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भरोसा मुकम्मल हो तभी शादी करें

सरकार, जॉनी गद्दार, अजब प्रेम की गजब कहानी समेत दर्जनों फिल्मों में उम्दा अदाकारी की छाप छोड़ चुके हैं जाकिर हुसैन। इनकी हमसफर हैं सरिता। दस वर्षो की दोस्ती के बाद दोनों ने शादी की। शादी की मुश्किलों और इसमें निभाने की कला को लेकर उनसे हुई बेबाक बातचीत।

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST)
भरोसा मुकम्मल हो तभी शादी करें

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से उत्तीर्ण जाकिर हुसैन मेरठ के हैं। सरिता से इनकी मुलाकात दिल्ली में एनएसडी के दिनों में हुई। करीब 10 वर्ष तक लगातार साथ काम करने के बाद दोस्ती हुई। फिर लगा कि हमारे बीच इतनी समझदारी हो गई है कि शादी की जा सकती है। फिर 19 मई 1993 को शादी की और अब अपने बेटे के साथ सुखी दांपत्य जीवन जी रहे हैं।

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पहली मुलाकात

जाकिर : यह 1982 की बात है, जब मैंने मंडी हाउस में थिएटर करना शुरू किया था। सरिता वहां पहले से सक्रिय थीं। इनका घर भी पास में ही था। थिएटर जगत के पेड कलाकारों में इनका नाम चर्चित था। हमने साथ में एक प्ले किया था।

सारिका : उसके बाद की कहानी मैं सुनाती हूं। मैंने एक प्ले ग्रुप बनाया था, जिसमें हम साथ में नाटक करते थे। इन्होंने एनएसडी से पहले श्रीराम सेंटर से ऐक्टिंग का कोर्स किया। उसी दौरान अदाकारी की व्यापक दुनिया से इनका परिचय हुआ। फिर इन्होंने एनएसडी से कोर्स करने का मन बनाया। पहली बार में चयन न होने पर इन्होंने रेपर्टरी जॉइन कर ली। एनएसडी में इनका चयन तीसरे प्रयास में हुआ। मैं उस दरम्यान कॉस्ट्यूम डिजाइन में चली गई और टेली फिल्म्स करने लगी। इनके ड्रामा स्कूल से निकलने के बाद तय हुआ कि शादी कर ली जाए तो फिर हमने शादी कर ली 1993 में। यानी 10 साल तक एक-दूसरे को जानने के बाद हमने शादी का फैसला लिया। 1994 में हमारे दुलारे हम्जा ने जन्म लिया।

रोचक रहा सफर

जाकिर : मैं वापस रेपर्टरी में चला गया। एक सीरियल भी किया फिरदौस। सरिता कॉस्ट्यूम डिजाइन में लगी रहीं। वह सफर दो साल तक चला। फिर मैं मुंबई शिफ्ट हो गया 1997 में। सरिता और हम्जा वहीं थे। साल भर बाद सरिता और हम्जा भी आ गए।

सरिता : कांदिवली, चार बंग्ला, मिल्लत नगर जैसी कई जगहों पर हम रहे। फाइनली हम ओशिवारा के रहवासी हो गए। जाकिर सीरियल्स के अलावा भी कुछ-कुछ काम करते रहे और मैंने विपुल सांघवी स्कूल के ड्रमैटिक्स डिपार्टमेंट में टीचिंग शुरू कर दी।

अचानक नहीं लिया फैसला

सरिता : शादी का फैसला लेने में हमें 10 साल लगे। कह सकते हैं कि हमारे बीच कभी आई लव यू जैसा मोमेंट ही नहीं आया। हम एक-दूसरे को टीनएज से जानते थे।

जाकिर : हां, जब हम पहली बार मिले थे, ये 16 की थीं और मैं 17 का। उसी उम्र से हम थिएटर जगत में आ चुके थे। तब से कभी कोई ऐसा क्षण नहीं आया, जब हम एक-दूसरे से अलग हुए हों या कभी जबरन एक-दूसरे का साथ निभाना पडा हो। हम वर्कशॉप या प्ले डिस्कस करते हुए हमेशा साथ रहा करते थे।

सरिता : आलम यह था कि हम दोनों से ज्यादा चिंता हमारे साथ रहने वाले लोगों को थी। हम कभी साथ नहीं होते तो सवाल होने लगते कि अरे दोनों कहां हैं? कुछ खटपट तो नहीं हुई? टीचर्स या पेरेंट्स को भी लगता था कि दोनों साथ क्यों नहीं हैं? जबकि हमारी बातचीत सिर्फ काम को लेकर ही होती थी।

जाकिर : मंडी हाउस में सब हमें जोडी के तौर पर देखा करते थे। हालांकि हमारे बीच कुछ भी ऐसा नहीं था।

सारिका : एक रोचक घटना है। हमारा नाटकहोने वाला था मर्चेट ऑफ वेनिस। सब तैयारी में जुटे थे। मैं स्क्रिप्ट तैयार कर रही थी। जाकिर बाहर थे। उसी समय अतुल कुलकर्णी आए। वे जाकिर को काफी देर से ढूंढ रहे थे। मुझसे उन्होंने बात की, मगर जाकिर के बारे में नहीं पूछा। वे बाद में वापस आए। मैंने पूछा क्या हुआ तो बोले कि जाकिर को ढूंढ रहे हैं। मैंने कहा, तो मुझसे पूछते, मुझे मालूम था कि जाकिर कहां हैं। यह सुनकर अतुल ने माथा ही पीट लिया।

जाकिर : मगर इस साथ में कभी यह नहीं लगा कि हमारे बीच प्रेम-प्यार जैसा कुछ है। बस एक कॉस्मिक एनर्जी थी, जो लगातार हमें एक करने में जुटी थी। लोग हमें कैंपस का सबसे स्वीट कपल कहते थे, मगर सच बताएं, हमें कभी अकेले पार्क में या किसी अन्य जगह पर मिलने की जरूरत नहीं पडी।

अनिश्चतताओं से बेखौफ

जाकिर : हमने अदाकारी में ट्रेनिंग या कोर्स यह सोच कर नहीं लिया था कि कभी मुंबई जाएंगे, फिल्में या टीवी करेंगे। हम दिल्ली के थिएटर सर्किल में खुश थे। एनएसडी के बाद एक निश्चिंतता आ गई थी। थिएटर ही हमारा जीवन था।

सारिका : एक बात और यह थी कि हमारे परिवार आर्थिक रूप से मजबूत थे। रोजी-रोटी का जुगाड करते हुए ऐक्टिंग जैसी मजबूरी हमारे साथ नहीं थी।

जाकिर : यह जरूर था कि अंतरधार्मिक विवाह हमारे खानदान में पहली बार हो रहा था। सारिका अपने घर की सबसे बडी बेटी थीं और मैं सबसे छोटा। मेरी दो बहनें-चार भाई हैं। सारिका चार बहनें और दो भाई हैं।

परिवारों की दुविधा

सारिका : जाकिर के घर वाले कहने लगे कि देखो इस नालायक बेटे ने क्या गुल खिलाया। मेरे यहां भी सबने कहा कि बडी बेटी को ऐसा नहीं करना चाहिए था।

जाकिर : हम एक-दूसरे के घर आते-जाते थे, मगर तब किसी को यह नहीं लगता था कि कभी हम शादी कर लेंगे। तो शुरू में दिक्कतें रहीं, हालांकि बाद में परिवार वालों ने शादी को स्वीकार कर लिया। इसका एक कारण यह भी था कि हम दोनों का फील्ड अलग था। घर में हमारा पुश्तैनी कारोबार था। अब्बा धार्मिक जरूर हैं, मगर कट्टर नहीं।

सारिका : हमने तय किया कि शादी के बारे में घर वालों को नहीं बताएंगे। मन में डर था कि शायद हमारी बात न मानी जाए। हमने कोर्ट मैरिज की, लेकिन जाकिर के परिवार वाले प्रगतिशील थे। वे शालीन तरीके से चीजों को हैंडल करने पर जोर देते थे।

जाकिर : शादी के बाद सबसे पहले हम अपनी टीचर के घर गए। फिर कुछ दोस्तों ने पार्टी अरेंज की। इसके बाद हम सारिका के घर पहुंचे। उन्हें शादी के बारे में बताया तो हंगामा जैसा हो गया। कुछ दिन किराये के मकान में रहने लगे। ट्रांस यमुना दिल्ली में मदर डेयरी के पीछे नए फ्लैट्स में रहे। मैंने तीन-चार दिन बाद अपने घर में शादी की सूचना दी।

सारिका : घर वालों को काफी बुरा लगा था हमारे यूं बिना बताए शादी करने से। अकसर मुझे सुनने को मिलता कि उनके 20-25 साल के प्यार के आगे मेरा 5-7 साल का प्यार भारी पड गया। बुरा लगना स्वाभाविक था। देखिए, हर माता-पिता को लगता है कि उनके बचे उनके हिसाब से चलें। मेरा बेटा भी बडा हो रहा है। भविष्य में वह हमें बिना बताए ऐसा करेगा तो हमें भी ठेस लगेगी। मन में आज भी अपराध-बोध है।

जाकिर : हालात ऐसे थे कि हम बता नहीं सकते थे। वे इमोशनल ब्लैकमेल कर रहे थे, शायद हम उनके आगे झुक भी जाते।

सारिका : हां, फिर हम इतने स्वाभिमानी बने कि शादी के बाद घर वालों से कभी आर्थिक मदद नहीं ली। आज हम खुश हैं। न कभी जाकिर के घर वालों ने मुझ पर अपने धर्म की चीजें थोपने की कोशिश की, न मेरे घर वालों ने इन्हें हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने को बाध्य किया।

शादी बंधन नहीं

सरिता : शादी एक संस्था जरूर है, मगर यह बंधन नहीं है। इस रिश्ते की अलग गरिमा और जगह है। भले ही शादी के मायने बदल रहे हों, मगर इसकी अनिवार्यता, महत्ता और ओहदे में कोई बदलाव नहीं आएगा। आजकल युवा अकसर कहते हैं कि करियर है, उसकी मुश्किलें हैं, लाइफस्टाइल बिजी है। एक-दूसरे की खामियों को वे ज्यादा नहीं झेल सकते। मुझे लगता है कि ये कोई मजबूरी नहीं, बहाने हैं। मुझे नहीं लगता कि शादी से किसी का विकास रुक जाएगा। अगर इस रिश्ते पर भरोसा है तो दुनिया की कोई भी ताकत एक-दूसरे का साथ निभाने से नहीं रोक सकती।

जाकिर : मैं नहीं मानता कि शादी कोई बंधन है। यदि हमसफर से बेहतर तालमेल है, आपसी समझदारी और सम्मान-भाव है तो शादी में बंधन जैसा खयाल नहीं आ सकता। हां, यह जरूर कहूंगा कि शादी करने से पहले भरोसे का मुकम्मल माहौल बनाएं। देखें कि जिसे आपने हमसफर माना है, उसका इस रिश्ते में कितना यकीन है। इसके बाद ही इस बडे, अहम और संजीदा रिश्ते में कदम रखें।

अमित कर्ण


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