घंटे में हो रहे थे। हर बार ब्लेड बदलो, जार बदलो, अटैच्मेंट लगाओ और फिर प्रोसेसर की सफाई का काम उबाऊ और सिर दर्द करने वाला था। आख्िार सिंपल मिक्सी ख्ारीदी। सच कहूं तो अब मुझे लगता है कि सिंपल व सिंगल हैंडेड सामान ख्ारीदना ही समझदारी है।

रोशनी दुआ, लुधियाना

नियम 4 : हडबडी में न करें गडबडी

शादी निपट गई, जूतियां न आईं

भाई की शादी थी और हमारी शॉपिंग लिस्ट काफी बडी थी। शादी की तारीख्ा नज्ादीक थी। समय कम था, सोचा कि कुछ ख्ारीदारी ऑनलाइन कर लें। एक शॉपिंग साइट पर नज्ार पडी, जहां वेडिंग स्पेशल डिस्काउंट्स की भरमार थी। हमें भाई की वेडिंग ड्रेस के साथ मैच करती डिज्ााइनर जूतियां दिखीं तो तुरंत फोटो खींचकर भाई को दिखाईं। उन्हें पसंद आईं तो हमने जूतियां ऑर्डर कर दीं, क्योंकि बाज्ाार में वैसी ही जूतियां लगभग दुगने दाम में मिल रही थीं। लगभग 8 दिन के इंतज्ाार के बाद जूतियां आ गईं। शाम को भाई घर आए तो हमने शौक से उन्हें जूतियां दिखाईं। ट्राई करने लगे तो पंजे की तरफ ख्ाासी टाइट थीं। साइज्ा बिलकुल ठीक था, लेकिन उसके डिज्ााइन में गडबडी थी। अगले ही दिन हमने वापसी के लिए मेल डाला। तीन दिन बाद सामान वापस हुआ। इसके बाद कई फोन-मेल करने के बावजूद जूतियां न पहुंचनी थीं-न पहुंचीं। शादी निपट गई। शादी के 15 दिन बाद पैसे अकाउंट में आए। तब से सोच-समझ कर ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं। थोडी समझदारी दिखा दी होती तो मुफ्त का सिर दर्द न मिलता।

महक भाटिया, मेरठ

नियम 5 : झांसे में न आएं

उसकी मीठी बातों ने ठग लिया

इस घटना को दो साल हो गए हैं। हम एक हिल स्टेशन पर घूमने गए थे। मेरे पति को फोटोग्राफी का शौक है। हम वहां के व्यस्त मार्केट में शॉपिंग कर रहे थे कि मेरे पति को एक कैमरा पसंद आया। वह हमारे बजट से बाहर था। मन मारकर दुकान से बाहर निकले कि एक लडके को देखा, जो उसी ब्रैंड का कैमरा ग्राहक को दिखा रहा था। उसने मेरे पति को भी कैमरा दिखाया, जो हमारे बजट में था। पति को कैमरा पसंद आ गया और उन्होंने पैसे देकर कैमरा पैक करने को कहा। होटल पहुंच कर जैसे ही पति ने पैकिंग खोली, उसमें दूसरे ब्रैंड का सस्ता कैमरा देख कर दंग रह गए। अगले दिन सुबह हम वहां गए, दुकानदारों से पूछताछ की, मगर लडके का पता न चल सका। पूरा दिन ख्ाराब हो गया। शाम की ट्रेन से हमारी वापसी थी। इस घटना से घूमने का सारा मज्ाा किरकिरा हो गया। तबसे कसम खाई कि पर्यटन स्थलों से कभी महंगी वस्तु नहीं ख्ारीदेंगे।

रागिनी मदान, फरीदाबाद

प्रस्तुति : इंदिरा राठौर


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