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शादी दो परिवारों का है मिलन

जिंदगी एक सफर है। यह सफर तब और ख़ूबसूरत हो जाता है, जब कदम से कदम मिलाने वाला कोई ऐसा साथी हो, जो आपका दोस्त और रहनुमा हो, जो आपको हर दुख से उबार ले और आपके जीवन में खुशियों के रंग भर दे।

By Edited By: Published: Tue, 15 Nov 2016 12:40 PM (IST)Updated: Tue, 15 Nov 2016 12:40 PM (IST)
शादी दो परिवारों का है मिलन
कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है। पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान के संदर्भ में यह बात सच साबित होती है। दो बार बीजेपी सांसद, डीडीसीए के वाइस प्रेसिडेंट और दिल्ली निफ्ट के चेयरमैन मल्टीटास्कर हैं लेकिन एक साथ इतनी सारी भूमिकाओं को सफलतापूर्वक निभा पाने के पीछे उनकी हमसफर संगीता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया और उनकी बैक बोन बनी रहीं। एक-दूसरे के प्रति उनका समर्पण ही था कि 26 साल की शादीशुदा जिंदगी का उनका यह सफर खुशगवार बन गया। पहली मुलाकात चेतन : हम दोनों साथ में बैंक ऑफ बडौदा में काम करते थे। साथ काम करते हुए हमारे बीच अच्छी अंडरस्टैंडिंग बन गई और हम अच्छे दोस्त बन गए। अच्छी दोस्ती होने के बाद हमने इसे एक रिश्ते को नाम देने के बारे में सोचा। संगीता : दिल्ली के रीजनल ऑफिस में हम पहली बार मिले थे। मुझे इनका साथ अच्छा लगता था। हमारी सोच एक सी है। मैं इनका साथ पसंद करती थी। जीवनसाथी में जिन बातों को मैं ढूंढ रही थी, वे सब मैंने चेतन में पाई हैं। गुण जो भा गए चेतन : संगीता पढी-लिखी, शांतिप्रिय और घरेलू स्त्री हैं। एक भारतीय स्त्री में जिन गुणों की कल्पना की जाती है, वे सभी इनमें हैं। मैं शांत स्वभाव का व्यक्ति हूं तो मुझे ऐसे ही लोग अच्छे लगते हैं। संगीता : मुझे वे लोग अच्छे लगते हैं, जो स्त्रियों का सम्मान करते हैं और उन्हें उनके हिस्से की आजादी देते हैं। चेतन वैसे ही व्यक्ति हैं। उनकी इन्हीं बातों ने मेरा दिल जीत लिया था। परिवार ने दिल से अपनाया चेतन : शादी को लेकर हमारे घरों में कोई विरोध नहीं हुआ। मां-बाप ने हमारी जिंदगी में दखल नहीं दिया। वे बस हमारी खुशी चाहते थे। शुरू में थोडा मनमुटाव हुआ लेकिन समय के साथ सब ठीक हो गया। इसका श्रेय पूरी तरह से संगीता को जाता है। संगीता : शादी में आपको एडजस्टमेंट करना होता है। शुरुआती सालों में मुझे खुद को साबित करना था लेकिन मैंने जल्द ही सबका दिल जीत लिया। वैसे भी चेतन के परिवार वाले बेहद मिलनसार हैं। उन्होंने कभी मुझे पराये होने का एहसास नहीं दिलाया। मेरी ननद मेरी अच्छी सहेली हैं। मैं रात को एक बजे भी ऑफिस से घर लौटती तो वह मुझे गर्मागर्म खाना परोसती थीं। मेरी सास ने हमेशा से बहुओं को प्राथमिकता दी। उनके सहयोग के कारण मैं जल्दी ही घर में एडजस्ट हो गई। लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप चेतन : हम एक-दूसरे की जॉब की जरूरतों को समझते हैं। इसलिए घर से दूर रहने को लेकर हमारे बीच कभी कोई परेशानी नहीं हुई। विनायक के जन्म के बाद जब भी मौका मिला, मैने मां-बाप दोनों की भूमिका निभाई। मैं बहुत पारिवारिक आदमी हूं या कहें होममेकर हूं। मैं कई सालों तक विदेश में रहा हूं, जहां सारा काम खुद करना पडता है। इसलिए घर का कोई भी काम करने में मुझे कोई परेशानी नहींहोती है। वैसे भी मेरी मां तो हमेशा हमसे घर के कामों में मदद लेती थीं। संगीता : ये लोनर किस्म के इंसान हैं, जिन्हें अकेले रहना अच्छा लगता है। इसलिए दूर रहने पर कोई परेशानी होने का सवाल ही नहीं उठता था। हालांकि मुझे परिवार के साथ रहना अच्छा लगता है लेकिन परिस्थितियों के मुताबिक मैंने अपने आपको ढाल लिया है। परवरिश की चुनौतियां चेतन : विनायक की परवरिश को लेकर हम दोनों के बीच शुरुआत में ही समझौता हुआ था कि हम विनायक को कभी आया के भरोसे नहीं छोडेंगे। हम दोनों में से कोई न कोई उसके साथ रहेगा। विनायक अब बडा हो गया है। अब वह मेरा दोस्त है। इसलिए हम उसके साथ बातें शेयर करते हैं, उसे सही और गलत के बारे में बताते हैं। वैसे वह बडा समझदार बच्चा है। संगीता : घर में जैसा आप देखते हैं, वैसा ही बर्ताव करते हैं। हमने इस बात का हमेशा खयाल रखा है कि हमारे किसी भी व्यवहार से बच्चे पर कोई गलत असर न पडे। नोक-झोंक के बीच चेतन : दंपती के बीच किसी बात पर अनबन न हो, ऐसा हो नहीं सकता। हमारे बीच भी झगडा होता है। यह तो बहुत नॉर्मल है लेकिन हम उस झगडे को लंबा खींचते नहीं हैं, बैठकर बात कर लेते हैं। मैं ज्य़ादा नहीं बोलता, हमेशा चुप हो जाता हूं। इसलिए मनाने का काम हमेशा संगीता ही करती हैं। संगीता : मेरे पापा ने हमें हमेशा सिखाया है कि झगडा कैसा भी हो लेकिन रात की बात रात में ही खत्म हो जानी चाहिए। मैंने हमेशा इस बात का पालन किया है। मैं झगडे के बीच अपने ईगो को कभी नहीं लाती। हमेशा पहल करके बात सुलझा लेती हूं। वैसे भी सॉरी कोई भी बोले, बात तो मामला सुलझाने का है। बिजी रहने से दिक्कत चेतन : मैं बहुत साल अकेले रहा हूं इसलिए संगीता के घर पर न रहने से मुझे ज्य़ादा परेशानी नहींहोती। वैसे भी संगीता नौकरीपेशा हैं, उनके अपने प्रोफेशनल कमिटमेंट्स हैं। मैं इस बात को अच्छी तरह से समझता हूं और संगीता भी। इसलिए हमें ज्य़ादा परेशानी नहीं होती। संगीता : अब मुझे इनके बिजी रहने से कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन शुरुआत में मुझे इनका संडे के दिन भी सुबह ही निकल जाना और रात को देर से आना बडा खलता था। अब मेरा बेटा बडा हो गया है। हम दोनों फ्रेंड्स की तरह साथ में घूमते-फिरते हैं। शादी पर भरोसा चेतन : मैं लिव-इन रिलेशनशिप को आखिरी विकल्प मानता हूं। हजारों साल पुरानी परंपरा में बदलाव आ रहे हैं। यह आदमी-औरत पर निर्भर करता है कि वे क्या चाहते हैं। अगर आप एक-दूसरे को पसंद करते हैं तो फिर उस रिश्ते को नाम देने से क्यों डरना। वैसे भी आप किसी के साथ दो-ढाई साल रह जाते हैं तो आपको पता चल जाता है कि आप उसके साथ कितनी दूर तक जा सकते हैं। वैसे भी यह पश्चिमी संस्कृति है। वहां लोग शादी में नहीं बंधना चाहते, स्वतंत्र रहना चाहते हैं। संगीता : अगर आपको दोस्त ही रहना है तो दोस्त ही रहो। बीच में मत लटको। या तो दोस्ती या फिर शादी। लिव-इन में दो लोग अकेले होते हैं जबकि शादी में दो परिवार जुडते हैं। शादी आपको सिक्योरिटी देती है। शादी की सफलता चेतन : शादी की सफलता के लिए सबसे जरूरी है धैर्य। जितना धैर्य होगा, उतना ही अच्छा है। पार्टनर को दोस्त होना चाहिए, जो सारी बातें शेयर करे। वैसे संगीता को शिकायत है कि मैं बातें शेयर नहींकरता। ऐसा न करने के पीछे कारण यह है कि मैं किसी को अपसेट नहींकरना चाहता। मुझे लगता है, कोई इंसान संपूर्ण नहींहोता। हमें सामने वाले की कमजोरी नहीं, उसकी अच्छाई पर ध्यान देना चाहिए। संगीता : किसी भी शादी को चलाने के लिए सबसे जरूरी है धैर्य और संतुलन। यह संतुलन तभी बैठेगा, जब आप समझदारी से काम लेंगे। संगीता सिंह

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