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बदल रहा है बहुत कुछ

समय के साथ समाज की ज़रूरतें बदल रही हैं, लिहाज़ा बच्चों की परवरिश के नियम भी अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही नए पेरेंटिंग रूल्स के बारे में।

By Edited By: Published: Fri, 14 Oct 2016 12:38 PM (IST)Updated: Fri, 14 Oct 2016 12:38 PM (IST)
बदल रहा है बहुत कुछ
बच्चे हैं तो शरारत करेंगे ही, खाने-पीने के लिए उन्हें कभी नहीं टोकना चाहिए, स्कूल चाहे जैसा भी हो, अगर बच्चे के मन में पढऩे की इच्छा होगी तो वह कहीं भी पढ लेगा...ये कुछ ऐसे पुराने प्रचलित जुमले हैं, जिन्हें हम बचपन से सुनते आ रहे हैं लेकिन कल तक जिन बातों को पेरेंटिंग का पक्का नियम माना जाता था, अब उन्हें सिरे से खारिज कर दिया गया है। इसके बदले अब बच्चों की परवरिश में नए तौर-तरीकों को तरजीह दी जा ही है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही नियमों के बारे में : लाड-प्यार की सीमा पहले लोग छोटे बच्चों के साथ अतिरिक्त रूप से लाड-प्यार जताते थे। मिसाल के तौर पर चलना सीखते हुए अगर कोई बच्चा गिर जाता तो मां रोते हुए बच्चे को बहलाने के लिए जमीन को मारने लगती थीं लेकिन आज के पेरेंट्स यह समझते हैं कि चलना सीखने के दौरान बच्चे का गिरना स्वाभाविक है। ऐसे में उसके सामने बार-बार जमीन को मारने से बच्चे के मन में बदला लेने की भावना विकसित होगी। ओवर ईटिंग नहीं पहले लोग यह मानते थे कि खाने के मामले में बच्चों को टोकना नहीं चाहिए। इससे उन्हें नजर लग जाती है पर अब ऐसा नहीं है। आज की मांओं को यह मालूम है कि कौन सी चीजें बच्चे की सेहत को नुकसान पहुंचा सकती हैं। वे ओवर ईटिंग की वजह से पैदा होने वाली ओबेसिटी की समस्या से भी वाकिफ हैं। इसलिए अब मांएं अपने बच्चों को सही और संतुलित डाइट देने में यकीन रखती हैं। अच्छा है सवाल पूछना पहले चुपचाप सिर झुका कर बडों की हर बात मानने वाले बच्चे ही अच्छे माने जाते थे। सवाल पूछने या तर्क-वितर्क करने वाले बच्चों को अनुशासनहीन समझा जाता था पर अब ऐसा नहीं है। आज के अभिभावक यह समझने लगे हैं कि उसी बच्चे के मन में सवाल होंगे, जिसमें किसी भी विषय पर तार्किक ढंग से सोचने-समझने की क्षमता होगी। इस संबंध में चाइल्ड काउंसलर डॉ. आरती आनंद कहती हैं, 'अगर कभी किसी आदेश का पालन करने से पहले आपका बच्चा आपसे कोई सवाल पूछता है तो डांटकर चुप कराने के बजाय उसे यह समझाएं कि आपने किसी काम के लिए क्यों मना किया है।' काफी नहीं है पढाई पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब। आज के जमाने में यह पुरानी कहावत पूरी तरह गलत साबित हो चुकी है। पहले बच्चों को केवल पढऩे के लिए प्रेरित किया जाता था पर आज के पेरेंट्स इस बात को बखूबी समझते हैं कि अब केवल पढाई से काम नहीं चलेगा। व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिए स्पोर्ट्स, म्यूजिक, डांस और पेंटिंग जैसी एक्स्ट्रा कैरिकुलर ऐक्टिविटीज में भी बच्चों की सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए। जरूरी है पर्सनल स्पेस एक दौर ऐसा भी था जब बच्चों, खासतौर पर टीनएजर्स की परवरिश के दौरान उनकी गतिविधियों पर कडी नजर रखना जरूरी समझा जाता था पर इस मामले में आज के पेरेंट्स थोडे उदार हैं। उन्हें मालूम है कि ज्य़ादा सख्ती बरतने पर बच्चे उनसे अपनी बातें छिपाने लगेंगे। इसीलिए आज के माता-पिता अपने बच्चों को थोडी आजादी और पर्सनल स्पेस देने के हिमायती हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे अपने बच्चों को मनमानी करने की खुली छूट देते हैं। वे उन पर निगरानी भी रखते हैं पर इस ढंग से कि बच्चों को कभी भी ऐसा महसूस न हो कि मेरे माता-पिता मुझ पर शक करते हैं। बेटियां बनें बहादुर पहले बेटियों की परवरिश इस ढंग से की जाती थी कि वे कोमल, शांत और सहनशील बनें। इसीलिए उन्हें शुरू से ही किचन सेट और डॉल से खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। क्रिकेट, हॉकी और वॉलीबॉल जैसे आउटडोर गेम्स से पेरेंट्स लडकियों को दूर ही रखते थे। उन्हें ऐसा लगता था कि ऐसे स्पोट्र्स से लडकियों की कोमलता नष्ट हो जाती है पर आज के पेरेंट्स बेटों की तरह बेटियों को भी रफ-टफ बनाने में यकीन रखते हैं। वे उन्हें सेल्फ डिफेंस के लिए जूडो-कराटे का प्रशिक्षण दिलवाते हैं। अब लडकियां भी हर तरह की आउटडोर स्पोट्र्स ऐक्टिविटीज में बढ-चढकर हिस्सा लेती हैं। कुल मिलाकर बेटियों की परवरिश से जुडी स्टीरियोटाइप धारणा पूरी तरह बदल गई है। बेटे भी सीखें कुकिंग अब वो जमाना नहीं रहा जब परिवारों में बेटों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते थे। आज के अभिभावक बेटे और बेटी की परवरिश में कोई भेदभाव नहीं बरतते। वे अपने बेटों को भी शुरू से ही आवश्यक घरेलू कार्य सिखाते हैं। इस संबंध में डॉ. आरती आनंद आगे कहती हैं, 'आजकल ज्य़ादतर परिवारों में पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते हैं। ऐसे में बच्चे शुरू से ही यह देखते हैं कि घरेलू कार्यों में उनके पापा भी मम्मी की मदद करते हैं। ऐसे में लडके भी सहज ढंग से कुकिंग, सफाई और गार्डनिंग जैसे कार्यों में पेरेंट्स की मदद करते हैं।' अंकों से आंकना अनुचित आज से एक दशक पहले तक बोर्ड की परीक्षा के माक्र्स केवल बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि पेरेंट्स के लिए भी बहुत बडा हौव्वा हुआ करते थे। बाद में जब इसकी वजह से बच्चों में डिप्रेशन जैसी समस्याएं होने लगीं और आत्महत्या के कई मामले सामने आए तो सरकार ने भी इसकी गंभीरता को समझते हुए स्कूलों में ग्रेडिंग सिस्टम की शुरुआत की। आजकल बच्चों के लिए कई प्रोफेशनल कोर्सेज की शुरुआत की गई है। इसलिए पेरेंट्स भी इस बात को समझने लगे हैं कि अब परीक्षा के माक्र्स ही सब कुछ नहीं हैं। काबिल और हुनरमंद छात्रों के लिए करियर के अनेक ऑप्शन उपलब्ध हैं। इसलिए वे पहले की तरह अपने बच्चों पर परीक्षा में ज्य़ादा अंक लाने के लिए दबाव नहीं डालते। उपदेश देना है बेकार पहले ऐसा माना जाता था कि हमें बच्चों को हमेशा अच्छी बातें सिखानी चाहिए। इसी वजह से पहले पेरेंट्स बच्चों को छोटी-छोटी बातों के लिए अकसर रोकते-टोकते रहते थे। पहले बच्चों को देखते ही माता-पिता उनसे कहना शुरू कर देते, 'आजकल तुम पढाई पर जरा भी ध्यान नहीं देते, तुम अपनी किताबें ढंग से क्यों नहीं रखते, जल्दबाजी में हमेशा तुमसे गलतियां होती हैं।' ऐसी बातों से बच्चे बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं और वे उन पर अमल भी नहीं करते। अब पेरेंट्स इस बात को अच्छी तरह समझ चुके हैं कि बार-बार एक ही तरह के निर्देश सुनकर बच्चे ऊब जाते हैं। इसलिए उनके सामने वही बातें दोहराने से कोई फायदा नहीं होगा। अगर हम वाकई बच्चों में अच्छी आदतें विकसित करना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि हम खुद में भी बदलाव लाएं। बच्चे हमेशा बडों को देखकर ही सीखते हैं। मिसाल के तौर पर अगर आप बच्चे से स्टडी टेबल साफ रखने के लिए कहते हैं तो पहले इस बात पर भी गौर करें कि कहीं आप भी अपनी चीजें बिखेर कर तो नहीं रखते? अगर सचमुच ऐसा है तो सबसे पहले आपको अपनी यह आदत सुधारनी चाहिए। इससे बच्चे भी आपका अनुसरण करेंगे। खूबियां पहचानें पेरेंटिंग का पुराना नियम यही कहता था कि अगर बच्चा किसी विषय में कमजोर है तो उसे दिन-रात उसी पर मेहनत करनी चाहिए। निरंतर अभ्यास से उसके रिजल्ट में निश्चित रूप से सुधार आएगा। यह बात कुछ हद तक सही है पर हमेशा ऐसा नहीं होता। आजकल ज्य़ादातर स्कूलों में भी काउंसलर होते हैं, जो एप्टिट्यूड टेस्ट की मदद से बच्चे की रुचि और उसकी खूबियों को पहचान कर उसे यही सलाह देते हैं कि तुम अपने मनपसंद क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए ज्य़ादा मेहनत करो। इससे बच्चे की योग्यता का सही इस्तेमाल हो पाता है और उसे कामयाबी भी मिलती है। विनीता

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