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बहाने छोड़ें आगे बढ़ें

नए साल की शुरुआत में हम प्रति वर्ष ढेर सारे संकल्प लेते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उत्साह ठंडा पडऩे लगता है और जि़ंदगी उसी ढर्रे पर वापस लौट आती है...पर इस बार ऐसा नहीं होगा। हम कोई महान संकल्प नहीं लेंगे और न ही बड़ी योजना बनाएंगे

By Edited By: Published: Sat, 27 Dec 2014 12:45 AM (IST)Updated: Sat, 27 Dec 2014 12:45 AM (IST)
बहाने छोड़ें आगे बढ़ें

नए साल की शुरुआत में हम प्रति वर्ष ढेर सारे संकल्प लेते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उत्साह ठंडा पडऩे लगता है और जिंदगी उसी ढर्रे पर वापस लौट आती है...पर इस बार ऐसा नहीं होगा। हम कोई महान संकल्प नहीं लेंगे और न ही बडी योजना बनाएंगे। सिर्फ अपने आपसे एक छोटा सा कमिटमेंट करें कि 2015 में अपनी गलतियों को छिपाने के लिए कोई बहाना नहीं बनाएंगे।

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बच्चों को हम बहाने बनाने के लिए अकसर डांटते हैं, पर ख्ाुद यह आदत क्यों नहीं छोड पाते। सिर्फ एक गलत आदत से पीछा छुडा लेने भर से हमारे जीवन में कई अच्छी बातें अपने आप शामिल हो जाएंगी। चाहे घर हो या दफ्तर, सेहत से जुडा मामला हो या संबंधों का, वक्त की पाबंदी हो या स्वच्छता से जुडे प्रयास। इन छोटी-छोटी बातों को अकसर हम अनदेखा कर देते हैं, पर अच्छी शुरुआत बेहद छोटे स्तर से भी की जा सकती है।

बहाना नं 1. वक्त ही नहीं मिलता : यह हमारे देश का सबसे लोकप्रिय बहाना है। चाहे रुटीन मेडिकल चेकअप के लिए जाना हो या मॉर्निंग वॉक पर। सेहत और अनुशासन से जुडे सभी मामलों में लोग यहीकहते हैं कि क्या करें वक्त नहीं मिलता... पर इस बार ख्ाुद से यह वादा करें अपना हर काम सही वक्त पर पूरा करेंगे।

बहाना नं 2. कितनी महंगाई है : फजूलखर्ची की आदत से त्रस्त लोगों के लिए यह सर्वसुलभ बहाना है। अनाप-शनाप शॉपिंग में अपने सारे पैसे उडा देने के बाद अकसर लोग यही जुमला दोहराते हैं। महंगाई हर दौर में रही है और हमेशा रहेगी। इसलिए हमें अपनी चादर देखकर ही पैर फैलाने चाहिए।

बहाना नं 3. बच्चे कहना नहीं मानते : प्राय: सभी अभिभावकों की यही शिकायत होती है कि बच्चे उनकी बात नहीं मानते, लेकिन इतना कह देने से उनकी जिम्मेदारी ख्ात्म नहीं हो जाती। सबसे पहले यह जानने की कोशिश करें कि आप उनसे कौन सी बातें मनवाना चाहती हैं? कहीं आपकी हिदायतों की सूची ज्य़ादा लंबी तो नहीं? अगर आप बहुत ज्य़ादा रोक-टोक करेंगी तो स्वाभाविक है कि इससे ऊबकर बच्चा आपकी हर बात नहीं मानेगा।

बहाना नं 4. बचा हुआ खाना मुझे ही खाना पडता है : ओबेसिटी की शिकार स्त्रियों का यह सबसे प्रिय बहाना है। उनके खाने का कोई रुटीन नहीं होता, जब जो पाया, वही खा लिया। इस आदत को लेकर अकसर उनका यही तर्क होता है कि क्या करें बचा हुआ भोजन बर्बाद न हो, इसलिए मुझे ही खाना पडता है। ऐसी आदतों का सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩा स्वाभाविक है। इसलिए कुकिंग के वक्त इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री का अंदाजा सटीक रखें, बच्चे की प्लेट में उतना ही परोसें, जितना कि वह आराम से ख्ात्म कर सके। इस तरह आप ओवर ईटिंग से छुटकारा पा जाएंगी।

बहाना नं 5. कोई मुझे याद नहीं करता : अकसर लोगों को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से यही शिकायत होती है कि वे मुझे कभी फोन नहीं करते तो फिर मैं उनसे पहले बात क्यों करूं? आपसी रिश्तों के बीच में इगो न आने दें। इससे बेवजह कटुता बढती है। संबंधों को ख्ाुशनुमा बनाने की कोशिश आपकी ओर से भी होनी चाहिए। इसके बावजूद अगर आपको ऐसा लगता है कि कोई आपके साथ बेरुख्ाी से पेश आता है तो ऐसे लोगों से किनारा कर लेने में ही भलाई है। सामाजिक दायरा भले ही छोटा हो, पर उसमें ऐसे लोग होने चाहिए, जिनका साथ आपको सच्ची ख्ाुशी देता हो।

...तो फिर देर किस बात की? केवल इन बहानों को छोडकर देखें। इससे आपकी बहुत सी समस्याएं अपने आप हल हो जाएंगी और नया साल आपके लिए ढेर सारी ख्ाुशियां लेकर आएगा।

विनीता

(मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ.अशुम गुप्ता से

बातचीत पर आधारित )


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