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जब घर पर हो पति

अभी तक आपने घर पर काम करते हुए सिर्फ स्त्रियों को ही देखा होगा लेकिन अब जमाना बदल रहा है। अब तो आप पुरुषों को भी स्त्रियों की ही तरह घर पर काम करते देख सकते हैं और वह भी खुशी-खुशी

By Edited By: Published: Fri, 12 Aug 2016 11:35 AM (IST)Updated: Fri, 12 Aug 2016 11:35 AM (IST)
जब घर पर हो पति
सालों से अपने घरों में हम मां, दादी, नानी यानी स्त्रियों को ही घर संभालते देख रहे हैं। दरअसल, सदियों से घर का हर काम स्त्रियां ही करती आई हैं लेकिन ये जरूरी नहीं है कि जो काम सालों से होता आया है, वह आगे भी बदस्तूर जारी रहे। जमाना बदल रहा है और इसके साथ ही लोगों की सोच भी बदल रही है। आज स्त्रियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, बाहर जाकर नौकरी कर रही हैं, घर की आमदनी में योगदान दे रही हैं, फिर पुरुष क्यों घर के काम में हाथ नहीं बंटा सकता? पुरुषों की इस सोच में भी बदलाव आया है। कुछ पुरुष खुद घर की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं और अपनी पत्नी से उन्होंने भूमिकाएं एक्सचेंज कर ली हैं। अब वे घर-परिवार की बागडोर संभाल रहे हैं जबकि उनकी पत्नी ने बाहर की सारी जिम्मेदारियों को संभाल लिया है और ऐसा करके वे खुश हैं। किसी प्रकार की ग्लानि या पुरुष होकर घर संभालने का धिक्कार उनके मन में नहीं है और न ही वे लोगों की बातों को सुनते हैं। वे अपनी इस नई भूमिका को खुशी से एंजॉय कर रहे हैं। जिम्मेदारी का एहसास जब पुरुष घर की जिम्मेदारी उठाते हैं तो कई बार उनका मजाक भी बनता है क्योंकि अब तक उन्हें इस भूमिका में नहीं देखा गया है। इससे उन्हें जिम्मेदारियों का एहसास होता है। चीजों को हैंडल करने से लेकर परिवार को मैनेज करना जैसी कई बातें जानने-समझने को मिलती हैं। साथ ही उन्हें स्त्रियों की स्थिति समझने का मौका मिलता है और यह समझ समाज में बदलाव की नींव डालती है। धैर्य बढऩा घर की जिम्मेदारियों को संभालते-संभालते, बात-बात पर गुस्सा करने वाले पुरुषों के अंदर भी धैर्य आने लगता है, पहले वे परिस्थितियों के नकारात्मक होने पर बिगडते थे लेकिन अब उसे समझते हुए आराम से उसे सुलझाने की कोशिश करते हैं। समझदारी दिखाना पुरुष जब कामकाजी होते हैं तो अकसर घर देर से लौटते हैं। बैठे—बैठे चाय-कॉफी की डिमांड करते हैं, अपनी चीजों जैसे जूते-चप्पल कहीं भी उतार कर रख देते हैं और ऐसा वे बडे हक से करते हैं, वहीं स्त्रियां, जब ऑफिस से घर आती हैं तो न ही ऐसी कोई डिमांड करती हैं और न ही अपनी चीजों को फैलाकर रखना पसंद करती हैं। स्त्रियां अनुशासन में रहती हैं। इस बात की समझ उन्हें हाउस हज्बैंड बनने के बाद आती है और फिर वे भी अनुशासन को फॉलो करना पसंद करते हैं। बराबरी की भावना हाउस हज्बैंड बनने पर पुरुषों को एहसास होता है कि स्त्रियों के जिस काम को अभी तक वे हलके में ले रहे थे, वह दरअसल कितना मुश्किल है, फिर भी वे कभी किसी चीज की शिकायत नहीं करतीं। बिना किसी प्रोत्साहन के वे अपना काम अच्छी तरह करती आई हैं। पुरुष जब स्त्रियों की जगह लेते हैं, तब वे बेहतर तरीके से उनके काम और उनके योगदान को समझ पाते हैं। तब उनके मन में स्त्रियों के प्रति आदर का भाव बढ जाता है, जिससे दोनों के बीच के अंतर को मिटा पाना आसान हो जाता है। इज्ज़त करना पुरुष जब स्त्री की जगह लेते हैं तो उनके अंदर स्त्रियों के लिए आदर का भाव खुद-ब-खुद आ जाता है। उन्हें स्त्रियों के दबाव और जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से समझने का मौका मिलता है। केवल पत्नी ही नहीं, परिवार की लगभग सभी स्त्रियां उनके इस दायरे में नजर आने लगती हैं। मिटता अहं पुरुष ही घर को चला सकता है, वही घर का मुखिया होता है जैसी बातें करने वाले पुरुष एक दिन भी घर पर रहकर स्त्रियों के हिस्से आने वाली जिम्मेदारी को निभाते हैं तो उनकी ये सोच बदल जाती है। उनका ईगो दूर हो जाता है और जब रिश्तों के बीच से अहं निकल जाता है तो रिश्ते बेहतर विकास करते हैं और परिवार में खुशहाली बढती है। पेरेंट्स बनने का एहसास हाउस हज्बैंड बनने के बाद पुरुषों को एहसास होता है कि स्त्रियां किस तरह बच्चों के फिजिकल और मेंटल ग्रोथ में साथ देती हैं। जिम्मेदारियों को समझते हुए पति भी अपने बिजी शेड्यूल से बच्चों के लिए टाइम मैनेज करते हैं, जो बच्चों के साथ उनकी बॉण्डिंग को स्ट्रॉन्ग बनाने का काम करती है। इंडिपेंडेट बनना हर काम के लिए स्त्रियों पर निर्भर रहने वाले पुरुष हाउस हज्बैंड की जिम्मेदारी संभालते ही इंडिपेंडेंट बन जाते हैं। अपना ब्रेकफस्ट रेडी करना, कपडे खुद प्रेस करना, चीजों को सही जगह पर रखना और घर का हिसाब-किताब रखने जैसे कई काम आसानी से कर लेते हैं। भारत में कम देखे जाते हैं विदेशों की तुलना में भारत में हाउस हज्बैंड कम देखे जाते हैं। हालांकि, अब महानगरों में धीरे-धीरे यह चलन बढ रहा है। अब पत्नी घर के बाहर जाकर कमा रही है और पति घर के सारे काम कर रहे हैं। वे ये काम करके खुश भी हैं। पुरुष की इसी सोच के कारण घर और समाज के माहौल में भी अच्छा बदलाव आ रहा है और स्त्री-पुरुष के आपसी रिश्ते भी मजबूत हो रहे हैं। बदलाव की नींव समाज में कोई भी बदलाव अचानक नहीं आता। सालों से चली आ रही इस परंपरा को कि पुरुष बाहर जाकर कमाता है और स्त्री घर संभालती है, रातों-रात नहीं बदला जा सकता लेकिन कोई न कोई तो बदलाव की ये कहानी लिखेगा। जब ऐसी कहानी की शुरुआत होती है तो बीच-बीच में कई परेशानियां भी आती हैं और जो इन कठिनाइयों को हंसते-हंसते पार कर जाते हैं, वही दरअसल इतिहास रचते हैं। आज के समय में हाउस हज्बैंड ऐसा ही इतिहास रच रहे हैं और समाज को इस कदम से सकारात्मक नजरिया भी दे रहे हैं। संगीता सिंह (साइकोलॉजिस्ट सुनीता सनाढ्य पांडे से बातचीत पर आधारित)

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