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एक मुहिम बुज़ुर्गों के लिए

हमारे आसपास कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो बेबस और लाचार लोगों के उदास चेहरे पर मुस्कान वापस लाने की मुहिम में जुटे रहते हैं। आइए मिलते हैं मुंबई के मार्क डिसूज़ा से, जो अकेले रहने वाले बुज़ुर्गों के बीच दोपहर के भोजन के साथ ढेर सारी खुशियां भी बांटते हैं।

By Edited By: Published: Fri, 11 Nov 2016 11:33 AM (IST)Updated: Fri, 11 Nov 2016 11:33 AM (IST)
एक मुहिम बुज़ुर्गों के लिए
बचपन में हमें उंगली पकड कर चलना सिखाने वाले माता-पिता वृद्धावस्था में जब शारीरिक रूप से लाचार हो जाते हैं तो हम व्यस्तता का बहाना बनाकर उन्हें अकेला छोड देते हैं। आजकल महानगरों के ज्य़ादातर परिवारों में बुजुर्गों की यही स्थिति है, जो बेहद शर्मनाक और दुखद है। ऐसा मानना है मुंबई के बरोली वेस्ट में रहने वाले 57 वर्षीय मार्क डिसूजा का, जो यहां पिछले चार वर्षों से अकेले रहने वाले बुजुर्गों के घरों में फ्री टिफिन सर्विस मुहैया कराते हैं। मुश्किलों भरा दौर सात साल की उम्र में ही अपनी मां को खोने वाले मार्क का बचपन कई तरह की मुश्किलों से भरा था। वह कहते हैं, 'कुछ समय तक मेरे पिता ने हम भाई-बहनों को रिश्तेदारों के घर पर रखा पर बिन मां के बच्चे के साथ लोग कैसा व्यवहार करते हैं, इसका अंदाजा आप भी लगा सकते हैं। इसलिए मेरे पिता ने मुझे बोर्डिंग स्कूल में भर्ती करा दिया। पढाई पूरी करने के बाद मैं रोजगार की तलाश में लीबिया गया, जहां मैंने लगभग पांच वर्षों तक एक ब्रिटिश कंपनी के होटल में कुकिंग का काम किया। वहीं मेरी मुलाकात इवॉन से हुई, जो बाद में मेरी लाइफ पार्टनर बन गईं। पत्नी बनीं प्रेरणा विवाह के बाद मैं भारत लौट आया और यहां मैंने हॉस्पिटैलिटी और प्रॉपर्टी सेक्टर में अपना बिजनेस शुरू किया। इसी बीच मेरे पिता का निधन हो गया। जब भी मुझे उनकी याद आती तो मन उदास हो जाता। अकसर मेरे मन में यह खयाल आता कि मैं उनकी सेवा नहीं कर पाया। अगर आज वे जीवित होते तो मेरी कामयाबी देख कर कितना खुश होते। मेरी पत्नी इवॉन शुरू से सामाजिक कार्यों में सक्रिय रही हैं। आसपास के लोगों की मदद करना उनकी आदत में शामिल है। उन्होंने मुझे समझाया कि हमारे आसपास कई ऐसे बुजुर्ग हैं, जिन्हें आपकी मदद की जरूरत है। अगर आप ध्यान से देखेंगे तो उनमें आपको अपने माता-पिता का ही चेहरा नजर आएगा। उन्होंने ही मुझे सलाह दी कि आप अकेले रहने वाले सीनियर सिटीजंस को खाना खिलाएं, उनके उदास चेहरे पर मुस्कान देखकर आपको भी बेहद खुशी मिलेगी। इस काम की शुरुआत के लिए मेरी वाइफ ने मुझे पांच हजार रुपये दिए। पहले मैंने अपने घर के आसपास रहने वाले बुजुर्गों के लिए दोपहर के वक्त टिफिन भेजने का काम शुरू किया। जब लोगों को मेरे हाथों से बना खाना पसंद आने लगा तो उन्होंने अपने परिचितों और दोस्तों को भी इस सुविधा के बारे में बताना शुरू कर दिया। रंग लाई मेहनत कुकिंग मेरा पैशन है, इसलिए इस कार्य से मुझे सच्ची संतुष्टि' मिली। वैसे भी बुजुर्गों के लिए खाना बनाने में ज्य़ादा मुश्किल नहीं होती। मैं केवल इस बात का ध्यान रखता हूं कि उनके खाने में ज्य़ादा घी-तेल और मिर्च-मसाला न हो। अगर किसी को डायबिटीज हैं तो मैं उसके टिफिन में चावल, आलू और स्वीट डिशेज नहीं भेजता। त्योहार और उनके जन्मदिन जैसे खास अवसरों पर मैं पहले से ही उनकी पसंद पूछ कर उनके लिए स्पेशल टिफिन और केक जरूर भिजवाता हूं ताकि उन्हें अकेलापन महसूस न हो। नॉन वेजटेरियन लोगों के लिए सप्ताह में एक दिन नॉनवेज डिशेज भी भेजता हूं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो प्याज-लहसुन तक नहीं खाते, उनके लिए मैं अलग खाना बनवाता हूं। शुरुआत में मैं इवॉन के साथ मिलकर सारा खाना बनाता और लोगों को टिफिन पहुंचाने भी खुद ही जाता था लेकिन जब मेरा काम बढऩे लगा तो मैंने अपनी किचन में कुछ सहायकों को नियुक्त किया। टिफिन पहुंचाने में मेरा बेटा भी हमारी मदद करता है। फिर जैसे-जैसे आसपास के लोगों को मेरे इस काम के बारे में मालूम हुआ तो वे स्वेच्छा से मेरी मदद के लिए आगे आने लगे। कुछ लोग टिफिन पहुंचाने में मेरी मदद करते हैं तो कुछ अपनी मजरी से किचन के लिए सामान भी लाकर देते हैं। मैंने सिर्फ छह लोगों से इस काम की शुरुआत की थी और आज 46 घरों में बुजुर्गों के लिए टिफिन पहुंचाता हूं।' मिलने लगीं दुआएं मार्क कहते हैं, 'फिलहाल मैं वरिष्ठ नागरिकों के लिए सिर्फ दोपहर का भोजन भिजवाता हूं, जिसमें दाल-चावल, दो तरह की सब्जियों के साथ चार रोटियां होती हैं। एक बार किसी बुजुर्ग व्यक्ति ने बहुत झिझकते हुए मुझसे पूछा कि क्या मुझे दो रोटियां ज्य़ादा मिल सकती हैं? दरअसल शाम को मुझे दोबारा भूख लग जाती है। मैंने उनसे कहा आपको जितनी जरूरत हो आप उतनी रोटियां मंगवा सकते हैं।' यह सुनकर वह व्यक्ति मुझे बार-बार धन्यवाद और दुआएं देने लगा। उसने कहा कि मैं तो इस बारे में आपसे बात करने के लिए पिछले चार दिनों से सोच रहा था पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था लेकिन आपने एक ही बार में मेरी बात मान ली। उस दिन के बाद से मैंने सभी बुजुर्गों को कह दिया कि वे अपनी जरूरत के अनुसार ज्य़ादा रोटियां भी मंगवा सकते हैं।' लगातार चार वर्षों से लोगों के घरों में खाना पहुंचाने की वजह से मार्क के साथ उनका बेहद आत्मीय रिश्ता बन चुका है। खाना पहुंचाने के अलावा भी जहां तक संभव हो, वे बुजुर्गो की हर मदद के लिए तैयार रहते हैं। चाहे किसी को बिजली-पानी का बिल जमा कराना हो या डॉक्टर के पास ले जाना हो, मार्क लोगों की मदद के लिए सदैव तैयार रहते हैं। मुंबई में अकेले रहने वाले ज्य़ादातर बुजुर्गों की संतानें विदेश, दूसरे शहरों या मुंबई के ही किसी दूसरे इलाके में अलग फ्लैट लेकर रहती हैं। ऐसे में जब अचानक कोई व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार हो जाता है तो मार्क तत्काल उसे अस्पताल में भर्ती करवा कर उसका इलाज शुरू करवाते हैं और उनके बेटे-बहू के आने तक उस बुजुर्ग की सेवा में जुटे रहते हैं। वह बताते हैं, 'जिन घरों में हमारा टिफिन जाता है, वहां के लोगों के साथ मेरा गहरा भावनात्मक जुडाव होता है। मैं सभी के सुख-दुख में शरीक होता हूं। ऐसे में जब किसी बुजुर्ग के निधन की सूचना मिलती है तो मुझे बहुत दुख होता है।' भविष्य की योजनाएं भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछने पर मार्क कहते हैं, 'अपने देश में संपन्न बुजुर्गों के लिए आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण कई ऐसे ओल्ड एज होम हैं, जहां वे पैसे खर्च करके बहुत आराम से रह सकते हैं पर समाज का एक बहुत बडा तबका ऐसा है, जिसके पास सिर पर छत और दो वक्त रोटी जुटाने लायक भी पैसा नहीं होता। ऐसे लोगों के लिए मैं एक ऐसा आरामदायक ओल्ड एज होम बनवाना चाहता हूं, जिसमें उनके लिए सभी जरूरी सुविधाएं मौजूद हों। यह घर उनके लिए पूरी तरह नि:शुल्क होगा।' मार्क का यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है और उन्होंने इस बात की मिसाल कायम की है कि अगर हम सच्चे मन से दूसरों की मदद करना चाहें तो हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में निश्चित रूप से कामयाबी मिलेगी। उन्हें है आपकी जरूरत सबसे पहले हमें अपने घर में रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों का खयाल रखना चाहिए। अकेलापन इस उम्र की सबसे बडी समस्या है। इसलिए अपने आसपास अकेले रहने वाले बुजुर्गों से बातचीत करने के लिए थोडा वक्त निकालें। बस, ट्रेन और अस्पताल जैसे सार्वजनिक स्थलों पर मिलने वाले बुजुर्गों की यथासंभव सहायता करें। ज्य़ादातर बुजुर्ग सुनने की क्षमता खो देते हैं और अल्जाइमर्स की वजह से वे छोटी-छोटी बातें बहुत जल्दी भूल जाते हैं। अगर कोई बुजुर्ग व्यक्ति आपसे एक ही बात दो-तीन बार पूछे तो उस पर झल्लाने के बजाय धैर्यपूर्वक उसकी बातों का जवाब दें। अगर आपके परिवार में कोई वरिष्ठ नागरिक हैं तो उन्हें इंटरनेट और मोबाइल के नए एप्लीकेशंस का इस्तेमाल सिखाएं, ताकि वे भी टेक्नोलॉजी का फायदा उठा सकें। विनीता

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