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आप तो ऐसे न थे

शादी से क्या, क्यों और कितनी अपेक्षाएं रखें, यह सवाल खासा उलझा हुआ है। कई बार आदर्श इतने ऊंचे होते हैं कि दूसरा उन पर खरा नहीं उतर पाता।

By Edited By: Published: Tue, 06 Sep 2016 10:13 AM (IST)Updated: Tue, 06 Sep 2016 10:13 AM (IST)
आप तो ऐसे न थे
मैं बहुत खुश थी क्योंकि सब कुछ वैसे ही हो रहा था, जैसा मैं चाहती थी। मुझे लगता था, दुनिया में मुझसे ज्य़ादा खुशकिस्मत कोई लडकी नहीं। मुझे हजारों में एक लडका मिला है...। मुझे ही नहीं, घर में सभी को यही लगता था। मगर शादी के एक साल बीतते-बीतते ही समझ आ गया था कि सपनों और हकीकत में बडा अंतर होता है। सच कहूं तो इससे पहले मेरे मन में तलाक जैसा शब्द कभी नहीं आया था लेकिन पिछले 8-9 वर्षों में (हंसते हुए) दो-तीन बार तो ऐसा हुआ कि जब लगा, बस... अब और नहीं। अरे नहीं... मैं पति से अलग नहीं होने जा रही हूं लेकिन जीवन इतना अनिश्चित है कि यहां कुछ भी हो सकता है। मुझे लगता है, हर लडकी को शादी से पहले यह विचार जरूर करना चाहिए कि शादी से उसकी अपेक्षाएं क्या हैं। महीनों तक चलने वाली शॉपिंग, हनीमून डेस्टिनेशंस की तलाश, कोर्टशिप में घंटों चलने वाली बातें, रोमैंटिक डेट्स, कैंडल लाइट डिनर, उसकी पसंद-नापसंद पर सिर खपाने से लेकर कपडे, ज्यूलरी, गिफ्ट्स खरीदने तक... क्या-क्या नहीं कराती शादी। अब जरा शादी के कुछ साल बाद का दृश्य देख लें। ...क्या तुम आज ऑफिस से लौटते हुए मेरी बहन के लिए बर्थडे गिफ्ट ले आओगी? अच्छा सुनो, बाथरूम का नल टपक रहा है, प्लंबर को बुलवा कर ठीक करा लेना...ओह लास्ट डेट निकल गई, बिजली का बिल नहीं जमा किया तुमने? बेटी का होमवर्क करा देना, फोन रीचार्ज करवा लेना...। सारा रोमैंटिसिज्म हवा हो जाता है चंद वर्षों में। कहते हैं न, लैला-मजनूं भी शादी करते तो उनके 'अमर' प्यार में से 'अ गायब हो जाता और रह जाता सिर्फ... खैर छोडें लेकिन शादी सिर्फ प्यार, रोमैंस, केयरिंग का नाम नहीं है...,' दार्शनिक भाव में कहती हैं प्रियंवदा। उनकी शादीशुदा जिंदगी अच्छी चल रही है क्योंकि बकौल उनके उन्होंने जल्दी ही सच्चाइयों को स्वीकार किया और शादी से असंभव अपेक्षाएं नहीं रखीं। अच्छे पार्टनर की तलाश मुझे ऐसा पार्टनर चाहिए जो ईमानदार और केयरिंग हो, खुशमिजाज हो....मुझे ऐसी पत्नी चाहिए जो घर अच्छी तरह संभाल ले और मुझे फ्री कर दे.... मैं रोमैंटिक जीवनसाथी चाहती हूं, जो मेरे दिल की हर बात समझ ले और मेरी हर तकलीफ बांटे....! एक अदद शादी और इतनी अपेक्षाएं? गोया शादी न हुई अलादीन का चिराग हो गई कि जो चाहो-हासिल हो जाएगा। कई साल पहले कश्मीर की पृष्ठभूमि पर एक फिल्म आई थी 'रोजा'। तब की लडकियों में इसके नायक अरविंद स्वामी का बडा क्रेज था। कहानी भले ही कश्मीर पर केंद्रित रही हो लेकिन इस फिल्म ने शादीशुदा जिंदगी की बेहद रोमैंटिक तसवीर पेश की थी। युवा होती लडकियां ऐसे ही जीवनसाथी की कल्पना करने लगीं। सवाल यह है कि क्या असल जिंदगी में इतना प्यार, केयर और चाह संभव है? इसका जवाब हां-नहीं के अलावा 'पता नहीं' में दिया जा सकता है क्योंकि जब इंसान ही परफेक्ट नहीं है तो उसके रिश्ते कैसे परफेक्ट हो सकते हैं? इतनी अपेक्षाएं क्यों शोध बताते हैं कि रिश्ते में जितनी कम अपेक्षाएं होंगी, उतनी ही कम निराशा होगी और शादी की सफलता की संभावनाएं उतनी ही बढ जाएंगी। फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी (यूएस) में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि ज्य़ादा अपेक्षाएं रिश्ते को नुकसान पहुंचाती हैं। जब कोई यथार्थ को समझे बिना अपेक्षाएं रखता है तो वे पूरी नहीं हो पातीं। इससे निराशा होती है, फिर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू होता है। अंत में शादी और प्रेम गायब हो जाता है, रह जाती हैं अंतहीन बहसें। हालांकि कुछ रिश्तों में इसका सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है पर ऐसा तब होता है, जब दोनों को गलती का एहसास हो और वे खामियों को दूर करने की कोशिश करें। पार्टनर्स की इच्छाएं, सोच, स्किल्स के अलावा उनकी परिस्थितियां भी भिन्न होती हैं। शोध के नतीजों में कहा गया कि हर नवविवाहित जोडे के दिमाग में पहले ही यह बात साफ होनी चाहिए कि उन्हें शादी से क्या चाहिए। उन्हें अपनी ताकत और कमजोरी की पहचान होनी चाहिए, तभी वे शादी को आगे बढा सकते हैं। अंत से शुरुआत अंत में वे खुशी-खुशी साथ रहने लगे...। बचपन में पढी गई हर परीकथा का अंत इसी सुखद मोड पर होता था। हिंदी फिल्मों को देखें तो वहां प्रेम के लिए होने वाली सभी लडाइयां शादी पर आकर खत्म हो जाती हैं, जबकि असल जिंदगी में कहानी 'अंत के बाद' शुरू होती है। कई बार युवा शादी से ज्य़ादा अपेक्षाएं रख लेते हैं, उन्हें लगता है कि शादी उनके हर सवाल का जवाब है या पार्टनर उनकी हर जरूरत पूरी करेगा...। जब ऐसा नहीं हो पाता तो उनके ख्वाब दरकने लगते हैं। वे सोचने लगते हैं कि उनसे गलती कहां हुई। किसी के आदर्शों पर अगर दूसरा खरा न उतर पाए तो इसमें गलती किसकी है? हडबडी में किसी नतीजे पर पहुंचने और पार्टनर को दोषी ठहराने के बजाय एक बार यह भी सोचें कि कहीं आपके आदर्श तो ज्य़ादा ऊंचे नहीं हैं? यूएस की एक यूनिवर्सिटी में युवा लडके-लडकियों और दस साल पुरानी शादियों के बीच अपेक्षाओं के बारे में एक तुलनात्मक अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि विवाहित दंपतियों के मुकाबले युवाओं की आकांक्षाएं शादी से कहीं अधिक थीं क्योंकि वे 'अंत में खुशी-खुशी साथ रहने लगे...' वाली फैंटसी में जी रहे थे और खुली आंखों से सपनों की एक हसीन दुनिया रच रहे थे। अपेक्षाओं को करें मैनेज बडे-बुजुर्ग कहते रहे हैं कि खुश रहना है तो दूसरों से उम्मीदें न रखें। यह भी जरूरी नहीं कि अपेक्षाएं पूरी होने पर इंसान वाकई खुश हो पाता हो। अगर कोई स्त्री चाहती है कि उसका जीवनसाथी घरेलू कार्यों में मदद करे और ऐसा न हो पाए तो जाहिर है, उसकी उम्मीद टूटती है। दूसरी ओर पार्टनर मददगार हो, तो भी जरूरी नहीं कि वह सचमुच खुश रहे। दरअसल खुशी अप्रत्याशित घटनाओं से ज्य़ादा होती है। जहां उम्मीद न हो और मनचाहा हो जाए, वहां खुशी होती है। जैसे, कभी ऑफिस में देर हो जाए, थके-मांदे घर लौट रहे हों, यह सोचते हुए कि घर में जाते ही ढेरों काम करने होंगे...डिनर तैयार करना होगा...मगर घर में जाने पर गर्मागर्म चाय से स्वागत होता है और आपकी थकान मिनटों में दूर हो जाती है। जैसे ही किचन में घुसती हैं, पता चलता है कि डिनर तैयार भी हो चुका। जाहिर है, खुशी दुगनी हो जाएगी क्योंकि ऐसी उम्मीद नहीं की गई थी। हर रिश्ते में थोडा व्यावहारिक होना जरूरी है। अगर कोई समस्या बार-बार रिश्तों के आडे आ रही है तो पार्टनर से नहीं उलझें बल्कि समस्या को सुलझाने के बारे में सोचें। शादी सबसे करीबी रिश्ता जरूर है लेकिन इसमें भी यथार्थवादी रहते हुए ही उम्मीदें रखें ताकि इनके टूटने पर रिश्ता न दरकने लगे। 5 बातें रखें याद 1. शादी हर सपने पूरे नहीं कर सकती। अगर शादी में अपने सारे सपनों को पूरा करने के बारे में सोचेंगे तो हमेशा असंतुष्ट रहेंगे। दूसरे के बजाय खुद से अपेक्षाएं रखें और उन्हें पूरा करें। 2. यह अकेलेपन या बोरियत को दूर करने की दवा नहीं है। अगर किसी के भीतर ही अकेलापन है तो कोई दूसरा उसे नहीं मिटा सकता। 3. शादी में हमेशा हनीमून पीरियड बना रहेगा, यह अपेक्षा गलत है। हनीमून से लौटते ही वास्तविकता को जितनी जल्दी स्वीकार करेंगे, उतने ही ख्सुखी रह सकेंगे। 4. व्यक्ति जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार करें। उसे बदलने के लिए शादी न करें। अपनी ऊर्जा और समय का बडा हिस्सा बर्बाद करने के बाद आप इस हकीकत को समझ जाएंगे कि कोई किसी को बदल नहीं सकता। 5. याद रखें, कोर्टशिप पीरियड उस दुलहन की तरह है, जो घूंघट में है और जिसका चेहरा किसी ने नहीं देखा। घूंघट हटाने के बाद ही असलियत सामने आती है। इसलिए हर ख्सुंदर सपने की लगाम अपने दिल के साथ-साथ दिमाग से भी थामे रखें। इंदिरा राठौर

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